चरनपाल सिंह सोबती
ग्रुप मैच के राउंड तक इस विश्व कप में कीर्तिमान- 5 पारी में 225 रन 75 की औसत और 193.96 के स्ट्राइक रेट से। यहां तक कि विश्व कप के दौरान ही वे टी20 इंटरनेशनल क्रिकेट में नंबर 1 बल्लेबाज बने। लगभग डेढ़ साल के टी20 इंटरनेशनल क्रिकेट करिअर में पदार्पण से नंबर 1 तक पहुंचना कोई मजाक नहीं। हर कोई उनकी तारीफ कर रहा है- सही मिस्टर 360 डिग्री बल्लेबाज।
क्या आपने सूर्यकुमार की उम्र नोट की- इस समय 32 साल से ऊपर और इस तरह की क्रिकेट में पदार्पण किया था 30 साल 181 दिन की उम्र में। एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय में तो इससे भी लगभग चार महीने बाद पदार्पण किया था। अब सवाल यह उठता है कि अगर इतने ही बेहतरीन बल्लेबाज थे तो इतना नजरअंदाज कैसे होते रहे कि 30 साल की उम्र तक टीम इंडिया के चयनकर्ताओं ने याद ही नहीं किया? यही वह पहेली है जिसका कोई जवाब नहीं। यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि अभी भी किस्मत वाले हैं कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेल गए- अन्यथा भारत की क्रिकेट में ऐसी मिसाल कम नहीं कि प्रतिभाशाली खिलाड़ी सही मौकों की तलाश में जूझता रहा और निराशा में उसकी क्रिकेट ही ख़त्म हो गई। सूर्य को न घरेलू क्रिकेट में ढेरों रन ने मौका दिलाया और न ही आईपीएल ने।
साल 2010- घरेलू क्रिकेट में मुंबई के लिए पदार्पण और 73 रन बनाए। 2011 में मुंबई इंडियंस में आ गए यानी कि करिअर का ग्राफ सही दिशा में जा रहा था। 2011-12 रणजी सीजन- 754 रन और इसके बाद तो लगातार रन बनाते रहे। अक्षर पटेल, केएल राहुल और जसप्रीत बुमराह जैसे उनके साथ खेले अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आ गए पर सूर्य के लिए कोई मौका नहीं था।
2018, 2019 और 2020 आइपीएल सीजन में क्रमश: 512, 424 और 480 रन, 2018 में आइपीएल के सबसे महंगे अनकैप्ड खिलाड़ी- मुंबई ने 3.2 करोड़ रुपए में खरीदा। आखिरकार मार्च 2021 में मौका मिला और टी20 इंटरनेशनल क्रिकेट में जो पहली गेंद खेली उस पर 6 लगा दिया- भारत से और कोई यह कीर्तिमान नहीं बना सका है। उस एक स्ट्रोक के बाद से सूर्य के बल्ले ने रन बनाने (और वह भी गजब के स्ट्राइक रेट से) की झड़ी लगा दी है।
किसी के पास इस सवाल का जवाब नहीं कि सूर्य को रणजी पदार्पण से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट तक पहुंचने में 11 साल क्यों लग गए? इसी तरह, आज इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं है कि पृथ्वी शॉ को फिर से टीम इंडिया में लौटने के लिए और सरफराज खान को अपने अंतरराष्ट्रीय ििक्रकेट में पदार्पण के लिए और क्या करना होगा? और कितना इंतजार करना होगा?
टी20 विश्व कप के बाद भारत को न्यूजीलैंड और बांग्लादेश टूर पर जाना है- न्यूजीलैंड में 18 नवंबर से तीन टी20 आई और तीन वनडे खेलने हैं, जबकि बांग्लादेश का दौरा चार दिसंबर से तीन एकदिवसीय के साथ शुरू होगा और बाद में दो टैस्ट मैच भी हैं जो विश्व टैस्ट चैम्पियनशिप में गिने जाएंगे। इन दौरे के लिए टीम इंडिया का चयन हो चुका है और हमेशा की तरह इस बार भी चयनकर्ताओं ने हैरान किया है। कई वरिष्ठ खिलाड़ियों के आराम के बावजदू घरेलू क्रिकेट में लगातार रन बना रहे पृथ्वी शॉ और सरफराज खान को जगह नहीं मिली।
ओपनर पृथ्वी शॉ घरेलू सर्किट में अच्छी फार्म में हैं लेकिन अब नहीं, वे तो पिछले कुछ सालों में चयनकर्ताओं टीम प्रबंधन की योजना में नहीं रहे हैं- हालांकि अब तो रोहित शर्मा और केएल राहुल दोनों न्यूजीलैंड में टी20 में नहीं खेल रहे। यह शॉ को ओपनर के तौर पर वापस देखने का बड़ा अच्छा मौका था। चयनकर्ता का नजरिया- वे कुछ भी गलत नहीं कर रहे। जो खिलाड़ी पहले से खेल रहे हैं और प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्हें मौका मिलना ज्यादा जरूरी था।
पृथ्वी शॉ ने रणजी ट्राफी में 6 मैचों में 355 रन बनाए और सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी में 7 मैचों में 47.50 औसत और 191.27 स्ट्राइक रेट से 285 रन। सरफराज भी इस सीजन में घरेलू क्रिकेट में सनसनीखेज फार्म में- इस साल 15 प्रथम श्रेणी पारियों में 1380 रन, 6 शतक, 106.15 औसत। दाएं हाथ के बल्लेबाज ने टीम इंडिया का दरवाजा लगातार खटखटाया लेकिन लगता है उन्हें और इंतजार करना होगा।
चेतन शर्मा कहते हैं कि सरफराज टीम इंडिया में आने से ज्यादा दूर नहीं- हम उन्हें भी मौका दे रहे हैं। इंडिया ए टीम में चुना। उन्हें बहुत जल्द मौका मिलेगा।’ सरफराज खान ने रणजी ट्रॉफी के 6 मैचों में 4 शतक सहित 982 रन बनाए- टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी। किसी खिलाड़ी को सही वक्त पर सीनियर टीम में खेलने का मौका न मिले तो नतीजा हर बार सूर्यकुमार यादव जैसा अच्छा नहीं आएगा।
अंबाती रायुडू को वनडे विश्व कप की टीम में न चुनकर ऐसा बेकार किया कि उसके बाद वे टीम इंडिया में लौटने योग्य भी न रहे। टैस्ट में 300 का स्कोर बनाने वाले करुण नायर पर इस बड़े स्कोर के बावजूद कभी विश्वास नहीं दिखाया। यही अब पृथ्वी शॉ और हनुमा विहारी के साथ किया जा रहा है।
सरफराज खान रन बना रहे हैं और उन पर अपनी क्रिकेट के प्रति लापरवाह होने का आरोप भी नहीं लगाया जा सकता। मुंबई के पहली बार सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी जीतने में ख़ास भूमिका (कम स्कोर वाले फाइनल में मैच जीतने वाले 36*) निभाने के बाद, सरफराज अगली सुबह 4 बजे कोलकाता हवाईअड्डे पर थे- 6 बजे की उड़ान से मुंबई पहुंचे और घर नहीं गए- सीधे क्रास ग्राउंड गए पुरुषोत्तम शील्ड का मैच खेलने और शतक बना दिया- खार जिमखाना के विरुद्ध पार्कोफीन क्रिकेटर्स क्लब के लिए। उन्हें आराम की जरूरत नहीं- विजय हजारे ट्राफी तक ऐसे ही लगातार खेलना चाहते हैं ताकि अच्छी फार्म में ही रहें।
पृथ्वी शॉ, सरफराज खान या हनुमा विहारी जैसे खिलाड़ी चयनकर्ता के नजरिए और फैसले को मानने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर सकते। हर कोई यही सलाह दे रहा है- संयम रखो, सही मौका जरूर मिलेगा। कई करिअर इसी इंतजार की भेंट चढ़ गए। अब जबकि चयनकर्ता 50 शीर्ष खिलाड़ियों का पूल बनाकर- साथ-साथ खेलने वाली दो टीम बनाने जैसी बात करते हैं और सीनियर खिलाड़ियों के लिए आराम वाली नीति भी चल रही है तो घरेलू क्रिकेट नजरअंदाज नहीं होनी चाहिए जो वास्तव में भारत में क्रिकेट की नर्सरी है। ऐसा न हुआ तो खिलाड़ी रणजी और दलीप ट्राफी जैसे टूर्नामेंट में किस जोश से खेलेंगे? यही सोच रह जाएगी कि आइपीएल में जोर लगाओ और टीम इंडिया में आ जाओ।