जायंट किलर के नाम से मशहूर सोशलिस्ट लीडर राजनारायण (Raj Narain) और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर (Chandra Shekhar) के बीच अच्छी बॉन्डिंग थी। चंद्रशेखर अपनी आत्मकथा (Chandra Shekhar Autobiography) ‘जीवन जैसा जिया’ में राजनारायण (Socialist Leader Raj Narain) से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं।
एक बार राजनारायण ने चंद्रशेखर को अपने घर दोपहर के खाने पर बुलाया। जब चंद्रशेखर ने पूछा कि खाना किस खुशी में खिलाया जा रहा है तो राजनारायण ने कहा- कोई खास बात नहीं है, ऐसे ही बहुत दिन हो गए हैं इसलिए खाना खाने आ जाओ।
चंद्रशेखर खाना खाने गए। वहां पहले से मेनका गांधी (Maneka Gandhi) बैठी हुई थीं। सबने मिलकर खाना खाया और अपने-अपने घर चले गए। अगले दिन ‘दैनिक हिंदुस्तान’ अखबार ने जो छापा उसका सार यह था कि कि राजनारायण के यहां खाने पर मिले मेनका गांधी और चंद्रशेखर। चंद्रशेखर ने मेनका को भेंट की बनारसी साड़ी। हालांकि चंद्रशेखर को इस बात की कोई खबर नहीं थी।
चंद्रशेखर लिखते हैं कि, “अगले दिन लोग मुझसे पूछने लगे कि मैंने मेनका गांधी को कैसी साड़ी भेंट की है? मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था। मैंने राजनारायण से पूछा – बंधु, यह मेनका जी को मेरे द्वारा साड़ी भेंट किए जाने का क्या किस्सा है? राजनारायण ने उत्तर दिया – तुम्हे पता नहीं है। कोई मुझे बनारसी साड़ी दे गया था। मेरे पास रखी थी, तो तुम्हारे आने से पहले मैंने तुम्हारे नाम पर मेनका को भेंट कर दी।” राजनारायण की बात सुन चंद्रशेखर निरुत्तर हो गए।
जब राजनारायण ने मांग लिया मीट का तसला
चंद्रशेखर राजनारायण से जुड़ा एक दूसरा किस्सा उस वक्त का सुनाते हैं, जब वह अपने गृह जिला बलिया में ही छात्रों के बीच काम किया करते थे। उन्हीं दिनों एक कार्यक्रम के सिलसिले में राजनारायण बलिया पहुंचे। चंद्रशेखर के एक मित्र ने उन पर दबाव बनाया कि वह राजनारायण को उनके यहां भोजन पर बुलाएं। चंद्रशेखर मान गए और कहा कि 20-25 लोगों का खाना बनवा लीजिए। दोस्त ने मांसाहारी भोजन बनवाया। चंद्रशेखर राजनारायण को लेकर अपने दोस्त के घर पहुंचें। राजनारायण खाने के लिए बैठें।
इस घटना को याद करते हुए चंद्रशेखर लिखते हैं, “जब मेरे दोस्त राजनारायण से पूछते, और लाऊं?। वह तत्काल कहते- लाइए। ऐसा उन्होंने दो बार किया। जब मेरे दोस्त ने तीसरी बार पूछा कि ‘और लाऊं?’ तो राजनारायण विनम्रतापूर्वक बोले- देखिए हमें बड़ा संकोच होता है। मुझे मालूम नहीं आपके घर में कितना गोश्त बना है और कितने लोग खाने वाले हैं। हमारे खाने का ढंग दूसरा है। आपके परिवार में जितने लोग हों, उनका हिस्सा निकाल लीजिए, अगर और कोई खाने वाला हो तो उसके लिए भी निकाल लीजिए और बाकी वो जो तसला है, वह यहां लाकर रखिए।”
राजनारायण से खौफ खाती थीं इंदिरा?
चंद्रशेखर की आत्मकथा से पता चला है कि राजनारायण से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) खौफ खाती थीं। चंद्रशेखर 1967 के लोकसभा चुनाव के वक्त का एक किस्सा बताते हैं।
वह लिखते हैं कि, “मैं 1967 में बलिया से लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहता था। उस समय जगन्नाथ प्रसाद रावत जी ने एक प्रस्ताव रखा था कि राज्यसभा सदस्य लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। मैं राज्यसभा से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ना चाहता था। अशोक मेहता के कहने पर मैं कामराज जी से मिलने गया। कामराज जी ने अपनी खास अंग्रेजी में कहा- प्रधानमंत्री कहती हैं कि इनका राज्यसभा में रहना जरूरी है।”
चंद्रशेखर लिखते हैं कि इसके बाद मैं क्या कर सकता था। 1967 का चुनाव लड़ने का एक दिलचस्प कारण यह भी था कि इंदिरा जी ने मुझसे कहा था कि चंद्रशेखर जी, आप राज्यसभा में रहते हैं तो राजनारायण जी जरा संयत रहते हैं।