क्या ऑमण्ड मिल्क या सोया मिल्क दूध होता है? नेशनल कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन ऑफ इंडिया ऐसा नहीं मानता। इसीलिए फेडरेशन ने दिल्ली हाइकोर्ट में याचिका दाखिल की है। हाइकोर्ट ने इस याचिका पर उपर्युक्त पदार्थों की बिक्री करने वाली कंपनियों और फूड सेफ्टी एण्ड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआइ) तथा दिल्ली के फूड सेफ्टी कमिश्नर को नोटिस जारी कर दिया है।
याचिका में कहा गया है कि बादाम और सोया से बनने वाले कथित दूध को दूध कहकर बेचने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए। पशु-जनित दूध और वनस्पति-जनित कथित दूध के तत्व अलग होते हैं। पीने योग्य सफेद द्रव को दूध नहीं कहा जा सकता। न ही इस द्व से बने उत्पादों को पनीर या दही की संज्ञा दी जा सकती है। नेशनल कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन ऑफ इंडिया भारत में सहकारी दुग्ध उद्योग की सबसे बड़ी संस्था है। अपनी याचिका में फेडरेशन ने कहा है बादाम और सोया के कथित दूध और इन पदार्थों से बनने वाले उत्पादों पर दूध का लेबल लगाना और तदनुसार ब्रांडिंग करना गलत है।
जस्टिस रेखा पल्ली की एकल पीठ अदालत ने जिन कंपनियों को नोटिस जारी किया है वे इस प्रकार हैः हर्शे इंडिया जो अपने उत्पाद सोफिट के ब्रांड नेम से बेचती है, रक्यान बीवरेजेज़ जो अपने उत्पाद रॉ प्रेसरी के ब्रांड नेम से बेचती है और ड्रम्स फूड इंटरनेशनल जो अपने उत्पाद एपिगेमिया व अर्बन प्लैटर ब्रांड नेम से बेचती है। याचिका में बताया गया है कि ये कंपनियां वनस्पति आधारित उत्पादों और पेयों की मैन्यूफैक्चरिंग, पैकेजिंग, मार्केटिंग और प्रमोटिंग का काम करती हैं।
याचिका में फूड सेफ्टी एक्ट 2006 का हवाला देकर कहा गया है कि यह कानून वनस्पति आधारित खाद्य पदार्थ और पेयों के लिए दूध, पनीर, दही और योगर्ट जैसे नाम इस्तेमाल किए जाने से रोकता है क्योंकि ये चीजें दूध, दुग्ध उत्पाद होने की अहर्ता नहीं रखते। इन पदार्थों को दूध या दुग्ध उत्पाद सिर्फ इस बिनह पर कहा जा रहा है कि ये सफेद एवं अपारदर्शी होते हैं। सच तो यह है कि इन पदार्थों को बनाने वाले तत्व पशु-जनित दूध के तत्वों से बिलकुल मेल नहीं खाते।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि वनस्पति आधारित इन उत्पादों की दूध के नाम से बिक्री होने से डेयरी फार्मिंग और पशुपालन के काम से जुड़े करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी पर बुरा असर पड़ता है। अतएव इस कारोबार में लगी कंपनियों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की जाए। याचिका में आरोप लगाया गया है कि कानून होने के बावजूद जिम्मेदार सरकारी एजेंसियां भी अपने दायित्वो को निभाने में चूकी हैं। मामले की अगली सुनवाई के लिए एक सितंबर की तारीख मुकर्रर की गई है।
नेशनल कोऑपरेटिव मिल्क फेडरेशन ऑफ इंडिया की यह याचिका एडवोकेट अभिषेक सिंह और जे अमाल आनंद के जरिए दायर की गई। इसकी सुनवाई के दौरान कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट चिक्कू मुखोपाध्याय, अभिषेक सिंह, जे अमाल आनंद, आशना चावला, कृतिका चटवाल, आकांक्षा उत्तैया और दिव्या दत्ता मौजूद थे।