हनुमा विहारी को 5 साल की उम्र में याद थे विंडीज खिलाड़ियों के नाम, शतक पूरा हो इसलिए रात भर जगी मां
हनुमा की इस उपलब्धि के पीछे उनकी मां विजयलक्ष्मी का भी बड़ा योगदान है। शनिवार रात जब हनुमा जब जमैका में किंग्सटन के सबीना पार्क में क्रीज पर डटे हुए थे, वहीं हजारों किलोमीटर दूर सिकंदराबाद के बोनपल्ली इलाके स्थित उनके घर में विजयलक्ष्मी भी सोफे पर जमी बैठीं थीं।

भारतीय क्रिकेट टीम वेस्टइंडीज में इतिहास रचने के मुहाने पर है। दूसरे टेस्ट में उसकी पकड़ काफी मजबूत हो चुकी है। पहली पारी के आधार पर उसने 467 रन की लीड ली। वेस्टइंडीज को जीत के लिए अब भी 423 रन चाहिए, जबकि उसके 8 विकेट ही आउट होना बाकी हैं। टीम इंडिया को इस मजबूत स्थिति में पहुंचाने में हनुमा विहारी का भी बहुत बड़ा हाथ है। हनुमा ने पहली पारी में अपने टेस्ट करियर का पहला शतक पूरा किया।
दूसरी पारी में भी वे 53 रन बनाकर नाबाद रहे। दूसरी पारी में जब टीम इंडिया का स्कोर 4 विकेट पर 168 रन था तभी विराट कोहली ने पारी समाप्ति की घोषणा कर दी थी। हनुमा इस सीरीज के पहले टेस्ट में 7 रन से अपने पहले शतक से चूक गए थे। हालांकि, उन्होंने दूसरे टेस्ट में अपना सपना पूरा कर लिया। हनुमा की इस उपलब्धि के पीछे उनकी मां विजयलक्ष्मी का भी बड़ा योगदान है।
शनिवार रात जब हनुमा जब जमैका में किंग्सटन के सबीना पार्क में क्रीज पर डटे हुए थे, वहीं हजारों किलोमीटर दूर सिकंदराबाद के बोनपल्ली इलाके स्थित उनके घर में विजयलक्ष्मी भी सोफे पर जमी बैठीं थीं। वे बताती हैं, ‘एंटिगा में पहले टेस्ट के दौरान मैं उसकी बल्लेबाजी देखने के लिए पूरी रात नहीं बैठ पाई थी, यही वजह रही है कि वह शतक नहीं बना पाया। इस बार मैं कोई मौका नहीं गंवाना चाहती थी।’
केमार रोच की गेंद को मिड-विकेट की ओर खेलकर हनुमा ने जैसे ही अपना शतक पूरा किया, विजयलक्ष्मी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हो भी क्यों न। यह वह क्षण था, जिसका वे हमेशा से इंतजार कर रही थीं। हालांकि, उन्हें साथ ही अपने पति जी सत्यनारायण की कमी भी खली। सत्यनारायण का तभी देहांत हो गया था, जब हनुमा महज 12 साल की उम्र के थे। सत्यनारायण और विजयलक्ष्मी ने बेटे हनुमा को क्रिकेटर बनाने का सपना देखा था।
विजयलक्ष्मी के बेटे ने अपना पहला टेस्ट शतक पिता को समर्पित किया। विजयलक्ष्मी ने जैसे ही हनुमा को शतक लगाते देखा, उनकी आंखों के बेटे के बचपन की बहुत सारी यादें घूमने लगीं। वे बताती हैं, ‘वह मुश्किल से पांच साल का रहा होगा, लेकिन उतनी छोटी से उम्र में भी वह वेस्टइंडीज के सभी क्रिकेटर्स के नाम जानता था। लारा, चंद्रपॉल, एम्ब्रोस, वाल्श, रामनरेश सरवन, फ्रैंकलिन रोस, मर्वन डिल्लोन… इन सभी के नाम उसे रटे थे। यह बिल्कुल ठीक रहा कि उसने दो दशक बाद पहला टेस्ट शतक भी उसी टीम के खिलाफ लगाया।’