Supreme Court: Adultery (विवाहेतर संबंध) के मामले में 2018 में खत्म किए गए कानून का आर्मी एक्ट से कोई लेना देना नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने मंगलवार (31 जनवरी, 2023) को कहा कि सेना इस तरह के मामले में लिप्त अपने लोगों पर अपने हिसाब से एक्शन ले सकती है।
पीठ ने आदेश में कहा कि जोसेफ शाइन (Joseph Shine case) बनाम भारत संघ मामले में 2018 का फैसला सशस्त्र बल अधिनियमों के प्रावधानों से बिल्कुल भी संबंधित नहीं था। जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार पांच न्यायाधीशों की पीठ ने रक्षा मंत्रालय द्वारा दायर एक आवेदन में आदेश पारित किया, जिसमें स्पष्टीकरण मांगा गया था कि व्यभिचारी कृत्यों के लिए सेना के जवानों पर सेना अधिनियम के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
व्यभिचार आज के समय में एक सामान्य समस्या: सुप्रीम कोर्ट
जोसेफ शाइन केस (Joseph Shine Case) का फैसला 2019 में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने आवेदन को संविधान पीठ को भेज दिया था, क्योंकि जोसेफ शाइन का फैसला पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि व्यभिचार आज के समय में एक कॉमन समस्या है। इसकी वजह से पति-पत्नी के बीच शादी संबंध इसी वजह से टूटते हैं।
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान ने पीठ को बताया था कि सशस्त्र बल न्यायाधिकरण द्वारा जोसेफ शाइन फैसले का हवाला देकर अनुचित यौन आचरण के लिए कर्मियों के खिलाफ शुरू की गई कुछ अनुशासनात्मक कार्यवाही को रद्द करने के मद्देनजर आवेदन दायर किया गया था। एएसजी ने बताया कि जोसेफ शाइन का फैसला आईपीसी की धारा 497 के पुरुष प्रधान समाज के सिद्धांत पर आधारित था, हालाँकि, सेना में की गई कार्रवाई लैंगिक का स्त्री-पुरुष से कोई लेनादेना नहीं है। महिला अधिकारी भी अनुशासनात्मक कार्रवाई के अधीन हैं।
जोसफ शाइन मामले में याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील कलेश्वरम राज ने कहा कि संघ का स्पष्टीकरण आवेदन पोषणीय नहीं है और जोसेफ शाइन मामले में सेना के अधिकारियों के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि एक सामान्य स्पष्टीकरण निर्देश नहीं दिया जा सकता है और व्यक्तिगत मामलों की केस-टू-केस आधार पर जांच की जानी है।