करीब 20 साल पुराने मैच फिक्सिंग स्कैंडल के मुख्य आरोपी संजीव चावला के वकील ने अपने मुवक्किल के बयान को पुलिस की कल्पना की उपज करार दिया है। यह डिस्क्लोजर स्टेटमेंट कोर्ट में दायर सप्लमेंट्री चार्जशीट (पूरक आरोप-पत्र) का हिस्सा है। सीनियर एडवोकेट विकास पाहवा ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया, 14 फरवरी 2020 को संजीव चावला द्वारा दिया गया कथित बयान पुलिस का मनगढ़ंत है। यह दस्तावेज कभी उसे (संजीव चावला) को दिखाए ही नहीं गए, इसलिए उन पर हस्ताक्षर करने से इंकार करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। उसने (संजीव) वह दस्तावेज पहली बार तब देखे जब सप्लीमेंट्री चार्जशीट की कॉपी उसे मिली।
उस दस्तावेज में संजीव चावला ने कथित तौर पर क्रिकेट दूर-दूर तक फैले भ्रष्टाचार में अंडरवर्ल्ड माफिया की भूमिका का उल्लेख किया था। बयान में कहा गया था कि कोई भी क्रिकेट मैच निष्पक्ष तरीके से नहीं खेला जाता है। लोग जो क्रिकेट मैच देखते हैं वह फिक्स होता है। यह बिल्कुल वैसा ही होता है जैसे किसी फिल्म को डायरेक्ट किया जा रहा हो। चावला के बारे में यह भी कहा जाता है कि उसने दिल्ली पुलिस को बताया था कि इस मामले की जांच करने वाले अधिकारी क्राइम ब्रांच के डीसीपी डॉ. जी राम गोपाल नाइक भी सिंडिकेट के निशाने पर थे। उनकी जान खतरे में थी।
पाहवा ने कहा कि उनके मुवक्किल ने ऐसी कोई बात नहीं कही थी। उसे किसी भी सिंडिकेट या अंडरवर्ल्ड माफिया का कोई पता नहीं है, जैसाकि उस अर्थहीन दस्तावेज में लिखा हुआ है। उन्हें (पुलिस अधिकारी) या किसी और को कोई खतरा नहीं है। पाहवा ने यह भी कहा, संजीव चावला ने किसी भी तरह के मैच फिक्सिंग की जानकारी या कभी भी किसी क्रिकेट सट्टेबाज के साथ भागीदारी से स्पष्ट इंकार किया है।
बता दें कि दिल्ली पुलिस ने अपनी चार्जशीट में कहा है कि संजीव चावला ने जांच में सहयोग नहीं किया। भले ही उसे ऐसे सबूत दिखाए गए हों, जो इस मामले में उसकी स्पष्ट भागीदारी साबित करते हैं, इसके बावजूद उसने अपने द्वारा किए गए अपराधों के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी। आरोप पत्र में यह भी कहा गया है कि संजीव चावला ने अच्छी तरह से पढ़ने के बाद भी डिस्क्लोजर स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर नहीं किए।
पाहवा ने जोर देते हुए कहा कि संजीव चावला ने जांचकर्ताओं के साथ पूरा सहयोग किया है। उन्होंने कहा, अप्रैल 2000 में उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। तब वह भारत में नहीं था। वह कभी फरार नहीं हुआ। स्कॉटलैंड यार्ड द्वारा संजीव चावला के वकील को लिखे एक पत्र को छोड़कर, 14 साल तक जांच की अवधि के दौरान, दिल्ली पुलिस ने उससे कभी भी संपर्क नहीं किया। बता दें कि संजीव चावला को लगभग दो दशक बाद इस साल 13 फरवरी को भारत लाया गया था।