ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों के 14 शिक्षाविदों ने मेलबर्न में ऑस्ट्रेलिया इंडिया इंस्टीट्यूट (Australia India Institute – AII) से अपना एफिलेशन (संबद्धता) छोड़ दिया है। इन लोगों का आरोप है कि भारत में सत्तारूढ़ प्रतिष्ठान के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने में एआईआई की अनिच्छा है। इस्तीफा देने वाले शिक्षाविदों ने यह भी कहा है कि एआईआई ने भारतीय सरकार की आलोचना को दबाते हुए उसके प्रोपोगेंडा को बढ़ावा दिया। इन अकैडमीशियंस ने इसके पीछे एक लेख और पॉडकास्ट का हवाला भी दिया है।
दरअसल, इस साल 29 मार्च को एआईआई से संबद्धता के साथ 13 शिक्षाविदों ने मेलबर्न विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर डंकन मास्केल को संबोधित एक त्याग पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। इस चिट्ठी में एआईआई पर भारत सरकार के “प्रचार”, “अनदेखी” को बढ़ावा देने और “भारतीय अल्पसंख्यक के हाशिए पर” पर कार्रवाई करने का आरोप लगाया गया था। इसके बाद एक और अकादमिक साथी ने इस्तीफा दे दिया।
पत्र में कहा गया, “अदृश्य असमानताओं (वर्ग और जाति को छूने वाली) पर एआईआई के एक साथी की बात पर कुछ निंदा के बाद एआईआई ने गांधी पर हमलों (मेलबर्न में उनकी प्रतिमा के सिर को धड़ से अलग करने के प्रयास को देखते हुए) पर चर्चा करने के मकसद से एआईआई के दो साथियों (जिसमें भाषण देने वाला भी शामिल) की ओर से तैयार किए गए एक पीस (लेख) के प्रकाशन का समर्थन करने से मना कर दिया था। खत में बताया गया, “उन्हें बताया गया कि एआईआई ने ‘इस विषय से थोड़ा दूर रहने’ का फैसला किया है।”
पत्र के मुताबिक, “हमने यह भी पाया कि भारत और विदेशों में इन दो साथियों की ओर से कास्ट एंड कॉरपोरेशन (Caste and the Corporation) नाम का एक ईयर टू एशिया पॉडकास्ट को भी एआई की वेबसाइट पर शामिल नहीं किया गया, जबकि अन्य लोगों को शामिल किया है।”
दोनों ही चीजें (निबंध और पॉडकास्ट) मेलबर्न यूनिवर्सिटी में प्रबंधन और विपणन विभाग के प्रोफेसर हरि बापूजी और प्रोफेसर डॉली किकॉन के प्रोजेक्ट थे। इस्तीफा देने वाले 14 लोगों में बापूजी भी शामिल हैं। “अंडरस्टैंडिंग मॉडर्न अटैक्स ऑन गांधी” शीर्षक वाला निबंध महात्मा गांधी पर लक्षित हमलों के पीछे संभावित कारणों की जांच करना चाहता है, जिसमें उनकी मूर्तियों की तोड़-फोड़ भी शामिल है।
क्या था निबंध और पॉडकास्ट में?: मेलबर्न यूनिवर्सिटी के मंच परसूट (Pursuit) की तरफ से बाद में प्रकाशित निबंध में कहा गया था, “गांधी का जीवन और भविष्य के लिए उनकी दृष्टि भारत के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों और सभी धार्मिक समूहों के अधिकारों से जुड़ी है। धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार वास्तव में भारत के संविधान में निहित है। लेकिन यह सिद्धांत अब पक्ष खोते जा रहे हैं, क्योंकि हिंदू राष्ट्रवाद का प्रचलन बढ़ रहा है और संविधान बदलने की संभावनाओं पर भी अब विचार किया जा रहा है।”
वहीं, 47 मिनट के पॉडकास्ट में बताया गया था, “भारत और विदेश में जाति और निगम” (Caste and Corporation) शिक्षा से लेकर निजी निगमों और नौकरशाही तक जाति व्यवस्था की उत्पत्ति और विभिन्न क्षेत्रों पर इसके प्रभाव का पता लगाता है।”
मेलबर्न विवि ने कही यह बातः यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न के प्रवक्ता ने बताया- विवि और एआईआई इन शिक्षाविदों ( हाल में इस्तीफा देने वाले) के फैसले का सम्मान करते हैं। हम (विवि) एआईआई, उसके बोर्ड और मुख्य कार्यकारी अधिकारी की रणनीतिक दिशा के समर्थन में दृढ़ता से खड़े हैं। मेलबर्न विवि अकादमिक स्वतंत्रता और भाषण की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है। वे हमारे मूल मूल्यों और पहचान के केंद्र में हैं।” प्रवक्ता ने ई-मेल पर बताया, “विवि पिछले दो साल से इस क्षेत्र में हमारी नीतियों को मजबूत करने पर काम कर रहा है और इस प्रकार के किसी भी आरोप को बहुत गंभीरता से लेता है।”
विवि की टिप्पणी से कई शिक्षाविद असमहतः हालांकि, इस्तीफा देने वाले कुछ शिक्षाविद इससे असहमत हैं। नाम न बताने की शर्त पर उनमें से एक ने कहा, “यह एआईआई के निर्णय को सौम्य संपादकीय निर्णय (Benign Editorial Judgment) के रूप में चिह्नित करने के लिए विश्वसनीयता पर दबाव डालता है। एआईआई के लिए चुना गया मिशन और ओरिएंटेशन काम के साथ असहज रूप से बैठता है, जिसे भारत सरकार की ओर से प्रतिकूल रूप से देखा जा सकता है। इसके अलावा, एआईआई का समर्थन करने वाली घटनाओं और सामग्री का एक पैटर्न रहा है, जिसने मौजूदा भारत सरकार की तारीफ करते हुए प्रोपोगेंडा का स्वाद लिया है।”
AII को एक नजर में जानिए: एआईआई की स्थापना साल 2008 में मेलबर्न यूनिवर्सिटी (University of Melbourne) में की गई थी। भारतीयों के खिलाफ घृणा अपराध के मद्देनजर यह काम ऑस्ट्रेलियाई सरकार की ओर से किया गया था, जिसके लिए आठ मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान दिया गया था। इसका मकसद “अकादमिक रिसर्च की विभिन्न धाराओं के माध्यम से दोनों मुल्कों की अधिक समझ हासिल करना” था।