देश में बीते पांच माह के दौरान 49 बाघों की मौत हुई है। सरकारी आंकड़ा बताता है कि मरने वाले अधिकतर बाघ संरक्षित क्षेत्र के अंदर ही थे। इनमें से एक शावक की मौत बीते सप्ताह ही सामने आई है। यह बच्चा उत्तर प्रदेश (पीलीभीत) बाघ संरक्षित क्षेत्र के अंदर मरा हुआ पाया गया है, जबकि इससे पूर्व इसी माह में तेलंगाना के बाघ संरक्षित क्षेत्र में एक व्यस्क बाघ की मौत हुई थी।
केंद्र सरकार ने बाघों के संरक्षण के लिए राष्टीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) गठित किया है। एनटीसीए इस प्रकार की घटनाओं की निगरानी करता है और उसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार करता है। देश में 2022 के शुरुआत से ही बाघों की मौत के मामले सामने आ रहे हैं। जनवरी में सबसे अधिक 14 बाघों की मौत दर्ज की गई थी।
इसके बाद अप्रैल तक यह आंकड़ा 10 के ऊपर ही रहा है। मई माह के दौरान बाघ संरक्षित क्षेत्र में यह दूसरी मौत का मामला है। बीते पांच माह में जिन 49 बाघों की मौत हुई है, उनमें से 30 बाघ संरक्षित दायरे के अंदर ही थे। एनटीसीए की रिपोर्ट बताती है कि मई 2022 तक जो 49 बाघ मारे गए हैं। उनमें 12 मादा और 15 व्यस्क थे। इसके अतिरिक्त 22 ऐसे भी बाघ पाए गए थे जिनकी पहचान नहीं हो पाई थी।
इन संरक्षित क्षेत्रों के दायरे से सबसे अधिक मृत बाघ पाए गए हैं। बीते वर्ष में देश के अंदर 127 बाघों की मौत हुई थी। उनमें महाराष्ट कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश के वन क्षेत्र शामिल हैं। ये वन क्षेत्र पर्यावरण मंत्रालय के सहयोग से राज्यों में स्थापित किए गए हैं।
बाघ संरक्षित क्षेत्रों को बाघों को घूमने-फिरने के लिए लम्बा क्षेत्र देने के लिए स्थापित किया गया है। इसकी मदद से नदियों और पहाड़ों के साथ-साथ बाघ एक राज्य से दूसरे राज्य में आ सकते हैं। देश में जो 32 बाघ कारिडोर हैं,वे करीब 14,289.37 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले हुए हैं, जो कि देश की भौगोलिक स्थिति का 1.62 फीसद वन क्षेत्र है। वर्ष 2011 और 2021 के बीच देश में 37.15 किलोमीटर वन क्षेत्र बढ़ा है, जो कि 0.32 फीसद की बढ़ोतरी है।