‘समिति के सदस्य कृषि कानून समर्थक’, कांग्रेस बोली- नहीं मिल सकेगा न्याय
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सवाल किया कि क्या ‘कृषि विरोधी कानूनों’ का समर्थन करने वालों से न्याय की उम्मीद की जा सकती है?

कांग्रेस ने कृषि कानूनों को लेकर चल रहे गतिरोध को खत्म करने के मकसद से उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित की गई समिति को लेकर मंगलवार को सवाल खड़े करते हुए आरोप लगाया कि समिति के चारों सदस्य ‘काले कृषि कानूनों का पक्षधर’ हैं और इस समिति से किसानों को न्याय नहीं मिल सकता।
पार्टी ने यह भी कहा कि इस मामले का एकमात्र समाधान तीनों कानूनों को रद्द करना है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सवाल किया कि क्या ‘कृषि विरोधी कानूनों’ का समर्थन करने वालों से न्याय उम्मीद की जा सकती है? उन्होंने ट्वीट किया, “क्या कृषि-विरोधी कानूनों का लिखित समर्थन करने वाले व्यक्तियों से न्याय की उम्मीद की जा सकती है? यह संघर्ष किसान-मजदूर विरोधी कानूनों के ख़त्म होने तक जारी रहेगा। जय जवान, जय किसान!”
पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने संवाददाताओं से बातचीत में दावा किया कि समिति के इन चारों सदस्यों ने इन कानूनों का अलग अलग मौकों पर खुलकर समर्थन किया है। सवाल किया, “जब समिति के चारों सदस्य पहले से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और खेत-खलिहान को बेचने की उनकी साजिश के साथ खड़े हैं तो फिर ऐसी समिति किसानों के साथ कैसे न्याय करेगी?”
सुरजेवाला ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को जब सरकार को फटकार लगाई तो उम्मीद पैदा हुई कि किसानों के साथ न्याय होगा, लेकिन इस समिति को देखकर ऐसी कोई उम्मीद नहीं जगती।
उन्होंने यह भी कहा, “हमें नहीं मालूम कि उच्चतम न्यायालय को इन लोगों के बारे में पहले बताया गया था या नहीं? वैसे, किसान इन कानूनों को लेकर उच्चतम न्यायालय नहीं गए थे। इनमें से एक सदस्य भूपिन्दर सिंह इन कानूनों के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय गए थे। फिर मामला दायर करने वाला ही समिति में कैसे हो सकता है? इन चारों व्यक्तियों की पृष्ठभूमि की जांच क्यों नहीं की गई?”
कांग्रेस नेता ने दावा किया, “ये चारों लोग काले कानूनों के पक्षधर हैं। इनकी मौजूदगी वाली समिति से किसानों को न्याय नहीं मिल सकता। इस पर अब पूरे देश को मंथन करने की जरूरत है।” कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी समिति के सदस्यों को लेकर सवाल किया।
उन्होंने कहा, “उच्चतम न्यायालय द्वारा किसानों के विरोध पर व्यक्त की गई चिंता एक जिद्दी सरकार द्वारा उत्पन्न स्थिति को देखते हुए उचित और स्वागत योग्य है। समाधान निकालने में सहायता के लिए समिति बनाने का निर्णय सुविचारित है। हालांकि, चार सदस्यीय समिति की रचना पेचीदा और विरोधाभासी संकेत देती है।”