Mayawati Birthday Special: चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं मायावती का जन्म 15 जनवरी, 1956 को दिल्ली में हुआ था। मूल रूप से मायावती गौतमबुद्ध नगर के बादलपुर गांव की रहने वाली हैं। उनके पिता प्रभु दास डाक विभाग में कर्मचारी थे। साल 1977 में मायावती दिल्ली के जेजे कॉलोनी स्थित एक स्कूल में टीचर थीं। साथ ही आईएएस अफसर बनने का ख्वाब लिए यूपीएससी की तैयारी भी कर रही थीं।
इसी वर्ष अंबेडकर के विचारों से प्रभावित कांशीराम मायावती के घर पहुंचे और उन्हें राजनीति में ले आए। साल 1984 में जब कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी (BSP) की स्थापना की तब मायावती कोर टीम का हिस्सा थीं। शुरुआत में कांशीराम ने संगठन को मजबूत करने का काम किया और मायावती चेहरा बनीं। वह अपने भाषणों की वजह से अक्सर चर्चा में रहा करती थीं। काशीराम को मायावती का राजनीतिक गुरु माना जाता है। हालांकि बाद में मायावती पर कांशीराम को लेकर कई आरोप भी लगे।
कांशीराम को अपने साथ ले गईं मायावती
साल 1995 में जब कांशीराम बसपा की सरकार बनाने के लिए भाजपा के साथ कार्य योजना बना रहे थे, तब उनकी तबीयत लगातार खराब हो रही थी। कांशीराम जिस बेताबी से काम रहे थे, उसने उनके स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाला। 2001 में लखनऊ की एक विशाल रैली में कांशीराम ने मायावती को अपना वारिस घोषित किया और बसपा की विरासत उन्हें सौंप दी।
इसके बाद 14 सितंबर 2003 को हैदराबाद में कांशीराम को एक गंभीर मस्तिस्क पक्षाघात (Cerebral palsy) हुआ। उन्हें तुरंत वहीं के अपोलो अस्पताल में ले जाया गया। अगले दिन उन्हें एयर एम्बुलेंस से नई दिल्ली लाया गया और बत्रा अस्पताल में भर्ती कराया गया। इसके बाद 29 अप्रैल, 2004 को अस्पताल से छुट्टी मिली हालांकि अगले ही दिन उन्हें दोबारा भर्ती होना पड़ा। आखिरकार वह 1 जुलाई, 2004 को अस्पताल से बाहर आए।
सितंबर 2003 में जब कांशीराम बीमार हुए, तभी उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने उनकी देखभाल की सारी जिम्मेदारी अपने हाथों में ले ली। जुलाई 2004 में जब कांशीराम को अस्पताल से छुट्टी मिली तो मायावती उन्हें नई दिल्ली में हुमायूं रोड स्थित अपने घर ले गईं। जहां वह अपनी मृत्यु तक रहे। कांशीराम की मौत अक्टूबर 2006 में हुई थी।
मायावती पर लगा बंधक बनाने का आरोप
कांशीराम के परिवार ने मायावती के कदम का विरोध किया। कांशीराम का परिवार चाहता था कि उन्हें उनके पंजाब स्थित पैतृक गांव ले जाया जाए। उनकी बीमारी के शुरुआती दिन में ही कांशीराम के भाई दलबारा सिंह ने मायावती को इस पर सहमत करने की कोशिश की कि वह कांशीराम को बत्रा अस्पताल से सीधे घर ले जाने के लिए परिजनों को अनुमति दें। लेकिन कथित तौर पर उन्हें दो टुक मना कर दिया गया।
इसके बाद दलबारा सिंह ने कांशीराम को अस्पताल से जबरदस्ती ले जाने की कोशिश की। हालांकि वह असफल हुए। कांशीराम का परिवार मीडिया में यह बात फैलाने लगा कि मायावती ने कांशीराम को बंधक बना रखा। कांशीराम के परिवार ने इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में भी अर्जी दी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कांशीराम का बयान लिया और उसके आधार पर अर्जी को खारिज कर दी। इसके बाद कांशीराम की मां ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिक दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने कांशीराम की स्थिति की जांच के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया। बोर्ड की अपनी रिपोर्ट देता उससे पहले याचिकाकर्ता मां की मौत हो गयी। मामला सुप्रीम कोर्ट से भी खारिज हो गया।
दलबारा सिंह ने कांशीराम को कथित तौर पर मुक्त कराने के लिए एक राजनीतिक पार्टी का गठन भी किया था। उन्होंने मायावती पर दबाव बनाने के लिए बसपा के कई बागी सदस्यों के समर्थन से प्रदर्शन भी किया। लेकिन उनका प्रयास बेकार गया और कांशीराम का थोड़ी ही समय बाद देहांत हो गया।
क्या मायावती ने कांशीराम को बंधक बनाया था?
मायावती पर कांशीराम को बंधक बनाने का आरोप लगा था। मई 2005 में एनडीटीवी के कार्यक्रम ‘वॉक द टॉक’ में पत्रकार शेखर गुप्ता से बात करते हुए मायावती ने बताया था कि, “कांशीराम के परिवार के सदस्य साधारण और सीधे-साधे लोग हैं। विरोधी पार्टी के लोगों ने उन्हें समर्थन देकर फायदा लेने की कोशिश कर रहे थे। विरोधी पार्टी के लोग यह दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि वह कांशीराम को वापस लाने में परिवार की मदद कर रहे हैं। हालांकि इन सब में बहुजन समाज का एक भी व्यक्ति शामिल नहीं था।”
जब शेखर गुप्ता ने मायावती से पूछा कि क्या उन्होंने उनकी वैसी देखभाल की, जैसा उनका परिवार करता? इस सवाल के जवाब में मायावती ने जोर देकर कहा कि मैं विश्वास करती हूं कि मैं उनसे बेहतर करती हूं। मैंने उन्हें हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध कराई है और हर कोई कहता है कि जितना ज्यादा ध्यान मैंने दिया, उतना ध्यान एक बेटा भी नहीं दे सकता।