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कांग्रेसी नेताओं ने राम विलास पासवान को बताया था ‘कल का लौंडा’, गुस्से में DSP की नौकरी छोड़ लड़ा था चुनाव

राम विलास पासवान अपने दो-तीन साथियों के साथ ट्रेन में घुसे तो अलौली विधानसभा से 1957 से विधायक रहे मिश्री सदा भी ट्रेन में बैठे हुए थे। पासवान को लेकर बात करते हुए उनके समर्थकों ने ‘कल का लौंडा’ कहा था।

Ram Vilas Paswan
दिवंगत राम विलास पासवान (Photo- Express Archive)

दिवंगत राम विलास पासवान ने अलौली से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता था। साल 1969 का ये चुनाव भले ही राम विलास पासवान का पहला चुनाव था, लेकिन उन्होंने साबित कर दिया था कि वह राजनीति में बहुत आगे जाने वाले हैं। राम विलास पासवान के सामने दो ऑप्शन थे- पहला- डीएसपी की नौकरी और दूसरा- राजनीति। उन्होंने राजनीति में जाने का ही फैसला किया।

राम विलास पासवान की राजनीति में आने की सुगबुगाहट शुरू हुई तो कांग्रेसी नेताओं ने उन्हें ‘कल का लौंडा’ कहकर बुलाया था। अपनी किताब ‘रामविलास पसवान : संकल्प, साहस और संघर्ष’ में प्रदीप श्रीवास्तव ने इस घटना का विस्तार से जिक्र किया है। दरअसल राम विलास पासवान बुआ के घर से खगड़िया जा रहे थे।

राम विलास पासवान अपने दो-तीन साथियों के साथ ट्रेन में घुसे तो अलौली विधानसभा से 1957 से विधायक रहे मिश्री सदा भी ट्रेन में बैठे हुए थे। पासवान ने उन्हें नमस्कार कहा और अपनी सीट पर बैठ गए। राम विलास पासवान उस समय बड़ा नाम नहीं थे इसलिए किसी ने उन्हें पहचाना भी नहीं। मिश्री सदा अपने समर्थकों के साथ बातचीत कर रहे थे। पासवान भी उनकी बातें सुन रहे थे। इस बीच एक बात पासवान को काफी चुभ गई थी।

क्या बोले थे कांग्रेसी कार्यकर्ता? एक कार्यकर्ता मिश्री सदा को बता रहा था, ‘इस बार अलौली से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से किसी पासवान नाम के लड़के को टिकट देने का फैसला किया है। हाल ही में डीएसपी बना है। कल का लौंडा है और आपको चुनौती दे रहा है।’ मिश्री सदा ने इस पर हंसते हुए समर्थक से कहा था, ‘चलो पिछली बार 40 हजार वोट से जीते थे और इस बार 80 हजार वोट से जीत जाएंगे।’ राम विलास पासवान को ये व्यंग्य बहुत बुरा लगा।

राम विलास पासवान ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के लोगों से मिलना शुरू कर दिया। वह हर हाल में अलौली विधानसभा से चुनाव लड़कर मिश्री सदा को इसका जवाब देना चाहते थे। बिहार में भोला पासवान की सरकार गिरने के बाद 1969 में मध्यावधि चुनाव का फैसला हो गया। ऐसे में राम विलास पासवान के सामने अपनी बात पर कायम रहने का मौका भी था। उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से टिकट मिलने के बाद गांव-गांव साइकिल से प्रचार शुरू किया। नतीजों ने सबको हैरान कर दिया क्योंकि लगातार विधायक चुनते आ रहे नेता को पासवान ने करीब 700 वोटों से शिकस्त दे दी थी।

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First published on: 15-08-2021 at 12:34 IST
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