वरिष्ठ पत्रकार संजय पुगलिया (Sanjay Pugalia) एनडीटीवी (NDTV) के प्रमोटर बोर्ड का हिस्सा बन गए है। NDTV के संस्थापकों, प्रणय रॉय और राधिका रॉय के इस्तीफे के बाद जिन 3 लोगों को बोर्ड में बतौर डायरेक्टर शामिल किया गया, उनमें संजय पुगलिया भी शामिल हैं। आपको बता दें कि अडानी ग्रुप ने साल 2021 में संजय पुगलिया को अपनी मीडिया विंग AMG Media में बतौर CEO और प्रधान संपादक के रूप में नियुक्त किया था।
कौन हैं संजय पुगलिया? (Who is Sanjay Pugalia?)
संजय पुगलिया (Sanjay Pugalia) मूल रूप से झारखंड के साहिबगंज जिले के रहने वाले हैं। पुगलिया दो भाई हैं और इनके पिता जूट, कपड़ा और खाद्यान्न का व्यापार करते थे। संजय पुगलिया की पत्नी का नाम संगीता पुगलिया हैं, । मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक संजय पुगलिया के माता-पिता नहीं चाहते थे कि वो पत्रकार बनें इसलिये इसका तीखा विरोध भी किया।
परिवार चाहता था बिजनेस करें या IAS-IPS बनें पुगलिया
संजय पुगलिया (Sanjay Pugalia) कहते हैं कि मैंने शुरू से ही तय कर लिया था कि मुझे पारिवारिक बिजनेस में कतई नहीं जाना है, बल्कि अपना खुद का नाम बनाना है। indiantelevision.com को दिये एक इंटरव्यू में संजय पुगलिया कहते हैं कि ‘मैं बिजनेस नहीं करना चाहता था। मेरे सामने IAS या IPS जैसे विकल्प रखे गए थे, लेकिन मैं पढ़ाई में भी कुछ खास नहीं था। मन नहीं लगता था और हमेशा खुद से सवाल करता था कि ये क्यों पढ़ रहा हूं? इसका क्या हासिल है।’
कुछ ऐसी है संजय पुगलिया की लाइफस्टाइल
indiantelevision.com को दिये एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि ज्यादातर वीकेंड पर वह अपनी पत्नी के साथ समय बिताना पसंद करते हैं। इसके अलावा वह कहीं मूवी देखने जाते हैं या फिर कहीं किसी शांत जगह पर डिनर करना पसंद करते हैं। पुगलिया साक्षात्कार के दौरान बताते हैं कि उन्हें यात्रा करना बेहद पसंद है। यदि किसी को घूमना पसंद है तो उसे लॉस वेगास की यात्रा जरूर करनी चाहिए। इसके अलावा उन्होंने कहा कि उन्हें साउथ मुंबई में सी लाउन्ज पर समय बिताना पसंद है।
पत्रकारिता में कैसे आए संजय पुगलिया?
संजय पुगलिया कहते हैं कि 80 का दशक बहुत उथल-पुथल भरा था। इमरजेंसी के ठीक बाद मीडिया, लोकतांत्रिक मसलों पर खूब मुखर हो गई थी। इस दौर में एक दिन मेरी निगाह ‘रविवार’ मैगजीन पर पड़ी, जिसके संपादक एसपी सिंह थे। मैं उस मैगजीन को देखकर इतना प्रभावित हुआ कि उसी वक्त पत्रकारिता में अपना करियर बनाने का फैसला ले लिया
2000 रुपये की सैलरी पर मुंबई आ गए
संजय पुगलिया ने अपने परिवार और खासकर, पिता के तमाम विरोध के बावजूद साल 1982 में अपना घर छोड़ दिया और मुंबई आ गए। यहां 2000 रुपये के मासिक वेतन पर “नवभारत टाइम्स” में नौकरी की शुरुआत की।
पुगलिया ने नवभारत टाइम्स के साथ दस साल तक काम किया और बाद में दिल्ली आ गए। यहां 3 साल तक “बिजनेस स्टैंडर्ड” के साथ काम किया और बाद में “आजतक” में डिप्टी एग्जिक्यूटिव प्रोड्यूसर के रूप में जॉइन किया। फिर साल 2000 में कुछ दिनों के लिए ऑस्ट्रेलिया के नाइन नेटवर्क से जुड़े। साल 2001 में संजय पुगलिया ने ज़ी न्यूज़ में बतौर संपादक ज्वाइन किया।
आपातकाल में देना चाहते थे गिरफ्तारी
द क्विंट (The Quint) के लिए लिखे एक संस्मरण में संजय पुगलिया ने विस्तार से लिखा है कि किस तरह इमरजेंसी के दिनों में वे सक्रिय रहे थे। पुगलिया लिखते हैं कि आपातकाल से ठीक पहले जयप्रकाश (जेपी) का आंदोलन तेज हो गया था। तब गिरफ्तारियां देने की प्रथा थी। मैंने भी सोचा या था कि विरोध प्रदर्शनों में शामिल होऊंगा और अपनी गिरफ्तारी दूंगा, लेकिन मेरी उम्र आड़े आ गई।
गिरफ़्तारी नहीं हुई तो जेल की तरफ पैदल ही निकल पड़े
संजय पुगलिया लिखते हैं कि मेरी गिरफ्तारी नहीं हुई तो जेल की तरफ पैदल ही चल पड़ा था। जब पहुंचा तो देखा जेल छोटी थी और सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने जेल के बाहर एक खुला जेल जैसा शिविर स्थापित किया जहां इन गिरफ्तार लोगों को एक दिन रहना था। पिकनिक जैसा लग रहा था। जब मैं वहां पहुंचा तो मुझे उस ग्रुप में शामिल होने से किसी ने नहीं रोका। मैंने खुद को दिलासा दिया कि मुझे भी गिरफ्तार कर लिया गया है।
इमरजेंसी में भाई के नाम जारी हो गया था गिरफ़्तारी वारंट
पुगलिया लिखते हैं कि आपातकाल में मैं मुंबई घूमने गया था तभी एक ट्रंक कॉल आई और मुझे वापस घर आने के लिए कहा गया। मेरे बड़े भाई की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी किया गया था। यह कोई मामूली वारंट नहीं था; इसे डिफेंस इंडिया रूल (डीआईआर) के तहत जारी किया गया था। जिससे जमानत की बहुत कम संभावना बची थी। यह आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (Maintenance of Internal Security Act (MISA)) की तरह यह भी था। संयोग से मेरे बड़े भाई उस दिन किसी काम से भागलपुर गए हुए थे।