101 साल के रिटायर्ड टीचर का जज्बा, 150 से ज्यादा गैर-ब्राह्मण महिलाओं को बनाया पुरोहित
इन सभी महिलाओं ने छह महीने का पत्राचार कोर्स पूरा किया जिसमें चार चरण थे। हर चरण पर एक लिखित परीक्षा होती है। कई महिलाओं को उनकी आखिरी परीक्षा में 100 में से 80-90 अंक मिले।

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के मोहोपदा गांव में 101 साल के एक सेवानिवृत्त अध्यापक रामेश्वर कार्वे ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में अनूठी पहल की है। उनकी बदौलत पिछले 18 सालों में, यहां की 150 से ज्यादा गैर-ब्राह्मण, कम पढ़ी-लिखी महिलाएं संस्कृत की डिग्रियां पाकर प्रशिक्षित और प्रमाणित पुरोहित बन गई हैं। इन महिलाओं ने अपने-अपने घरों में गणेशोत्सव के दौरान अपनी पहली पूजा कराई। शुरू में इन्हें थोड़े विरोध का सामना करना पड़ा, मगर अब मुंबई में लोग इन्हें पूजा कराने के लिए बुला रहे हैं। गणेशोत्सव के दौरान जन्म, मृत्यु और हर तरह की पूजा होती है। इन महिलाओं ने शादियां, जनेऊ संस्कार और शनि शांति पूजा तक कराई है, जो आमतौर पर पुरुषों द्वारा की जाती है। बमुश्किल दो साल पहले, अहमदनगर के शनि शिंग्नापुर मंदिर में प्रवेश के लिए महिलाओं को विरोध तक करना पड़ा था।
‘संस्कृत शास्त्री’ कोर्स, जिसे स्नातक के समकक्ष माना जाता है, करने वाली इन महिलाओं ने अपनी उपलब्धियां रामेश्वर कार्वे को समर्पित की हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के अनुसार, 54 वर्षीय सुरेखा पाटिल ने कहा, ”कॉलेज छोड़ने के सालों बाद संस्कृत सीखना बहुत मुश्किल था। 2-5 बजे की क्लासेज के लिए मैं घर के काम या बच्चों का बहाना बनाती थी, लेकिन हमारे गुरुजी में बहुत धैर्य था।” पाटिल ने 2000 में संस्कृत और श्लोक सीखना शुरू किया था।
कार्वे की बेटी वसंती देव ने अखबार से कहा कि उनके शिक्षक पिता ने रायगढ़ में 5 से ज्यादा स्कूल शुरू किए हैं। देव ने कहा, ”उनका (कार्वे) फोकस हमेशा शिक्षा पर ही रहा, खासकर संस्कृत, वह भी गैर-ब्राह्मण लोगों के लिए।” बेटी के अनुसार, ”कार्वे ने 1920 के दशक में नजरबंदी के दौरान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर से मुलाकात की थी।”
इन सभी महिलाओं ने छह महीने का पत्राचार कोर्स पूरा किया जिसमें चार चरण थे। हर चरण पर एक लिखित परीक्षा होती है। कई महिलाओं को उनकी आखिरी परीक्षा में 100 में से 80-90 अंक मिले। महिलाओं क अनुसार, लोग बदलाव के लिए तैयार हैं, मगर पूरी तरह से सबकुछ बदलने में बहुत समय लगेगा।
52 वर्षीय ललिता दलवी ने अखबार से कहा, ”आज भी जब हम लोगों के घर पूजा के लिए जाते हैं तो उनके रिश्तेदार पूछते हैं कि क्या हमें अनुष्ठान कराना आता भी है या हम मंत्र सही से बोल लेंगे या नहीं। हम मुस्कुरा देते हैं और काम पर लग जाते हैं।