थैलेसीमिया एक ऑटोसोमल रिसेसिव ब्लड डिसऑर्डर यानि कि एक आनुवांशिक (जेनेटिक) रक्त विकार है, जो कि शरीर की स्वस्थ हीमोग्लोबिन बनाने की क्षमता को प्रभावित करता है। हीमोग्लोबिन आयरन से भरपूर प्रोटीन है, जो कि लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है। हीमोग्लोबिन का मुख्य रूप से कार्य शरीर के सभी हिस्सों में ऑक्सीजन पहुंचाने और फेफड़ों से कार्बन डाइऑक्साइड निकालने का काम होता है। ऐसे में इस बीमारी से पीड़ित महिलाओं में गर्भावस्था को लेकर कुछ समस्याएं देखने को मिल सकती है, इसलिए इस बीमारी का समय पर इलाज होना जरुरी है। आइए थैलेसीमिया से पीड़ित महिलाओं में गर्भावस्था की प्लानिंग से लेकर इससे जुड़ी गंभीरता के बारे में स्त्री एवं प्रसुति रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रणाली आहाले से जानते हैं-
थैलेसीमिया क्या है ?
जनसत्ता डॉट कॉम से बातचीत करते हुए डॉक्टर प्रणाली ने बताया कि थैलेसीमिया एक जेनेटिक बीमारी है; जिसमें यह रोग परिवार में एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी तक जा सकता है। इसलिए इस प्रकार की अनुवांशिक बीमारियों से बचने के लिए आपसी विवाह से बचना चाहिए। वहीं अगर एक स्वस्थ व्यक्ति की बात की जाए तो उसके शरीर के कुल वजन का सात प्रतिशत खून उसके शरीर में होता है। जिसकी मात्रा करीब 4.7 से 5.5 लीटर हो सकती है।
डॉक्टर प्रणाली ने बताया कि यह खून बोन मैरो में बनता है और जिस भी किसी को थैलेसीमिया की बीमारी होती है, उस महिला के हीमोग्लोबीन में गड़बड़ी आ जाती है। थैलेसीमिया रोग होने पर शरीर में रेड ब्लड सेल्स (RBC) नहीं बन पाते हैं जिसके कारण शरीर में खून की कमी होने लगती है और यदि किसी मरीज को थैलेसीमिया की शिकायत काफी अधिक है तो 25-30 साल में उसके शरीर में इतनी समस्याएं आने लगती हैं कि उसकी मृत्यु भी हो सकती है।
थैलेसीमिया कितने प्रकार का होता है?
डॉक्टर प्रणाली के मुताबिक थैलेसीमिया के बहुत से प्रकार हो सकते हैं। इसके लक्षण और गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि कितने जींस म्यूटेट हुए हैं और हीमोग्लोबिन का कौन सा हिस्सा प्रभावित हुआ है। वैसे आम तौर पर दो मुख्य तरह के थैलेसीमिया होते हैं, जिनमें एल्फा थैलेसीमिया, जो कि करीब चार जींस तक में म्यूटेशन आने से होता है। और दूसरा बीटा थैलेसीमिया, जो कि 200 से ज्यादा जींस में परिवर्तन होने से हो सकता है, और यह एल्फा थैलेसीमिया की तुलना में बहुत ज्यादा आम है।
कैसे पता चलेगा कि कोई महिला थैलेसीमिया की शिकार है?
डॉक्टर प्रणाली का कहना है कि थैलेसीमिया पुरुष या महिला किसी में भी हो सकता है। अगर कोई महिला गर्भधारण की योजना बना रही हैं तो इस बारे में अपनी डॉक्टर से बात करना चाहिए। ऐसे में कई ब्लड टेस्ट करवाने होंगे और यदि लगता है कि आपके पति को थैलेसीमिया है और गर्भधारण करना चाह रही हैं या फिर आप गर्भवती हैं, तो उनके पति को भी ब्लड टेस्ट करवाना होगा।
गर्भधारण करने से पहले यदि पति-पत्नी ने HPLC टेस्ट नहीं कराया और उन्हें अंदाजा हो कि उनको थैलेसीमिया माइनर है, तो प्रेग्नेंट होने के 10वें से 12वें सप्ताह के बीच उन्हें म्यूटेशन टेस्ट करा लेना चाहिए और यदि थैलेसीमिया के लक्षण पाए जाएं, तो गर्भपात करा लेना ही बेहतर उपाय है। यह गर्भपात कानूनन सही भी माना जाता है। लेकिन डॉक्टर का मानना है कि सभी मामलों में गर्भपात जरूरी नहीं है। यदि थैलेसीमिया मेजर का प्रसव पूर्व निदान किया जाता है तो गर्भपात की सलाह दी जाती है।
थैलेसीमिया का मेरी गर्भावस्था पर क्या असर पड़ेगा?
डॉक्टर प्रणाली बताती हैं कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपको किस प्रकार का थैलेसीमिया है। विशेष रूप से बीटा-थैलेसीमिया मेजर जैसे गंभीर रूपों से पीड़ित महिलाओं को बार-बार, ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरुरत होती है। कई रिसर्च में भी यह बात सामने आई है कि इस दौरान शरीर में आयरन की अधिकता हो जाती है जिससे उनके प्रजनन कार्य को नुकसान पहुंचता है और हाइपोगोनैडोट्रोपिक हाइपोगोनाडिज्म जैसी बीमारियां पैदा हो सकती हैं। वहीं कुछ प्रकार के थैलेसीमिया आपके लिए गर्भधारण करना मुश्किल बना सकते हैं और इनमें विशेष देखभाल की जरुरत होती है। कुछ अन्य तरह के थैलेसीमिया का प्रजनन और गर्भावस्था पर इतना गंभीर असर नहीं होता। ऐसी स्थिति में आपकी डॉक्टर आपको इसके बारे में बता देंगी।
अगर कोई महिला गर्भवती है और उसे थैलेसीमिया है, तो क्या करना चाहिए?
डॉक्टर प्रणाली का कहना है कि यदि आपने गर्भधारण करने से पहले किसी स्त्री रोग या विशेषज्ञ डॉक्टर से सलाह नहीं ली थी, तो इस दौरान डॉक्टर आपकी स्वास्थ स्थिति को जानने के लिए हीमाटोलॉजिस्ट के पास इलाज के लिए भेज सकते हैं। हालांकि अगर कोई महिला थैलेसीमिया माइनर से पीड़ित है, तो उन्हें आयरन की कमी (एनीमिया) होने का खतरा ज्यादा होता है। ऐसे में आयरन से संबंधित सप्लीमेंट लेना चाहिए।