Gandhi Jayanti: महात्मा गांधी पर भी लगा था देशद्रोह का मुकदमा, यहां से तैयार करें गांधी जयंती पर स्पीच
अगर आप अपने स्कूल में महात्मा गांधी जयंती पर स्पीच करने की तैयारी में लगे हुए हैं तो ये खबर आपके काम की है। गांधी जी पर अपना भाषण तैयार करने में ये स्टोरी आपको मदद कर सकती है। आप गांधी जी के आंदोलनों को लेकर भी स्पीच तैयार कर सकते हैं।

‘दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल…साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’। अंग्रेजों के खिलाफ स्वाधीनता की लड़ाई में महात्मा गांधी को एक बार देशद्रोह का भी मुकदमा सहना पड़ा था। मार्च 1922 में अंग्रेजी सरकार ने समाचार पत्र यंग इंडिया में लिखे बापू के लेख को देशद्रोह पूर्ण बताकर उनके खिलाफ देशद्राेह (Sedition) का मुकदमा चलाया था। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सुनवाई के दौरान जब जज के सामने गांधी जी ने अपने उपर लगे सभी आरोपों को स्वीकार कर लिया और कानून के तहत तय सबसे बड़ी सजा देने को कहा, तो जज का भी सिर शर्म से झुक गया। मतलब साफ था कि अंग्रेजी हुकूमत के इरादे नेक नहीं थे।
गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनकी मां का नाम पुतलीबाई और पिता करमचंद गांधी थे। मोहनदास करमचंद गांधी अपने परिवार में सबसे छोटे थे लेकिन उन्होंने बहुत बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं। इसीलिए उन्हें राष्ट्रपिता भी कहा जाता है। गांधी जी पर जितना लिखा जाए उतना कम है। उनकी 150वीं सालगिरह मनाने के लिए स्कूलों में बच्चे तक तैयारियों में जुटे हैं। गांधी जी पर अपना भाषण तैयार करने में ये स्टोरी आपको मदद कर सकती है। आप गांधी जी के आंदोलनों को लेकर भी स्पीच तैयार कर सकते हैं।
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बापू के सिद्धांतों में है ये 5 मैनेजमेंट फंडा (Gandhi Jayanti: 5 Management Tips)
- महात्मा गांधी हमेशा दूसरों की भावनाओं की कद्र करते थे। गुस्से में नकारात्मक भावनाएं नहीं बल्कि वह शांतिपूर्ण विरोध से सामने वाले को हराते थे।
- बापू को आत्मनिर्भर ही सभी ने देखा है। उन्हीं के आश्रम में कपड़ा से लेकर भोजन तक तैयार होता था। मैनेजमेंट का ये फंडा आज भी बेहद कारगर है कि अपनी निर्भरता कम से कम रखने में ही तरक्की है।
- गांधी जी की संवाद शैली और विचार प्रस्तुति ही उनकी जबरदस्त ताकत थी। उनकी इसी शैली से अंग्रेज हमेशा उनसे डरते रहे और भारतीय हमेशा उन्हें फॉलो करते रहे।
- टाइम मैनेजमेंट में भी गांधी जी का कोई मुकाबला नहीं था, उन्होंने कभी नहीं कहा कि वह व्यस्त हैं। आश्रम में श्रमदान, हजारों पत्रों का जवाब, पूजा से टहलने तक का भी समय निकाल लिया करते थे।
- जनसंपर्क गांधी जी का अहम हथियार था। उन्होंने दांडी मार्च निकाला जिसने देशव्यापी आंदोलन छेड़ दिया। इससे अच्छा जनसंपर्क का उदाहरण क्या मिलेगा। विरोध के बावजूद उन्होंने अनुयायियों के साथ मार्च शुरू किया। वो चलते गए और कारवां बनता गया।
(Champaran Satyagrah) चंपारण व खेड़ा सत्याग्रह था बापू का पहला आंदोलन
भारत आने के बाद गांधी जी ने चंपारण सत्याग्रह चलाया, जिसके जरिए उन्होंने 1917 में बिहार के चम्पारण जिले में किसानों को अंग्रेजों द्वारा जबरदस्ती नील की खेती कराये जाने से मुक्ति दिलाई। इसके बाद इसी साल उन्होंने गुजरात प्रदेश के खेड़ा जिले में बाढ़ और अकाल की स्थिति होने के बावजूद लगान वसूले जाने का अहिंसक विरोध कर अंग्रेजों को समझौता करने पर मजबूर किया।
बापू की 150वीं जयंती पर पढ़िए उनके अनमोल विचार
इन सफल आन्दोलनों कि वजह से गांधी जी की कीर्ति पूरे भारत में फैल गई थी। आंदोलनों की सफलता के बाद ही उन्हें गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा “महात्मा” और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस द्वारा “राष्ट्रपिता” की उपाधि मिली। बाद में उन्हें सभी इसी नाम से पुकारने लगे।
खिलाफत मूवमेंट
चंपारण के बाद उन्होंने भारतीय मुसलमानों के खिलाफत मूवमेंट को अपना सहयोग प्रदान किया। गांधी जी ने मुसलमानों को भी अपने पक्ष में कर लिया और देश में हो रहे हिन्दू -मुस्लिम दंगों पर कुछ सालों के लिए लगाम लग गयी।
Highlights
15 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से ये फैसला किया कि 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाया जाएगा। गांधी जी ने अहिंसा के रास्ते चलते हुए दक्षिण अफ्रीका में रह रहे 75000 भारतीयों को अधिकार दिलाए। बापू को विश्वास था कि हिंसा के रास्ते पर चलकर कभी अधिकार नहीं पा सकते। उन्होंने विरोध के लिए सत्याग्रह का रास्ता चुना। सत्याग्रह शब्द संस्कृत के सच और आग्रह शब्द से लिया गया है।
महात्मा गांधी यानी बापू ने हमें सिखाया, परिस्थिति कैसी भी हो, सच का रास्ता नहीं छोड़ना चाहिए। हर लड़ाई खून खराबे से ही नहीं जीती जाती। अहिंसा के रास्ते पर चलकर भी जीत तय है। महात्मा गांधी के इसी सिद्धांत को पूरे विश्व ने माना और आज अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस भी मनाया जाता है।
रामधारी सिंह दिनकर ने भी बापू के लिए कुछ ऐसा ही लिखा था:
ली जांच प्रेम ने बहुत, मगर बापू तू सदा खरा उतराशूली पर से भी बार-बार, तू नूतन ज्योति भरा उतरा
महात्मा गांधी आज भी जिंदा हैं। जी हां! गांधी एक सोच है, वो भले ही दुनिया में नहीं लेकिन अहिंसा और सत्याग्रह का जो सिद्धांत दुनिया को दे गए, आज भी उसकी हर वक्त हर बड़े छोटे काम में उसकी जरूरत रहती है। गाँधी आज भी एक विचार के रूप में जिंदा हैं, और हेमशा रहेंगे।
जो पाप से घृणा करता था पापी से नहीं…जो लक्ष्य और उसे प्राप्त करने के साधन दोनों के पवित्र होने की वकालत करता था….जो एक गाल पर थप्पड़ मारने पर दूसरा गाल आगे करने को कहता था….जिसके भजन में ईश्वर थे तो अल्लाह भी….
महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर हम आपको बता रहें है कि मॉडर्न फिजिक्स के सुपर साइंटिस्ट अल्बर्ट आइंस्टीन ने बापू के बारे में क्या कहा था। आइंस्टीन ने कहा था कि आने वाली पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करना मुश्किल होगा कि गांधी जैसा कोई व्यक्ति इस धरती पर चला करता था।
महात्मा गांधी के बारे में दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ने कहा था कि गांधी एक महान योद्धा थे। आज जब दुनिया में हिंसा का बोलबाला है, ऐसे में भी गांधी का अहिंसा और शांति का संदेश प्रासंगिक है।
महात्मा गांधी की अंतिम इच्छा कह लीजिए या वसीयत, वह हमेशा चाहते थे कि जिस कांग्रेस पार्टी ने देश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई अब उसकी सोच और संरचना बदलने की जरूरत है। वैसे तो बापू ने अंग्रेजी में लिखा था लेकिन कई लोगों ने इसका मतलब ये निकाल लिया था कि गांधी कांग्रेस को खत्म करना चाहते थे।
मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म दो अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। वो पुतलीबाई और करमचंद गांधी के तीन बेटों में सबसे छोटे थे। इस साल उनकी 150वीं जयंती मनाई जा रही है। गांधी के पिता करमचंद गांधी कठियावाड़ रियासत के दीवान थे। 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मनाता है। देश से लेकर विदेश में हर छोटी बड़ी शख्सियत गांधी के विचारों को आत्मसात करता है, उनके उपदेश हर किसी के लिए प्रेरणाश्रोत हैं और हमेशा रहेंगे।
महात्मा गांधी हर दिन 18 किलोमीटर पैदल चलते थे, यानी उनके पूरे जीवनकाल को मिला दें तो ये दुनिया के दो बार चक्कर लगाने के बराबर है। भारत जिस दिन आजादी का जश्न मना रहा था उस दिन बापू वहां मौजूद नहीं थे क्योंकि उनका उपवास था। स्वंतत्रता पाने के बाद महात्मा गांधी कांग्रेस पार्टी को समाप्त करना चाहते थे। महात्मा गांधी के नाम पर भारत में 53 प्रमुख सड़के हैं और विदेशों में 48 प्रमुख सड़कें हैं।
मोहन दास करमचंद गांधी को महात्मा किसने बनाया? रवींद्र नाथ टैगोर ने ही बापू को महात्मा से संबोधित किया था। यही नहीं अमेरिका की टाइम मैगजीन ने 1930 में महात्मा गांधी को 'मैन ऑफ द ईयर' अवार्ड से सम्मानित किया था। अपनी आत्मकथा में महात्मा गांधी ने लिखा है कि वे बचपन में बहुत शर्मीले स्वभाव के थे। दूसरों से बात करने में उन्हें बहुत झिझक हुआ करती थी। 1931 में जब पहली बार महात्मा गांधी ने रेडियो पर भाषण दिया तो सबसे पहले वह बोले,'क्या मुझे इस माइक्रोफोन के अंदर बोलना पड़ेगा'।
महात्मा गांधी का विचार था कि हिंसा कोई समाधान नहीं है और हिंसा सिर्फ प्रतिहिंसा को जन्म देती है। इसलिए आजादी के लिए बंदूक उठाया गया तो इससे रक्तपात होगा और पीड़ित साथी भारतीयों के पास इसके गलत इस्तेमाल से बचने का कोई भी उपाय नहीं होगा। गांधी उन ऐतिहासिक उदाहरणों से भी सहमत नहीं थे कि विवाद की स्थिति में लोगों ने हमेशा हिंसा का सहारा लिया है। केवल इसलिए कि अतीत में किसी ने इस दृष्टिकोण को नहीं अपनाया था, इसका मतलब यह नहीं था कि गांधी अपने विश्वास के आधार पर आगे न बढ़ते।
गांधी जी ने 24 साल की उम्र में ही दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले भारतीयों के अधिकारों की लड़ाई शुरू कर दी थी। बेशक तब उनमें कुछ पूर्वाग्रह रहे होंगे, लेकिन उससे बाहर निकलने की उल्लेखनीय यात्रा उन्होंने यहीं शुरू की और सत्याग्रह को नया मिशन बनाया।
महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्याग्रह को उस समय अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली जब 15 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी अहिंसा को अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मान्यता दे दी। अहिंसा के बदौलत ही महात्मा गांधी एक धोती के सहारे अंग्रेजों की इतनी बड़ी सशक्त हुकूमत से लड़ गए और अंतत: उन्हें हार माननी पड़ी और देश छोड़कर गए।
2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती है। उनके जन्मदिन को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। महात्मा गांधी के बारे में विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि आने वाली पीढ़ियों को इस बात का यकीन नहीं होगा कि धरती पर ऐसा भी हाड़-मांस का बना कोई आदमी कभी रहा होगा। गांधी के सत्याग्रह और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई और उन्हें देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती है। 1869 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का गुजरात के पोरबंदर में जन्म हुआ था। बापू ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ आंदोलन किया। इसके बाद अंग्रेजों से भारत को आजादी दिलाने के लिए कई आंदोलन किए। महात्मा गांधी की 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे नामक एक हिन्दू कट्टरपंथी ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
दांडी मार्च के दौरान जब बापू देश को संबोधित कर रहे थे तो उन्होंने ये कहा था— 'हमने अहिंसात्मक संघर्ष की खोज में, अपने सभी संसाधनों का उपयोग करने का संकल्प लिया है। क्रोध में कोई भी गलत निर्णय नहीं लिया जाना चाहिए।'
यह भाषण ऐतिहासिक दांडी नमक मार्च की पूर्व संध्या पर था, जिसमें महात्मा गांधी ने असहयोग के लिए, एक अच्छी तरह से सोचे-समझे कार्यक्रम का उल्लेख किया था।
दुबला-पतला, छोटा मोहन,पढ़-लिखकर, वीर जवान बना।था सत्य, अहिंसा, देशप्रेम,उसकी रग-रग में, भिदा-सना।उसके इक-इक आवाहन पर,सौ-सौ जन दौड़े आते थे।सत्य-अहिंसा दो शब्दों के,अद्भुत अस्त्र उठाते थे।
बापू ने अंग्रेजों से आजादी के लिए कई आंदोलन किए थे। उनके आंदोलन की खासियत होती थी कि वह इसे शुरू चंद लोगों के माध्यम से करते थे लेकिन अपने प्रभाव से इसको देशव्यापी बना देते थे। अंग्रेज उनके आंदोलनों से ज्यादा उनके बढ़ते प्रभाव से खौफ खाते थे। पहले आंदोलन की शुरुआत 1919 में जलियावाला बाग कांड के विरोध से हुई थी। इसमें पूरा देश बापू के साथ आ गया था। फिर गांधी जी ने नमक सत्याग्रह किया जो सफल रहा। इस आंदोलन को दांडी यात्रा भी कहते हैं। यह यात्रा 26 दिनों तक चली थी। जो 12 मार्च 1930 से लेकर 6 अप्रैल 1930 को दांडी के एक तटीय गांव में खत्म हुई थी।
125 साल पहले मोहनदास करमचंद गांधी एक कारोबारी दादा अब्दुल्ला के बुलाने पर कानूनी मदद देने वर्ष 1893 में बतौर बैरिस्टर दक्षिण अफ्रीका पहुंचे थे। यहां तीन साल में यानी वर्ष 1896 तक एक राजनेता बन थे। उन्होंने 22 अगस्त, 1894 को नटाल इंडियन कांग्रेस (एनआइसी) की स्थापना की और दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के हितों के लिए संघर्ष करते रहे। 1896 में हिंदुस्तान लौटे।
1919 में ब्रिटिश सरकार भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आन्दोलनों को कुचलने के लिए रॉलेट ऐक्ट लाई। इस एक्ट के जरिए किसी भी भारतीय पर कोर्ट में बिना केस चलाए ही उसे जेल में बंद किया जा सकता था।
असहयोग आन्दोलन चलाया और देशवासियों से अंग्रेजी हुकूमत का शांतिपूर्ण विरोध करने के लिए कहा। इस दौरान देश भर में लोग अंग्रेजी कपड़ों व वस्तुओं का बहिस्कार करने लगे और स्वदेशी चीजें अपनाने लगे थे। 13 अप्रैल 1919 को जब इसी तरह का एक विरोध प्रदर्शन जालियांवाला बाग में किया जा रहा था तब जनरल डायर ने सैकड़ों लोगों को गोलियों से भुनवा दिया था। बावजूद इसके बापू ने अहिंसा के मार्ग पर चलने का संदेश देते रहे…और धीरे-धीरे पूरा देश इस आन्दोलन का हिस्सा बना गया।