दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) और अन्य को नोटिस जारी किया है। हाई कोर्ट ने यह नोटिस एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए जारी किया है। जनहित याचिका में उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ (यूपीसीए) के कामकाज की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) या गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) से जांच कराने और ‘निष्पक्ष चुनाव’ होने तक एक रिसीवर (प्रशासक) की नियुक्ति की मांग की गई है।
यह जनहित याचिका 15 क्रिकेट खिलाड़ियों की ओर से दाखिल की गई है। याचिका में यूपीसीए के खातों के ऑडिट के लिए एक एजेंसी की नियुक्ति की भी मांग की गई है ताकि ‘निदेशकों/यूपीसीए और उनके गुर्गों द्वारा निजी लाभ के लिए धन के दुरुपयोग’ का पता लगाया जा सके। याचिका में आरोप लगाया गया है कि यूपीसीए के पदाधिकारी शीर्ष अदालत के दिशा-निर्देशों के विपरीत और निष्पक्ष चुनाव कराए बिना 15-20 साल से एक ही पद पर काबिज हैं।
याचिका में कहा गया है कि यूपीसीए के जिम्मेदार अपनी मनमानी कर रहे हैं। मेमोरेंडम और लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को दरकिनार किया जा रहा है। इससे सूबे के क्रिकेट का भविष्य दफन हो रहा है। आरोप है कि यूपीसीए की वर्तमान कमेटी अपने नियम गढ़ कर मनमानी पर आमादा है।
दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका में जो मुख्य आरोप लगाए गए हैं वे निम्न हैं:
- यूपीसीए का रजिस्टर हॉफ चिटफंड सोसाइटी से रजिस्टार ऑफ कंपनीज में गलत ढंग से विलय किया गया है। इसमें तमाम नियमों को दरकिनार किया गया है।
- यूपीसीए के द्वारा बनी कमेटियां लोढ़ा समिति की सिफारिशों के विपरीत बताई गई हैं।
- रजिस्टार ऑफ कंपनीज में की गई शिकायतों को ठंडे बस्ते में डालने का आरोप भी लगाया गया है।
- यूपीसीए में लगाए गए सभी आरोपों की जांच सीबीआई से कराए जाने की मांग की गई है।
- यूपीसीए के खातों की जांच के सीएजी (CAG) द्वारा कराए जाने की मांग की गई है।
- दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा रिसीवर बैठाकर सभी जांचें कराए जाने की मांग भी की गई है।
- 42 साल बाद संपन्न हुए यूपीसीए के चुनाव को अवैध बताया गया है।
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायाधीश नीना बंसल कृष्णा की दो सदस्यीय पीठ ने नोटिस जारी कर 25 मार्च तक जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए है। मामले की अगली सुनवाई की तारीख 29 अप्रैल है।