भारतीय क्रिकेट को पिछले कुछ वर्षों में कई मैच विजेता बल्लेबाज और गेंदबाज मिले हैं। हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं है। हर जमाने में भारतीय क्रिकेट ने गेंद और बल्ले के असाधारण खिलाड़ियों को देखा है। सुनील गावस्कर और कपिल देव के दौर के बाद लोग सोचते थे कि क्या अगली पीढ़ी के पास वह टैलेंट होगा। इसके बाद सचिन तेंदुलकर, अनिल कुंबले, राहुल द्रविड़, वीरेंद्र सहवाग आए। एक बार जब उनका समय समाप्त हो गया, तो दुनिया ने एमएस धोनी, विराट कोहली, रोहित शर्मा, जसप्रीत बुमराह और अन्य भारतीय क्रिकेटर्स की प्रतिभा को देखा।
हालांकि, साथ ही, कुछ खिलाड़ी भी रहे, जो तिभा और क्षमता के धनी होने के बावजूद वैसा मुकाम या शोहरत नहीं हासिल कर पाए। अमोल मजूमदार, रानादेब बोसाय भी असाधारण क्रिकेटर थे, लेकिन किसी कारण से भारतीय टीम के लिए नहीं खेल पाए। इसी तरह कुछ खिलाड़ी ऐसे भी थे जिन्हें टीम इंडिया में जगह तो मिली, उन्होंने अच्छा प्रदर्शन भी किया, लेकिन करियर बहुत लंबा नहीं खिंच पाया। ऐसे ही एक हैं मनोज तिवारी।
साल 2008 में पदार्पण करने के बाद, मनोज तिवारी 7 साल और 8 अलग-अलग सीरीज में भारत के लिए 12 एकदिवसीय और 3 टी20 मैच ही खेल पाए। उन्होंने दिसंबर 2011 में भारत के लिए अपना पहला शतक बनाया था, लेकिन अगला मिलने के लिए उन्हें 7 महीने और इंतजार करना पड़ा। मनोज तिवारी का भारत करियर कई संभावनाओं से भरा था, लेकिन पूर्व बल्लेबाज को कोई पछतावा नहीं है। हालांकि, उन्हें लगता है कि अगर वह मौजूदा प्रबंधन के तहत खेले होते, तो उनके करियर का परिदृश्य और जिस तरह से उनका करियर खत्म हुआ, वह पूरी तरह से अलग हो सकता था।
स्पोर्ट्स तक से बातचीत में मनोज तिवारी ने कहा, ‘वर्तमान प्रबंधन जो 4-5 मैचों में असफल होने के बावजूद खिलाड़ियों का समर्थन कर रहा है, जब मैं खेल रहा था, तब ऐसा होता तो इससे मुझे मदद मिलती, क्योंकि अगर आपको याद है, तो मैंने वेस्टइंडीज के खिलाफ 100 रन बनाए थे और मैन ऑफ द मैच भी रहा था। फिर भी अगले 14 मैचों के लिए बेंच पर बैठा रहा। प्लेइंग इलेवन में जगह नहीं बना सका। यह अब भी एक रहस्य है। यह सवाल मैं निश्चित रूप से उन लोगों से पूछूंगा जो उस समय प्रभारी थे।’
मनोज तिवारी ने टीम इंडिया के मैनेजमेंट पर तंज कसते हुए कहा, ‘इस मामले में भी मैंने विश्व रिकॉर्ड बनाया। मुझे छोड़कर ऐसा कोई खिलाड़ी नहीं होगा जो मैन ऑफ द मैच बनने के बावजूद अगले 14 मैचों के लिए बैठा हो। उसके बाद, जब मैं खेला तब मैंने 4 विकेट लिए और 65 रन बनाए और फिर भी ज्यादा मौके नहीं मिले। जब आप परिपक्व होते हैं, तो आपको इसका ज्यादा पछतावा नहीं होता है। हालांकि, मुझे कई बार दुख होता है- जब आप किसी खिलाड़ी को बल्लेबाजी करते हुए देखते हैं और आपको लगता है कि मेरे पास अधिक क्षमता है। अगर मेरे पास होता, मुझे और मौके मिलते तो मैं खुद को साबित कर पाता।’
मनोज तिवारी ने कहा कि अगर उन्हें राहुल द्रविड़ के नेतृत्व में खेलने का मौका मिलता तो निश्चित तौर पर उन्हें काफी फायदा होता। मनोज तिवारी ने ऋषभ पंत का उदाहरण देते हुए खिलाड़ियों को अधिक और लंबे समय तक समर्थन देने के मौजूदा प्रबंधन की रणनीति को सही बताया। उन्होंने बताया कि कैसे कुछ उतार-चढ़ाव एक क्रिकेटर की गुणवत्ता और क्लास तय नहीं करते हैं।
उन्होंने कहा, ‘अगर ऐसा प्रबंधन मेरे समय में होता, तो मुझे बहुत अधिक अवसर मिलते। आप खिलाड़ियों को देखते हैं। आप जानते हैं कि वे स्वतंत्र रूप से खेल रहे हैं न कि टीम में अपनी जगह खोने के डर से। रन आ रहे हैं, प्रबंधन उनका समर्थन कर रहा है। इसे देखकर अच्छा लगता है क्योंकि मैंने हमेशा महसूस किया है कि 4 पारियां किसी खिलाड़ी को बनाती या तोड़ती नहीं हैं।’
मनोज तिवारी ने कहा, ‘अगर प्रबंधन ने फैसला किया है कि हां, इस खिलाड़ी में किसी भी समय एक मैच जीतने की क्षमता है। हाल ही में, लोगों ने ऋषभ पंत पर अंगुली उठाई कि वह कन्सिस्टंट नहीं हैं, लेकिन राहुल द्रविड़ ने स्पष्ट कर दिया कि वह टीम इंडिया की व्यापक योजनाओं का हिस्सा हैं। वह हमें मैच जिताने जा रहे हैं।’