देश के 97% हिस्से तक पहुंच गई है कोरोना जांच की सुविधा, 20 लाख बेड तैयार: डॉ. हर्षवर्धन
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का कहना है कि भारत में कोरोना से निपटने के लिए शुरुआत से ही प्रभावी कदम उठाए गए, जिनके चलते यहां दुनिया के कई देशों से बेहतर स्थिति है।

26/11 इंडियन एक्सप्रेस स्टोरीज ऑफ स्ट्रेंथ कार्यक्रम के दौरान इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के कार्यकारी निदेशक अनंत गोयनका ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन से कोरोना से जुड़े कुछ ज़रूरी सवाल पूछे।
अनंत गोयनका: आप स्वास्थ्य मंत्री के साथ-साथ बेहद सम्मानित डॉक्टर भी हैं, आप खुद और तमाम डॉक्टर्स का, जो संकट की इस घड़ी में लोगों की सेवा के लिए अपनी जान तक जोखिम में डाल रहे हैं, मनोबल कैसे ऊंचा बनाए रखे?
हर्षवर्द्धन: देखिए, हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हम सबका मनोबल बनाए रखने के लिए, बरकरार रखने के लिए, लगातार इन्स्परेशन (प्रेरणा) देने के लिए, हमारे पास इतने बड़े एक आइडल हीरो हैं, जिनको मैं देश का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहता हूं। नरेंद्र मोदीजी लगातार पहले दिन से, हम सबका मनोबल बढ़ाते रहे हैं और खाली वह व्यक्तिगत तौर पर नहीं, उन्होंने राष्ट्र के नाम कितने संदेश दिए हैं, कितनी तरह की मीटिंग्स की हैं, कितनी तरह की योजनाएं बनाईं, हम समझते हैं कि जिस समय डॉक्टर्स के साथ भी एक स्टिग्मा अटैच (जुड़) हो गया था, यानी डॉक्टर इलाज करके अपने घर में जाता था, सोसाइटी में जाता था, तो वहां पर लोग वेलकम (स्वागत) करने के बजाय उसकी इंसल्ट (बेइज्जती) करते थे और बहुत स्थानों पर जब डॉक्टर लोग टेस्ट के लिए मोहल्लों में जाते थे तो ऐसे-ऐसे सीन्स हम लोगों ने देखे कि लोग डॉक्टरों को मारने के लिए दौड़ते थे, ऐसे समय मुझे ख्याल है कि प्रधानमंत्रीजी ने जो मोराल बूस्टिंग के लिए किया, वह तो अपनी जगह है, लेकिन जो इंडियन एपिडेमिक्स एक्ट (भारतीय महामारी कानून) था, 1899 के एक्ट को निकलवाकर उसके अंदर परिवर्तन कराया और कोई भी इस प्रकार का दुर्व्यवहार करेगा एक कोरोना डॉक्टर के साथ, एक डॉक्टर के साथ, एक हेल्थकर्मी के साथ तो उसको कितनी बड़ी सजा होगी यह उन्हीं की सोच का परिचायक था।
मैं समझता हूं कि जो संतोष दूसरे की सेवा करने से मिलता है और जो कोविड वॉरियर्स पिछले दस महीने से लगातार अस्पतालों में काम कर रहे हैं, अनंतजी वह उनको जो आत्मतृप्ति होती है, जब एक कोविड का मरीज ठीक होकर घर जाता है, आज शायद इन्हीं के कंट्रीब्यूशन के कारण दुनिया के सबसे कम फैटेलिटी रेट्स (मृत्यु दर) में से हमारे देश की फैटेलिटी रेट 1.46 है। इसमें हमारे इन डॉक्टरों का बहुत बड़ा योगदान है और लगातार प्रधानमंत्रीजी हम लोगों को जो इंस्पायर करते हैं, वह हम लोगों की असली ताकत है। बाकी ये जो ड्यूटी है, ये जो सर्विस है, यह किसी काम्पन्सैशन (इनाम) की मोहताज नहीं है, इसका जो सैटिस्फैक्शन (तसल्ली) है उसका शब्दों में वर्णन करना संभव नहीं है, ना उसकी जरूरत है, हम सब इस देश के शुक्रगुजार हैं कि सभी लोगों को भारत के लोगों ने बहुत सम्मान दिया है और उसी के कारण, उसी जज्बे के साथ बिना थके सब लोग लगातार प्रधानमंत्रीजी से प्रेरणा लेकर आज भी देश में कोविड के खिलाफ लड़ाई को सफल बनाने के लिए जुटे हुए हैं।
अनंत गोयनका: ऐसा सुनने में आता है कि भारत की स्थिति बाकी देशों से बेहतर है, क्योंकि यहां कोविड मॉर्टैलिटी रेट (मृत्यु दर) दूसरे देशों से काफी कम है, क्या वाकई यहां मॉर्टैलिटी रेट कम है और अगर है तो आप इसकी वजह क्या मानते हैं?
हर्षवर्द्धन: देखिए पहले तो यह आपका सवाल मुझे बड़ा अजीब लग रहा है क्योंकि शायद जितना पारदर्शी तरीके से भारत में हमारे डैशबोर्ड के ऊपर हम सारे डेटा (आंकड़े) देश-दुनिया के साथ शेयर (साझा) करते हैं, शायद कोई नहीं करता होगा। ये तो मैं नहीं कहता कोई करता होगा कि नहीं करता होगा, लेकिन हम ये कह सकते हैं कि भारत सौ प्रतिशत ईमानदारी और प्रमाणिकता से अपने सारे डेटा शेयर करता है।
पहले दिन से जो टेस्टिंग की स्ट्रेटजी है, ट्रैकिंग की स्ट्रेटजी है, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की जो स्ट्रेटजी है, अर्ली डायग्नोसिस (जल्दी रोग की पहचान), अर्ली ट्रीटमेंट (जल्दी इलाज) और ट्रीटमेंट की सारी की सारी फैसिलिटीज (सुविधाएं) और याद करिए कि आप, आपके अखबार, आपके टेलिविजन चैनल ही हम लोगों को रोज उलाहना देते थे टेस्ट-टेस्ट-टेस्ट और उसको हम मार्च-अप्रैल के महीने में सुनते थे, आज एक लेबोरेटरी से शुरू की हुई यात्रा दो हजार एक सौ तीस लेबोरेटरीज के ऊपर चली गई है, आज दस लाख से पंद्रह लाख के बीच हम लोग भारत के अंदर टेस्ट करते हैं। देश में कहीं भी तीन किलोमीटर चले जाइए, 97% ऑफ द कंट्री (देश के 97% हिस्से) के अंदर टेस्टिंग के लिए सुविधा उपलब्ध हो गई है। डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल, डेडिकेटेड कोविड हेल्थकेयर फैसिलिटी, डेडिकेटेड कोविड केयर सेंटर, बीस लाख बेड्स हमने देश में तैयार कर दिए हैं जो इसी काम के लिए प्रतिबद्ध हैं। कोई उसमें ऑक्सीजन सपोर्टेड है, कोई आईसीयू सपोर्टेड है, 12-13 हजार क्वारंटीन सेंटर, जिसमें और हजारों बेड्स हैं। ये सारे के सारे तैयार कर दिए गए हैं और फिर ये वही देश है जहां PPE की शुरू में कमी थी, N95 के बारे में रोज खबरें आती थीं। वेंटीलेटर्स के बारे में रोज खबरें आती थीं। आज ये सारी चीज भारत इतनी बड़ी मात्रा में उपलब्ध करा रहा है, टेस्टिंग किट्स, इतनी महंगी टेस्टिंग किट्स भारत बाहर से लाता था, आज 10 लाख से ज्यादा टेस्टिंग किट्स रोज हम अपने यहां तैयार करते हैं, एक हजार से ज्यादा टेस्टिंग किट्स को हम वैलिडेट कर चुके हैं, सब चीजें हम एक्सपोर्ट करने की स्थिति में आ गए हैं।
अभी जब हम N95 मास्क और PPE किट्स को स्टेट्स में भेजते हैं तो स्टेट्स हमें हाथ जोड़ के कहते हैं कि अभी हमारे पास स्टोर्स में रखने के लिए जगह नहीं है, आप प्लीज इन्हें भेजना रोक दीजिए। ये सारा कुछ भारत ने अपनी जो योग्यता है, क्षमता है, अपना DNA है, अपना जो एक कॉन्फिडेंस (विश्वास) है जो प्रधानमंत्रीजी भी आज आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं…तो ये सारी चीजें हम लोगों ने विकसित की हैं और उसी के कारण हमारी ये जो स्ट्रैटिजी पहले दिन से, घड़ी से, इसको फॉलो किया गया है, उसके कारण आज शायद दुनिया के सबसे कम फैटेलिटी रेट्स में हम हैं।
जो सच्चाई है, आपने पूछा क्या यह सही है, क्यों है ये सही और क्यों है जो मैंने आपको समझाने की कोशिश की है और शायद रिकवरी रेट भी 94 प्रतिशत है। आज 90 लाख से ज्यादा लोगों में 85-86 लाख लोग ठीक होकर घर जा चुके हैं और केवल 4 लाख के करीब एक्टिव केसेज बचे हैं। ये भी रिकवरी की राह पर हैं।
ये सब कुछ होने के कारण ही आज हमें यह भी एक दुविधा और समस्या है कि लोगों को लगता है कि ठीक तो हो ही जाएंगे, इसलिए कोविड अप्रोप्रीएट (यथोचित) बिहेव्यर (आचरण) के अंदर लोग कई स्थानों पर, दिल्ली शहर में भी लापरवाही कर रहे हैं। उस लापरवाही का ही परिणाम है कि सारे देश में मामले कम हो रहे हैं, लेकिन उन कुछ स्थानों पर जहां लापरवाही ज्यादा हो रही है, केस बीच-बीच में बढ़ जाते हैं। मैं यह समझता हूं कि भारत ने असरदार तरीके से कोविड के खिलाफ जंग में सारी दुनिया के बड़े से बड़े विकसित देशों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है।
अनंत गोयनका: स्पेनिश फ्लू की दूसरी लहर, पहली से काफी ज्यादा घातक साबित हुई थी, क्या ये तथ्य आपकी भी चिंता बढ़ा नहीं रहा है?
हर्षवर्द्धन: देखिए अनंत जी, मैंने स्पेनिश फ्लू तो देखा नहीं, लेकिन स्पेनिश फ्लू के बारे में पढ़ा है और हम तो जब पहला केस आया था तब भी वर्स्ट (सबसे खराब) इमेजिन (मान) करके काम कर रहे थे। पहला केस भारत में आया था 30 जनवरी को। छह जनवरी को चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को सूचित किया था कि उनके देश में नया कोरोना वायरस जो निमोनिया जैसे कॉज करता है, आया है। उसको उन्होंने डब्ल्यूएचओ को रिपोर्ट किया था। छह तारीख को ये रिपोर्टिंग हुई थी और आठ तारीख को 24 से 48 घंटे के बीच में हमने अपने स्वास्थ्य मंत्रालय में पहली एक्सपर्ट्स मीटिंग की थी। 17 जनवरी को सारे देश को विस्तृत एडवाइजरी दी थी, पॉाइंट ऑफ एंट्री सर्विलांस सब जगह शुरू कर दिया था, एयरपोर्ट पर, शिपपोर्ट्स पर, लैंड बॉर्डर्स पर, कम्युनिटी सर्विलांस शुरू कर दिया था। डब्ल्यूएचओ ने तो 30 जनवरी को इसको इमरजेंसी ऑफ इंटरनेशनल कंसर्न घोषित किया था, तो पॉइंट यह है कि हमने तैयारी शुरू कर दी थी।
हम लोग पहले दिन से ही सक्रिय, दूरगामी और श्रेणीबद्ध तरीके से, भविष्य की कल्पना करके काम शुरू किया था। निश्चित रूप से, इतनी बड़ी महामारी में चिंता होती है। अगर एक भी व्यक्ति की मौत होती है तो उसके कारण दुख होता है, कष्ट होता है। और जब लापरवाही होती है…उसमें दिखता है कि शायद इस लापरवाही के कारण किसी के प्राण को खतरा भी हो सकता है तो और ज्यादा तकलीफ होती है। हम साइन्टिफिक (वैज्ञानिक) तरीके से, जो संभव है, सारी दुनिया अध्ययन कर रही है, हमारी साइंस मिनिस्ट्री, मेरा अपना मंत्रालय, सारे वैज्ञानिक लोग इसके ऊपर काम कर रहे हैं। एक तरफ रिसर्च और एक तरफ ट्रीटमेंट और एक तरफ ट्रीटमेंट के स्केल…सब चीजों को मजबूत करना… ये हम अपना कर्म कर रहे हैं और कोशिश है कि भगवान उसका फल ठीक ही देगा, आने वाले समय में जितना जल्दी से जल्दी हो सकेगा कोविड के खिलाफ जंग में भारत को सफलता मिलेगी, यही हमारी इच्छा है, यही हमारी कामना है, यही हमारी भगवान से प्रार्थना है।
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