कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को गुजरात की कोर्ट से 2 साल की सजा सुनाए जाने के बाद लोकसभा से अयोग्य ठहराया गया तो तकरीबन उसी दौरान सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई। याचिका में रिप्रजेंटेशन ऑप पीपल एक्ट के सेक्शन 8(3) को अल्ट्रा वायरस बताकर बर्खास्त करने की मांग की गई है। इस सेक्शन के तहत ही किसी राजनेता को कम से कम दो साल की सजा होने पर उसकी सांसदी/विधायकी चली जाती है।
पीएचडी स्कॉलर और सोशल एक्टिविस्ट आभा मुरलीधरन ने रिप्रजेंटेशन ऑप पीपल एक्ट 1951 के सेक्शन 8(3) की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट से इसमें दखल देने की मांग की है। याचिका एडवोकेट दीपक प्रकाश और श्रीराम प्रकट्ट ने दायर की है।
फ्री स्पीच के अधिकार पर रोक लगाता है सेक्शन 8(3)
याचिका में कहा गया है कि सेक्शन 8(3) अल्ट्रा वायरस है क्योंकि ये फ्री स्पीच पर रोक लगाता है। संविधान में फ्री स्पीच को एक अधिकार माना गया है लेकिन सेक्शन 8(3) उस पर रोक लगाता है। उनका कहना है कि जनप्रतिनिधि इस सेक्शन की वजह से डरे हुए हैं। मतदाताओं ने उन्हें जो अधिकार दिया है वो उसो पूरा करने में भी खुद को असमर्थ पा रहे हैं। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट सेक्शन 8(3) पर सुनवाई करके कोई ठोस फैसला जारी करे। याचिका में कहा गया है कि रिप्रजेंटेशन ऑप पीपल एक्ट का सेक्शन 8(3) इसके सेक्शन (1), 8, 8A, 9, 9A, 10 और 10A और 11 से विपरीत है।
आभा मुरलीधरन ने याचिका में कहा गया है कि पीपल एक्ट चैप्टर तीन के तहत किसी को अयोग्य ठहराने से पहले अपराध की प्रकृति और उसके तमाम पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि पीपल एक्ट के सेक्शन 8(3) की वजह से किसी जनप्रतिनिधि को दो साल की सजा होते ही उसकी सांसदी/विधायकी ऑटोमेटिक तरीके से खत्म हो जाती है। फिर वो छह साल के लिए अयोग्य हो जाता है।
लिली थॉमस मामले का जिक्र कर किया सेक्शन 8(4) की जिक्र
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले लिली थॉमस का जिक्र कर कहा गया कि इसकी वजह से पीपल एक्ट के सेक्शन 8(4) की बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है। ये सेक्शन किसी को अयोग्य ठहराने के बाद तीन महीने का वक्त देता है जिससे वो सजा के खिलाफ अपील कर सके। लिली थॉमस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पीपल एक्ट के सेक्शन 8(4) को खत्म कर दिया था।