रिपोर्ट में कहा गया है कि क्षेत्र में मानसिक हताशा में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। ‘इम्प्रिजंड रेजिस्टेंसः 5th अगस्त एंड इट्स आफ्टरमाथ’ शीर्षक वाली यह रिपोर्ट बृहस्पतिवार को राजधानी में जारी की गई। घाटी जाने वाली मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट टीम का हिस्सा रहे दिल्ली के रहने वाले मनोवैज्ञानिक डॉ. अमित सेन ने रिपोर्ट में कहा है कि राज्यभर में दैनिक जीवन प्रभावित हुआ है।
इसका बच्चों की जिंदगी पर भी असर पड़ा है। 28 सितंबर से 4 अक्टूबर को घाटी के दौरे पर जाने वाली टीम में मानवाधिकार कार्यकर्ता और लीगल एक्सपर्ट भी शामिल थे। डॉ. सेन ने इस रिपोर्ट में कहा, ‘लोगों की मानसिक रूप से हताशा में 70 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है। हालांकि, इसे मानसिक विकार के रूप में किस तरह से बताया जा सकता है इसे अभी देखा जाना है।
जमीनीस्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ता ट्रांसपोर्ट और कनेक्टिविटी के अभाव में बच्चों में इस ट्रॉमा के स्पष्ट संकेतों को दिखा सकने में अमसर्थ हैं। घाटी में स्कूल बंद हैं, कोई रूटीन या ढांचा नहीं है, किसी तरह की सुरक्षा की भावना या इसका किसी तरह का पूर्वानुमान नहीं दिखाई पड़ता है।’
मालूम हो कि केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करते हुए अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म कर दिया था। केंद्र सरकार की तरफ से जम्मू और कश्मीर व लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की घोषणा कर दी गई थी। इसके बाद से करीब दो महीने तक राज्य में संचार के साधनों जैसे इंटरनेट या टेलीफोन सेवाओं को पूरी तरह से बंद कर दिया गया था।
प्रशासन की तरफ से पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस समेत विभिन्न राजनीतिक दलों के करीब 3000 से अधिक नेताओं व विभिन्न संगठनों को कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया था। हालांकि, केंद्र सरकार की तरफ से राज्य में अब स्थिति सामान्य होने की बात कही जा रही है। राजनीतिक रूप से नजरबंद किए गए अधिकतर नेताओं को भी रिहा किया जा चुका है।