J&K: NIA मोदी सरकार की ‘पालतू एजेंसी’, बोलीं महबूबा- आंदोलनरत किसानों के पीछे इसे लगाया गया है; SAD भी बरसा
अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल बोले- एनआईए के जरिए किसानों को डराने का प्रयास कर रही केंद्र सरकार।

नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) ने कृषि कानूनों के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शनों के बीच पंजाब के कुछ किसान नेताओं और एक पंजाबी ऐक्टर- दीप सिद्धू को समन जारी किया है। बताया गया है कि यह समन देश में प्रतिबंधित संगठन ‘सिख फॉर जस्टिस’ से जुड़े केस में पूछताछ के लिए भेजा गया है। सभी नेताओं को 17 जनवरी को दिल्ली स्थित हेडक्वार्टर में पेश होने के लिए कहा गया है। हालांकि, अब इसे लेकर विपक्षी दलों ने सरकार पर ही निशाना साधा है। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से लेकर शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर बादल ने भी इसे केंद्र की राजनीति करार दिया है।
क्या कहा महबूबा मुफ्ती ने? पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, “आप राहुल गांधी का कितना भी मजाक उड़ाएं, लेकिन वह एकमात्र नेता हैं जो सच बोलने की हिम्मत रखते हैं। यह तथ्य है कि नया भारत चुनिंदा लोगों और साठगांठ रखने वाले पूंजीपतियों की गिरफ्त में है। मौजूदा तानाशाही शासन के खिलाफ खड़े रहने के लिये इतिहास उनको याद रखेगा।”
एक और ट्वीट में उन्होंने केंद्रीय आतंक निरोधी एजेंसी एनआईए पर ही निशाना साध लिया। उन्होंने कहा, ”भारत सरकार की पालतू एजेंसी अब किसान यूनियनों के पीछे पड़ी है। भारत की शीर्ष आतंकवाद जांच एजेंसी के पाखंड को कश्मीरियों, किसान और असहमति रखने वालों को फंसाने के उसके ढंग से समझा जा सकता है।”
क्या बोले अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल?: शिरोमणि अकाली दल (शिअद) प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने आरोप लगाया कि एनआईए जैसी एजेंसियों के मार्फत नोटिस भिजवाकर किसान नेताओं को डराने का प्रयास किया जा रहा है। बादल ने कहा, ‘‘केंद्र सरकार एनआईए जैसी विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से नोटिस भिजवाकर किसानों को डराने का प्रयास कर रही है। किसान देश विरोधी नहीं हैं। हम इसकी (नोटिस भेजे जाने की) निंदा करते हैं।’’
दूसरी तरफ अकाली दल के वरिष्ठ नेता और राज्य के पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया ने भी केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह किसानों को ‘‘नक्सली और खालिस्तानी’’ बताकर उन्हें बदनाम करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि शिअद हमेशा किसानों के साथ खड़ा रहा है और जब सरकार ने उनकी बात नहीं सुनी, तो उसने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) छोड़ दिया।