यूपी के वाराणसी में ज्ञानवापी विवाद के बीच अब मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह मस्जिद विवाद को लेकर दायर किये गए मुकदमें को अदालत से अनुमित मिल गई है। इसको लेकर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने 9 कारणों को बताते हुए कहा है कि मथुरा में मस्जिद को लेकर हुए समझौते के बाद उसे छूना मुश्किल है। बता दें कि उन्होंने यह बातें एक निजी न्यूज चैनल से बातचीत में कही।
औवैसी ने कहा कि सबसे पहली बात तो यह कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह ट्रस्ट के बीच 12 अक्टूबर 1968 को एग्रीमेंट हुआ है। जिसमें 9 प्वाइंट पर समझौता हुआ है। इस समझौते में जन्मस्थान लिखा गया है। उस वक्त इस मुद्दे को नहीं उठाया गया।
समझौते के प्वाइंट गिनवाते हुए ओवैसी ने कहा कि, पहला यह कि ईदगाह की कच्ची कुर्सी की उत्तरी और दक्षिणी दीवारों को पूर्व की ओर जाएंगे और इसका खर्च मस्जिद ट्रस्ट द्वारा वहन करेगा। दूसरा, उत्तरी और दक्षिणी दीवारों के बाहर जो एरिया मुस्लिमों के पास है, वो उसे खाली कराएंगे और उसे जन्मस्थान सेवा संघ को देंगे।
औवैसी ने आगे कहा कि समझौते के मुताबिक उत्तरी और दक्षिणी दीवारों की सेवा संघ की भूमि पर किसी तरह का क्लेम नहीं होगा। ओवैसी ने कहा कि ईदगाह कच्ची कुर्सी के पश्चिम-उत्तरी कोने में भूमि के एक हिस्से पर सेवा संघ का कब्जा है, ट्रस्ट कच्ची कुर्सी का अधिग्रहण करेगा और यह ट्रस्ट की संपत्ति बन जाएगा। ओवैसी ने कहा कि वहां मौजूद मलबे(दक्षिण की ओर सीढ़ियों का विवादास्पद मलबा) का हिस्सा सेवा संघ की संपत्ति होगा।
समझौते का अगला प्वाइंट बताते हुए ओवैसी ने कहा कि उत्तरी और दक्षिणी दीवारों से मुस्लिम घोषियों द्वारा बनाए गए घरों को ट्रस्ट खाली करवा कर सेवा संघ को सौंपेगा। निकासी का काम पूरा होने के बाद ही ट्रस्ट दीवारों के निर्माण का हकदार होगा। इसके साथ ही ईदगाह ट्रस्ट अपने दरवाजे, खिड़कियां, पिंजर आदि नहीं सेवा संघ की तरफ नहीं खोलेगा। और ऐसा सेवा संघ भी नहीं करेगा।
ओवैसी ने कहा कि इसमें आगे कहा गया है कि जन्मस्थान के पहले से पश्चिम की ओर बहने वाले ईदगाह के नालों को हटाकर पाइप द्वारा ईदगाह की ओर मोड़ दिया जाए। इसका खर्चा सेवा संघ उठाएगा।
समझौते में आगे कहा गया कि ईदगाह की उत्तरी और दक्षिणी दीवारों के सामने रेलवे भूमि का एक हिस्सा जो जन्मस्थान सेवा संघ द्वारा अधिग्रहित किया जा रहा है, उसके अधिग्रहण के बाद जन्मस्थान सेवा संघ उस हिस्से को ट्रस्ट को हस्तांतरित करेगा जो उत्तर और दक्षिण की दीवारों के अंदर पड़ता है।
समझौते में यह भी कहा गया कि एक दूसरे के खिलाफ जो मामले हैं वो वापस ले लिए जाएंगे। वहीं यदि कोई भी पक्ष समझौते से पीछे हटता है तो ऐसी स्थिति में अदालत में अपील करने का अधिकार होगा। इसलिए यह समझौता दोनों पक्षों की सहमति से लिखित रूप में हुआ।
ओवैसी ने इस समझौते के प्रमुख बिंदुओं को बताते हुए कहा कि ये सब तय हुआ और 54 साल बाद आप इस मामले को निकालते हैं। बताइए इसमें किसनी नीयत खराब है।