पाकिस्तान के तानाशाह जिया-उल-हक ने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के शव की नंगी तस्वीर खिंचवाई थी। इस बात का खुलासा खुद पाकिस्तान के एक बड़े नेता ने की है।
सिंध प्रांत के पूर्व गवर्नर जुबैर उमर ने एक पाकिस्तानी पॉडकास्ट ‘The Pakistan Experience’ में बातचीत के दौरान बताया है कि जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ जो क्रूरता हुई, वह पाकिस्तान के इतिहास में किसी के साथ नहीं हुई।
जुबैर उमर प्राइवेटाइजेशन कमीशन ऑफ पाकिस्तान के चेयरमैन रह चुके हैं। वर्तमान में उमर पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (PML-N) की वरिष्ठ उपाध्यक्ष मरियम नवाज के मुख्य प्रवक्ता हैं। मरियम नवाज पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ की बेटी हैं।
जिया को था संदेह
पॉडकास्ट में जुबैर उमर बताते हैं कि जिया-उल-हक को यह संदेह था कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो हिंदू हैं। अपने संदेह को साबित करने के लिए जिया-उल-हक ने भुट्टो को फांसी दिए जाने के बाद, उनकी लाश के कपड़े उतरवाए थे। इतनी ही नहीं जिया के आदेश से भुट्टो की नंगी तस्वीर भी खींची गई थी।
इस घटना का जिक्र करते हुए जुबैर उमर कहते हैं, “जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ जो हुआ, वह क्रूरता की हद है। उसके लिए इंस्टीट्यूशन को माफी मांगनी चाहिए। उस घटना का खामियाजा 50 साल बाद भी पाकिस्तान भुगत रहा है। आज भी पाकिस्तान की जनता यह मानती है कि जो हुआ वह बहुत गलत था।”
जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ हुई क्रूरता की इनसाइड स्टोरी जानने के लिए उमर एक किताब पढ़ने की भी सलाह देते हैं। किताब का नाम है ‘323 दिन’, जिसे कर्नल रफी ने लिखा है।
भुट्टो को फांसी देने की घटना को जुबैर उमर पाकिस्तान का शर्मनाक इतिहास बताते हुए कहते हैं, “तब हम समझ रहे थे कि पता नहीं हमने कितना बड़ा तीर मार लिया है। ना बेनज़ीर भुट्टो (बेटी) को उनकी शक्ल देखने दी, ना नुसरत भुट्टो (पत्नी) को शक्ल देखने दी। भुट्टो के जनाजे में परिवार से सिर्फ एक व्यक्ति को शामिल होने की इजाजत थी।”
भुट्टो ने ही बनाया था जिया को सेनाध्यक्ष
प्रधानमंत्री बनने के बाद जुल्फिकार अली भुट्टो ने ही जूनियर सैनिक अफसर जिया उल हक को पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष बनाया था। पंजाब के गवर्नर रहे ग़ुलाम मुस्तफ़ा खार ने भुट्टो को ऐसा न करने के लिए आगाह किया था। जिया को लेकर भुट्टो का आंकलन गलत निकला और अंत वही उनकी मौत का कारण बना।
5 जुलाई, 1977 को जिया उल हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो की चुनी हुई सरकार का तख्तापटल कर, देश में मार्शल लॉ लगा दिया था। इसके बाद जिया ने 47 साल पुराने कथित राजनीतिक हत्या और अपहरण जैसे गंभीर मामलों की जांच एफआईए को सौंप दी। इस मामले को भुट्टो आरोपी थे। उन्हें 3 सितंबर को गिरफ्तार कर लिया गया।
भुट्टो के खिलाफ जांच और अदालत में केस शुरू हुआ। इस दौरान लाहौर हाईकोर्ट में नए जजों की नियुक्ति की गई। जनरल ज़िया-उल-हक़ के गृहनगर जालंधर के निवासी मौलवी मुश्ताक़ हुसैन को लाहौर हाई कोर्ट का चीफ़ जस्टिस बनाया गया।
मामले में 18 मार्च, 1978 को लाहौर कोर्ट का फैसला आया। पांच जजों की बेंच ने ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को अहमद रजा कसूरी की हत्या का साजिशकर्ता माना। भुट्टो को मौत की सजा सुनाई गई। हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। वहां सात में से चार जजों ने भुट्टो की सजा बरकरार रखी। तीन ने उन्हें बरी किया। इस तरह सुप्रीम कोर्ट से भी राहत ना मिलने पर 4 अप्रैल, 1979 को भुट्टो को फांसी दी गई।