भारतीय राजनीति में एक नई शुरुआत करने वाले अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को संकेत दिया कि उन्हें केवल सत्ता की राजनीति नहीं करनी है। उससे बड़ा सोचने और करने की जरूरत है। रामलीला मैदान शनिवार को इस बात का भी गवाह बना कि इस नए मैदान (राजनीति) में अरविंद का गढ़ना जारी है। शपथ लेने के बाद शनिवार को पहले से ज्यादा व्यावहारिक व ईमानदार भाषण दिया। भाषा संयत रही। रामलीला मैदान के बाहर और अंदर आप की चर्चा और उसका जलवा नजर आया।
अपने भाषण में अरविंद केजरीवाल ने जो कुछ कहा उसके निहितार्थ व्यवस्था परिवर्तन और अपने काम से भारतीय राजनीति के इतिहास में मील का पत्थर बनना है। दार्शनिक अंदाज में उन्होंने कहा कि ईश्वर हमसे कोई बड़ा काम करवाना चाहता है। अपने भाषण में दूसरों को नसीहत देने की जगह अपने ऊपर ध्यान केंद्रित करने और खुद को अहंकार से बचाने और जमीन से जुड़े रहने की बात की। उन्होंने महात्मा गांधी की उस नसीहत को भी आत्मसात किया जिसमें गलतियों से सबक लेकर खुद में सुधार का रास्ता खुला रखने की सीख है।
उन्होंने साफगोई से यह स्वीकार किया कि पिछली बार दिल्ली जीतने के बाद आप में जीत का अहंकार आ गया था। उन्होंने माना कि लोकसभा चुनाव में आप को मिली हार का कारण भी कोई पार्टी या व्यक्ति नहीं बल्कि यही अहंकार था। उन्होंने हार के लिए पार्टी में आई खामी को जिम्मेदार माना और इस बार की ऐतिहासिक जीत को कुदरत का करिश्मा और जनता का प्यार बताया। केजरीवाल ने कहा कि उन्हें इतनी बड़ी जीत पर यकीन नहीं हो रहा था, लग रहा था सीटों की बारिश हो रही है। हालांकि उन्होंने जंतर-मंतर पर हुए कार्यक्रम में कई महीने पहले कह दिया था कि अगर फरवरी में चुनाव हुए तो आप को 50 से अधिक सीटें मिलेंगी।
पिछली बार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद केजरीवाल ने पार्टी और साथियों से अपील की थी कि वो अपने अंदर ऐसी कोई भी खामी न आने दें कि आज हम किसी पार्टी या अव्यवस्था को हटाने आए हैं तो कल हमें हटाने के लिए किसी अन्य को पैदा होना पड़े। इस बार भी उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को अहंकार से दूर रहने की नसीहत देते हुए इस राज्य या उस राज्य में चुनाव लड़ने या लड़ाने जैसे बयान देने से बाज आने को कहा। उन्होंने कहा,‘हमें अपने मंत्रियों, परिवार और कार्यकर्ताओं को दंभ से बचने के लिए चौकन्ना रहना होगा। इस पर वे या पार्टी कितना कायम रहेगी यह देखने की बात है। इस पर टिके रहना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है।’
इस बार उन्होंने लालबत्ती का विरोध जरूर किया लेकिन मुख्यमंत्री के कामकाज के लिए जरूरत भर की जगह (चार-पांच कमरों की) लेने से मना नहीं किया। इसके साथ ही केजरीवाल ने कामकाज को लेकर हड़बड़ी दिखाने या 24 घंटे या 36 घंटे की समय सीमा में बंधने की बजाए ठोस व टिकाऊ काम जल्दी से जल्दी करने की बात की। उन्होंने मीडिया से अपील की कि हमारी सही मंशा को पकड़ा जाए, उसका मजाक न उड़ाया जाए।
मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार शपथ थेने के बाद केजरीवाल ने जैसा भाषा का इस्तेमाल किया था। उसकी तुलना में इस बार उनका भाषण ज्यादा संयत था। इस बार उन्होंने अपने विरोधियों के लिए भी सम्मान और साथ लेकर काम करने की मंशा जताई। उन्होंने दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर काम करने का दावा किया और कहा कि जहां भाजपा के विधायक जीते हैं उन इलाकों में भी हमें पूरी शिद्दत से काम करना है। दूसरों की तरह यह गणना नहीं करनी है कि कौन से बूथ पर किसने वोट दिया कि नहीं दिया। भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध केजरीवाल ने यह भी माना कि उनका मन खुद से भी सवाल करता रहता था कि क्या यह संभव है? यानी खुद से सवाल व अपने में सुधार की गुंजाइश बना के रखनी चाहिए।
रामलीला मैदान में मौजूद आप के वरिष्ठ नेता योगेंद्र यादव ने कहा,‘हम लोकपाल या जन लोकपाल लाने की बात करते थे। आज पहली बार लगा कि हमें लोकसत्ता मिल गई। पहले लोकतंत्र में लोक गौण व तंत्र हावी था, आज तंत्र गौण व लोक ने सिर उठाया है।’ वहीं प्रवक्ता आतिशी मर्लेना ने कहा कि पार्टी में हर वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा।
रामलीला मैदान के अंदर और बाहर हर तरफ आप व केजरीवाल का बोलबाला था। खोमचे वाले का खोमचा, दुकान वाले का काउंटर, रेहड़ी वाले की रेहड़ी-हर जगह आप का पंपलेट या स्टीकर लगा था। एक समर्थक सिर पर मंगल कलश रखे आया था तो कई लोगों ने अपने चेहरे को तिरंगे का रूप दे रखा था। दर्शक दीर्घा में भाजपा सांसद रमेश विधूड़ी, भाजपा विधायक, बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे मौजूद थे। केजरीवाल का परिवार भी कौशांबी से रामलीला मैदान पहुंचा था।
प्रतिभा शुक्ल