आज 29 अगस्त यानी खेल दिवस है। भारत के महानतम खिलाड़ी ध्यानचंद की जयंती है। हॉकी के इस जादूगर से जुड़ी दर्जनों कहानियां हैं जो लोगों को प्रेरित करती हैं। ध्यानचंद उन चुनिंदा खिलाड़ियों में है, जिन्होंने जर्मनी के तानाशह हिटलर के सामने उनके देश में ही झुकने से मना कर लिया था। बात 1936 की है। भारतीय हॉकी टीम ओलंपिक खेलने के लिए जर्ननी गई थी। उस समय वहां हिटलर का शासन था। जर्मनी ने इन खेलों में अपनी पूरी जान लगा रखी थी। हॉकी में भी जर्मनी की टीम मजबूत मानी जाती थी। उस साल जर्मनी की मुख्य मुकाबला साल 1928 और 1932 में गोल्ड मेडल जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम से ही था।
जर्मनी ने अभ्यास मैच में ही अपने इरादे साफ कर दिए थे। उसने भारत को 4-1 से हरा दिया था जिसके बाद उसके हौसले बुलंद थे। इसके बाद दोनों टीमों का आमना-सामना सीधे फाइनल में हुआ। जर्मनी के खिलाफ फाइनल मैच 14 अगस्त को खेला जाना था, लेकिन तेज बारिश के चलते ये मैच एक दिन के लिए टल गए। यह मुकाबला फिर 15 अगस्त को हुआ। बाद में भारत 1947 में 15 अगस्त को ही अंग्रेजों से आजाद हुआ था। कहा जाता है कि मैच से पहले भारतीय टीम के मैनेजर पंकज गुप्ता ने कांग्रेस का झंडा निकाला था। उस समय भारत ब्रिटेन का गुलाम था, जिस कारण भारत का अपना कोई झंडा नहीं था इसलिए भारतीय खिलाड़ियों ने उसी झंडे को सलामी दी। मैच में जर्मनी ने आक्रामक शुरुआत की, जिसे देख स्टेडियम में बैठा हिटलर भी खुश था।
मैच में आधे समय के बाद तक भारत सिर्फ 1 गोल से आगे था। मैदान पर ध्यानचंद को दौड़ने में दिक्कत हो रही थी, इसलिए उन्होंने अपने जूते उतार दिए। इसके बाद उनका जादू दिखने लगा। ध्यानचंद ने मैच में 3 गोल दाग दिए। जिसे देखकर हिटलर भी हैरान हो गया था। भारत ने फाइनल में जर्मनी को 8-1 से धो डाला। पहली बार किसी टीम ने उस ओलंपिक में भारत के खिलाफ गोल किया था। इससे पहले टीम इंडिया ने सेमीफाइनल में फ्रांस को 10-0 से शिकस्त दी थी। उस मैच में ध्यानचंद ने 4 गोल दागे थे।
भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कोच सैय्यद अली सिब्ते नकवी ने उस मैच को याद कर बताया, ‘‘हिटलर ने दादा ध्यानचंद को सलाम किया और उन्हें जर्मनी की सेना में शामिल होने का प्रस्ताव दिया। यह सब पुरस्कार वितरण समारोह के दौरान हुआ था। दादा कुछ देर शांत रहे, खचाखच भरा स्टेडियम शांत हो गया। सभी को डर था कि अगर ध्यानचंद ने प्रस्ताव ठुकरा दिया तो हो सकता कि तानाशाह उन्हें मार दे। दादा ने यह बात मुझे बताई थी, उन्होंने हिटलर के सामने आंखे बंद करने के बावजूद सख्त आवाज में कहा था कि भारत बिकाऊ नहीं है। हैरानी वाली बात यह थी कि पूरे स्टेडियम और हिटलर ने हाथ मिलाने के बजाए उन्हें सलाम किया। हिटलर ने कहा था, ‘जर्मन राष्ट्र आपको आपके देश और राष्ट्रवाद के प्यार के लिए सलाम करता है।’’