…तो महीनेभर से चल रही थी अजित पवार को क्लीनचिट की तैयारी? पुराने ACB चीफ ने बनाया था आरोपी, अब लपेटे में अफसर
ज्यादातर केसों में एग्जक्यूटिव निदेशक ने टेंडर के लिए नए कॉस्ट को मंजूरी दी थी और बढ़े हुए टेंडर कॉस्ट के साथ प्रोपोजल अध्यक्ष को सौंपा गया था।

महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार के शपथ समारोह से ठीक एक दिन पहले महाराष्ट्र की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने बॉम्बे हाईकोर्ट में एक हलफनामा दायर कर सिंचाई घोटाले के आरोपी पूर्व जल संसाधन मंत्री का पक्ष लिया और कहा कि घोटाले के लिए अजीत पवार जिम्मेदार नहीं हैं। इतना ही नहीं एसीबी ने बीते 25 नवंबर को जब देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार के सीएम और डिप्टी सीएम पद से इस्तीफा देने से एक दिन पहले यानी 25 नवंबर को एसीबी ने इस घोटाले में खुली पूछताछ को भी बंद कर दिया था। अब सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या अजीत पवार के डिप्टी सीएम बनने से एक महीने पहले से ही उन्हें क्लीन चिट देने की तैयारी चल रही थी।
इस घोटाले से अजीत पवार का नाम उस वक्त सबसे पहले जुड़ा था जब तत्कालीन एसीबी प्रमुख संजय बार्वे ने 26 नवंबर, 2018 को नागपुर बेंच के सामने एक एफेडेविट फाइल करते हुए कहा कि सिंचाई प्रोजेक्ट के लिए कॉन्ट्रैक्ट देने में पवार की भूमिका थी। इस एफेडेविट में VIDC के अध्यक्ष पर दो आरोप लगाए गए। इनमें पहला आरोप टेंडर के कॉस्ट से संबंधित था जबकि दूसरा आरोप कॉनट्रैक्टर के लिए किए गए लामबंदी से संबंधित था जिसका उल्लेख टेंडर बुकलेट में नहीं किया गया था। तत्कालीन सरकार ने जांच के दौरान तकनीकि जानकारियां हासिल करने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम भी बनाई थी।
ज्यादातर केसों में एग्जक्यूटिव निदेशक ने टेंडर के लिए नए कॉस्ट को मंजूरी दी थी और बढ़े हुए टेंडर कॉस्ट के साथ प्रोपोजल अध्यक्ष को सौंपा गया था। कुछ मामलों में जल संसाधन विभाग के प्रिंसिपल सचिव के द्वारा भी अनुमति प्रदान की गई थी। लेकिन किसी ने भी टेंडर के बढ़े हुए दाम पर एतराज नहीं जताया। अजित पवार को क्लीन चिट देने के साथ ही इन दोनों गड़बड़ियों का दोषारोपण जलसंसाधन के प्रिंसिपल सेक्रेट्री और VIDC के एग्यक्यूटिव डायरेक्टर पर किया गया है।
जून 2011 में महाराष्ट्र के जल संसाधन विभाग ने 48.26 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई की बात कही। इसमें पूरे हो चुके प्रोजेक्ट और जिन प्रोजेक्टों पर काम चल रहा था उनकी कुल संख्या 3,712 थी। जून 2012 तक कुल 32.51 लाख हेक्टेयर में सिचाई हुई। साल 2001-2002 और 2011-12 के बीच सीएजी ने अपनी कई रिपोर्टों के जरिए बताया कि इसमें लंबे समय की योजनाओं की कमी थी, प्रोजेक्ट्स की प्राथमिकताएं और उन्हें खत्म करने में देरी हुई तथा बिना वन विभाग की अनुमति के काम पूरा कर दिया गया।