14 अप्रैल को संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाई जाती है। इस दिन को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है। इस साल उनकी 131वीं जयंती मनाई जा रही है। भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच कभी नहीं बनी। बाबा साहब ने उनको कभी महात्मा भी नहीं माना। अंबेडकर और गांधी के बीच जो दूरियां थीं, वह कभी भी कम नहीं हो पाईं।
‘बीबीसी हिंदी’ के मुताबिक, दोनों महान शख्सियतों के बीच कई मुलाकातें हुई लेकिन उनके बीच दूरियां खत्म नहीं हुईं। अंबेडकर ने आजादी से करीब दो दशक पहले, अपने अनुयायियों के साथ खुद को स्वतंत्रता आंदोलन से अलग-थलग कर लिया था। अंबेडकर कई मुद्दों पर गांंधी से सहमत नहीं होते थे। महात्मा गांधी के अछूतों के प्रति अनुराग और उनकी तरफ से बोलने के उनके दावे को अंबेडकर एक जोड़तोड़ की रणनीति का हिस्सा मानते थे।
14 अगस्त, 1931 का वो दिन जब, महात्मा गांधी और अंबेडकर के बीच मुलाकात हुई थी। उस वक्त महात्मा गांधी ने अंबेडकर से कहा था, “मैं अछूतों की समस्याओं के बारे में तब से सोच रहा हूं जब आप पैदा भी नहीं हुए थे। हैरानी होती है कि इसके बावजूद मुझे आप उनका हितैषी नहीं मानते हैं।”
अंबेडकर की जीवनी ‘डॉक्टर आंबेडकर: लाइफ एंड मिशन’ में धनंजय कीर लिखते हैं, “अंबेडकर ने महात्मा गांधी से कहा कि अगर आप अछूतों के खैरख्वाह होते तो आपने कांग्रेस का सदस्य होने के लिए खादी पहनने की शर्त की बजाए अस्पृश्यता निवारण को पहली शर्त बनाया होता।”
अंबेडकर ने आगे कहा, “किसी भी व्यक्ति जिसने अपने घर में एक अछूत व्यक्ति या महिला को नौकरी पर नहीं रखा, या उसने एक अछूत व्यक्ति के पालनपोषण का जिम्मा न उठाया हो, या कम से कम हफ्ते में एक बार किसी अछूत व्यक्ति के साथ खाना न खाया हो, उसे कांग्रेस का सदस्य बनने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए थी। आपने कभी भी किसी जिला कांग्रेस पार्टी के उस अध्यक्ष को पार्टी से नहीं निकाला जो मंदिरों में अछूतों के प्रवेश का विरोध करता पाया गया हो।”
1955 में बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में अंबेडकर ने गांधी के बारे में पूछे जाने पर कहा था, “मुझे इस बात पर काफी हैरानी होती है कि पश्चिम के देश गांधी में इतनी दिलचस्पी क्यों रखते हैं? जहां तक भारत की बात है तो वे देश के इतिहास का एक हिस्सा भर हैं, नए युग का निर्माण करने वाले व्यक्ति नहीं। गांधी की यादें इस देश के लोगों के जेहन से जा चुकी हैं।”
अंबेडकर ने कहा, “मैं गांधी से एक विरोधी की तरह ही मिला हूं, मुझे लगता है कि दूसरों की तुलना में मैं उनको बेहतर जानता-समझता हूं क्योंकि उन्होंने मुझे अपने जहरीले दांत दिखाए, मैं उस इंसान के भीतर झांककर देख पाया। जबकि अन्य लोग वहां भक्तों की तरह जाते थे और कुछ नहीं देख पाते थे। वो केवल बाहरी छवि देख पाते थे जो उन्होंने महात्मा की बनाई हुई थी।”