रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के अंत में दोनों देशों ने 70 बिंदुओं वाला एक संयुक्त बयान जारी किया। बयान में व्यापार और आर्थिक साझेदारी पर जोर दिया गया है। दोनों देशों के बीच व्यापार, परमाणु ऊर्जा, ईंधन, मुक्त व्यापार समझौता, कुशल कामगारों की आवाजाही से लेकर रक्षा सहयोग पर चर्चा हुई।

विदेश सचिव विक्रम मिसरी के मुताबिक, ‘इस यात्रा का मुख्य फोकस आर्थिक मुद्दों पर था, हमारा उद्देश्य था औद्योगिक और निवेश साझेदारी को मजबूत करना। आज दुनिया में आपूर्ति शृंखला और व्यापारिक रिश्ते दबाव में हैं, निवेश अनिश्चित हो रहा है। दोनों नेताओं ने कुशल कामगारों की आवाजाही को आसान बनाने वाले समझौतों की सराहना की। साथ ही लक्ष्य रखा गया कि 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब डालर तक पहुंचे। 2024-25 में यह व्यापार 68.7 अरब डालर के स्तर पर था।’

जानकारों की राय में अमेरिकी शुल्क से भारतीय वस्तुओं के निर्यात को नुकसान पहुंच रहा है और निवेश संबंधी अनिश्चितता बढ़ रही है, इसलिए रूस के राष्ट्रपति की नई दिल्ली यात्रा भारत को अपने निर्यात में और अधिक विविधता लाने का अवसर प्रदान कर सकती है। रूस के साथ बढ़ते व्यापार घाटे को भी पाट सकती है, जो मुख्य रूप से यूक्रेन युद्ध के बाद कच्चे तेल के आयात में वृद्धि के कारण है।

पुतिन की दो दिवसीय यात्रा भारत और रूस के नेतृत्व वाले यूरेशियन आर्थिक संघ (ईएईयू) द्वारा इस वर्ष अगस्त में संदर्भ की शर्तों (टीओआर) पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद हुई है, जो एक मुक्त व्यापार समझौते के लिए वार्ता को फिर से शुरू करने का प्रतीक है। यह फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने पर रुकी हुई थी। पांच ट्रिलियन डालर के ईएईयू समूह में रूस, आर्मेनिया, बेलारूस, कजाकिस्तान और किर्गिज गणराज्य शामिल हैं।

रूस के बाजार पर भारत की नजर

अमेरिका के साथ बातचीत जारी रहने के साथ ही, नई दिल्ली ने ज्यादा से ज्यादा बाजार हासिल करने की कोशिश शुरू कर दी है। यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, जापान और चीन के साथ, रूस भी नई दिल्ली के प्रमुख लक्षित बाजारों में से एक है।

रूस भारत से वस्तुओं और सेवाओं का आयात बढ़ाकर भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को संतुलित करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। क्रेमलिन के डिप्टी चीफ आफ स्टाफ मैक्सिम ओरेश्किन का कहना है कि भारत और रूस के बीच घनिष्ठ व्यापारिक संबंध संबंधों को विकसित करने में एक रणनीतिक विकल्प हैं।

रूसी कृषि मंत्री ओक्साना लुट के मुताबिक, रूस भारत से झींगा, चावल और उष्णकटिबंधीय फलों का आयात बढ़ाने के लिए तैयार है। ट्रंप के शुल्क से भारत के निर्यातकों को वैकल्पिक बाजार तलाशने पर मजबूर होना पड़ा है। तेल की अहमियत को कम करने के इरादे से भारत और रूस एक मुक्त व्यापार समझौते पर काम कर रहे हैं।

तकनीक ट्रांसफर पर हो रही बात?

दौरे में रक्षा सौदों की घोषणा की उम्मीद थी, लेकिन ज्यादा कुछ नहीं हुआ। बयान में संयुक्त उत्पादन, तकनीक हस्तांतरण और दोस्ताना देशों को निर्यात का जिक्र है। एस 400 और एस 500 सौदे पर कोई चर्चा नहीं हुई। भारत को रूस से परमाणु पनडुब्बी भी इस साल मिलनी थी, लेकिन अब 2028 तक आने की उम्मीद है। हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि रिश्ता अब सिर्फ खरीद-बिक्री का नहीं, बल्कि संयुक्त उत्पादन का हो रहा है।

ब्रहमोस एअरोस्पेस के पूर्व सीईओ सुधीर कुमार मिश्रा के मुताबिक, ‘रूस अब समझ रहा है कि भारत की रक्षा आपूर्ति शृंखला में बने रहने के लिए उसे संयुक्त उत्पादन और तकनीक हस्तांतरण को बढ़ावा देना होगा।’

अमेरिका में पुतिन के भारत दौरे से असहजता

भारत-रूस के संयुक्त बयान में ऐसा कुछ नहीं है जिससे अमेरिका नाराज हो, जैसे कोई बड़ा रक्षा सौदा या तेल खरीदने का वादा। लेकिन जो प्रतिक्रियाएं आ रही हैं उससे लगता है कि अमेरिका में पुतिन के भारत दौरे से असहजता है। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के पूर्व अधिकारी माइकल रूबिन ने कहा, भारत और रूस को करीब लाने के लिए डोनाल्ड ट्रंप नोबल पुरस्कार के हकदार हैं। रूस के नजरिए से यह दौरा बेहद सकारात्मक है और भारत ने व्लादिमीर पुतिन को वह सम्मान दिया है जो उन्हें दुनिया में और कहीं मिलना मुश्किल है।

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