Subhash Chandra Bose Jayanti 2020 Speech, Essay, Nibandh, Bhashan, Quotes: भारत की स्वतंत्रता में अद्वितीय योगदान देने वाले महान नेताजी सुभाषचंद्र बोस का दिया नारा कि तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा सबसे लोकप्रिय नारा माना जाता है। लोकप्रिय इतना कि सुभाषचंद्र जी से ज्यादा उनके नारे की धूम तब भी मची हुई थी जब देश को इसकी सबसे अधिक आवश्यकता रही होगी और आज भी बहुतेरे लोग इस नारे को ढाल बनाकर अपने अपने आंदोलनों को सही ठहराने में कोई संकोच नहीं करते हैं।
अंतर सिर्फ यह है कि सुभाष का खून अब किसी सोशल मीडिया के लाइक की तरह बन गया है। खून की गुरुता महज एक बटन की निमिषीय क्लिक के हल्केपन का शिकार हो गई है। आज लोग उस नारे की तर्ज पर सोशल मीडिया में तुम मुझे लाइक दो मैं तुम्हे लाइक दूंगा की अंधी दौड़ में भागे जा रहे हैं।
गहराई से विचार और विश्लेषण किया जाए तो ये जो लाइक का खुमार स्वतंत्र भारत के इन देशवासियों को चढ़ा हुआ है, उसकी जड़ें सुभाष और उनके जैसे अनगिनत भारतीय शहीदों के खून से ही सिंची हुई हैं। हांलाकि यह वो खून कदापि नहीं था जो देश में धार्मिक विवादों को तूल देना चाहता रहा होगा। इस खून ने ऐसी किसी लाइक की इजाजत नहीं दी थी कि भारत के लोग सोशल मीडिया जैसी अतिआधुनिकता वाले युग में भी अपनी नासमझी का परिचय महज लाइक और अनलाइक के बटनों को दबाकर दें। निसंदेह यह भारतीयों की डिजिटल निरक्षरता का प्रमाण है। जिसे बटनें दबाना तो आ गया, पर सही मायनों में डिजिटल समझ अभी उसके दिमाग से कोसों दूर है।
सुभाष का खून आजादी देने का आव्हान करता था, लेकिन आज की लाइक पद्धति की आजादी का अर्थ उससे कहीं मिलान ही नहीं कर पाता है। सुभाष के खून ने जिन आंदोलनों को करवाया था, उसमें देशप्रेम की महक आज भी महसूस की जा सकती है, लेकिन देश में आज चारों तरफ हो रहे आंदोलनों से सड़ाध आती है, चंद रुपयों में बिकने की बू आती है, देश के युवाओं को बरगलाने की स्वार्थी गंध आती है। और इस सबसे बढ़कर ताज्जुब तो इस बात का होता है कि आज का भारतीय युवा कितना कमजोर है, जो अपनी सोच नहीं रख पाता, जो अपने मस्तिष्क की सफाई बड़ी आसानी से लाइक और अनलाइक की बटनों से हर किसी को कर लेने देता है। सोचिए, क्या सुभाष को कोई बरगला सका था। नहीं, संभव ही नहीं था, उन्होंने खून की मांग अपने आत्मल के आधार पर ही की रही होगी। तभी लोगों की सच्ची लाइक खून के तौर पर उनको मिला करती थीं।
अभी भी बहुत देर नहीं हुई है, देश के युवाओं को अपनी लाइक सुभाष के खून की तरह बनानी चाहिए। देश इस समय युवाओं में उन सुभाषों को खोज रहा है, जिसने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने ‘सुप्रीम कमाण्डर’ के रूप में सेना को सम्बोधित करते हुए “दिल्ली चलो!” का नारा इसलिए नहीं दिया था कि दिल्ली में उत्पात मचाना था या कि किसी उच्चशिक्षा के मंदिर को लहूलुहान करना था।
सुभाष के जो नारे भारतीय युवा अपनी ज़ुबान से कर रहे हैं, उसे उतनी ही शिद्दत से थोड़ा दिलोदिमाग से भी करें, तो सुभाष का खून और सोशल मीडियाई आधुनिक युवाओं की लाइक एक भी बन सकती है। लाइक डिजीटल खून का काम कर सकती है, तब उनको पूरा सही अधिकार बन सकेगा कि वे दहाड़ें कि तुम मुझे लाइक दो मैं तुम्हे लाइक दूंगा।