इंदौर-पटना एक्सप्रेस दुर्घटना : 11 घंटे जूझने के बाद दम तोड़ा
घरवालों को उम्मीद थी कि बेटी फोन पर बात कर पा रही है तो उसे निकाल लिया जाएगा और सब ठीक हो जाएगा।

‘मेरा पांव फंसा हुआ है, मुझे बहुत डर लग रहा है’। इंदौर-पटना एक्सप्रेस में हादसे के बाद स्लीपर कोच में फंसी कोमल अपने परिवारवालों से फोन पर रो रही थी। घरवालों को उम्मीद थी कि बेटी फोन पर बात कर पा रही है तो उसे निकाल लिया जाएगा और सब ठीक हो जाएगा। लेकिन कुछ ही देर बाद घरवालों को सूचना मिलती है कि दिल का दौरा पड़ने से कोमल की मौत हो गई है। ट्रेन के पटरी से उतरने पर स्लिपर और एसी की बोगियां एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाने से उसमें फंसे यात्री किसी तरह बाहर निकलने के इंतजार में हिम्मत बांधे हुए थे। इसी में एसी बी-3 कोच के सीट नंबर-30 पर कोमल सिंह हादसे के बाद 11 घंटे तक वहां मौजदू राहत कार्य में लगे लोगों से बातचीत करती रहीं और घरवालों से भी फोन पर बाकी बात करती रहीं। उस दौरान एनडीआरएफ की टीम को अपना मोबाइल नंबर सहित घरवालों का नाम-पता भी बताया। उनका पैर उस सीट में बुरी तरह फंसा हुआ था जहां वह सोई हुई थी। लेकिन हादसे के 11 घंटे बाद दोपहर 12:15 बजे के करीब उसे दिल का दौरा पड़ा। एनडीआरएफ के कर्मचारियों ने गैस कटर का इस्तेमाल बी-3 बोगी काटने में करना शुरू किया। तभी कोमल को दिल का दौरा पड़ा और उसने वहीं दम तोड़ दिया।
मूलत: बिहार के जिला बक्सर की कोमल इंदौर में दंतचिकित्सा की पढ़ाई कर रही थी। उनके पिता पुष्पजीत सिंह बिहार में एक सहकारी संस्था में काम करते हैं। मां शीला सिंह गृहिणी हैे। छोटी बहन पारुल और छोटा भाई वैभव तो यकीन ही नहीं कर पा रहे कि हादसे के बाद फोन पर बात कर रहीं उनकी दीदी अब नहीं रहीं। नोएडा में रहने वाले उनके चचेरे भाई चंद्रशेखर ने बताया कि ट्रेन हादसे के बाद कोमल से उनकी कई दफा बात भी हुई। वह काफी रो रही थी और बता रही थी कि उसका पैर बुरी तरह फंस गया है और एनडीआरएफ की टीम पैर को निकालने में लगी हुई है। दीदी हाल में घर में हुए पूजा में नहीं आ पाई थीं इसलिए वह घर आ रही थीं। मौके पर मौजूद आरपीएफ के एसआइ शिव शुक्ला का कहना था कि किसी को इस बात की जरा सी भी आशंका नहीं थी कि कोमल नहीं बचेगी। उनसे हमलोगों की बात भी हो रही थी।
उसके सामने फंसी एक महिला आभा जो बेसुध थी उन्हें भी 11 बजते-बजते निकाल लिया गया। उसके बाद कोमल को निकालने की बारी थी। कोमल को निकालने की जद्दोजहद शुरू हुई और करीब सवा घंटे की मेहनत के बाद एनडीआरएफ के लोग कोमल के पास पहुंच गए थे। उस दौरान डॉक्टर ने उसे आॅक्सीजन मास्क भी लगाया। लेकिन उसके पैरों के पास गैस कटर चलने के दौरान वह नहीं बच सकी। जबकि उसके बाद उसके नीचे दबे पांच लोगों को जिंदा बचाया गया। कोमल के शव को निकालने के बाद कानपुर देहात के माटी जिला अस्पताल में भेज दिया गया है।दुर्घटनास्थल पर मौजूद अधिकारियों का कहना है कि आधिकारिक तौर पर बताना तो मुश्किल है, लेकिन इस हादसे में 200 से 250 लोगों की मौत हुई है और इससे दो गुने लोग घायल हुए हैं। यहां राहत कार्य रविवार को रात भर चलेगा। उनका कहना था कि अभी सैकड़ों लोग जख्मी हालत में फंसे पड़े हैं। यात्रियों को बचाने के लिए झांसी, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, बनारस मंडल के अधिकारी-कर्मचारी सहित एनडीआरएफ, थल सेना और वायु सेना के लोग मौके पर तैनात हैं।