BCCI में संभव बड़े बदलाव, लोकपाल की होगी नियुक्ति
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीसीआई) की 9 नवंबर को होने वाली वार्षिक आम सभा बैठक में बोर्ड के लिए लोकपाल नियुक्त किए जाने पर फैसला लिया जा सकता है।

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीसीआई) की 9 नवंबर को होने वाली वार्षिक आम सभा बैठक में बोर्ड के लिए लोकपाल नियुक्त किए जाने पर फैसला लिया जा सकता है।
बीसीसीआई अध्यक्ष बनने के बाद शशांक मनोहर ने बोर्ड में स्वतंत्र अधिकारी नियुक्त करने की बात कही थी और अब इसे अमलीजामा पहनाने के लिए कदम बढ़ाए जा रहे हैं।
उम्मीद की जा रही है कि अगले महीने 9 नवंबर को होने वाली आम सभा बैठक(एजीएम) में बोर्ड लोकपाल नियुक्त किया जा सकता है। प्रशासनिक शिकायत जांच अधिकारी की नियुक्ति बीसीसीआई के नियम और विनियम ज्ञापन में सुझाए बदलावों में से एक है।
ज्ञापन में कहा गया है कि बीसीसीआई की आम सभा लोकपाल नियुक्त करेगी जो एक अधिकारी द्वारा हितों के टकराव, अनुशासनहीनता या बोर्ड के नियमों के उल्लंघन या कदाचार की शिकायतों से निपटने के लिए कार्रवाई करेगा। इसके अलावा राष्ट्रीय चयनकर्ता पैनल द्वारा किसी भी टीम चयन पर बोर्ड अध्यक्ष और अन्य अधिकारियों की मंजूरी अहम होगी जो समय-समय पर टीम पर विचार करेगी।
4 अक्टूबर को बोर्ड अध्यक्ष पद संभालने वाले मनोहर ने सुझाव दिया है कि एजीएम समेत किसी भी बैठक के अध्यक्ष के पास कोई वोट नहीं होगा, जैसा पहले से हो रहा है। अगर जरूरत होती है तो उसके वोट डालने के अधिकार को इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा यह भी सुझाव दिया गया है कि एक जोन से बोर्ड उपाध्यक्ष का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी उम्मीदवार को कम से कम दो बार एजीएम में पूर्ण सदस्य के रूप में प्रतिनिधित्व करना जरूरी है।
मनोहर के सुझाए अन्य बदलावों में से बीसीसीआई का स्वतंत्र लेखा परीक्षक बोर्ड के पूर्णकालिक सदस्यों, एसोसिएट और संबद्ध सदस्यों के खातों का ऑडिट करेगा जिसकी रिपोर्ट मिलने के बाद ही उनकी बकाया राशि का भुगतान बोर्ड की ओर से किया जाएगा। इसके अलावा खातों के स्टेटमेंट बोर्ड सदस्यों को किसी भी टूर्नामेंट के खत्म होने के 30 दिनों के भीतर जमा करनी होगी।
बैठक में इस पर भी विचार किया जाएगा कि राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी बोर्ड में एक चेयरमैन, प्रत्येक जोन से एक सदस्य और संन्यास ले चुके दो पूर्व क्रिकेटरों को शामिल करना आवश्यक है जिसके संयोजक बीसीसीआई सचिव होंगे। इसके अलावा किसी भी उप-समिति के सदस्यों की संख्या आठ से अधिक नहीं होनी चाहिए।
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