भारत के मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी वाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) साल 1986 में हार्वर्ड से कानून की पढ़ाई पूरी कर वापस लौटे तो महाराष्ट्र बार काउंसिल में बतौर एडवोकेट इनरोलमेंट करा लिया और वकालत की प्रैक्टिस शुरू की। CJI चंद्रचूड़ साल 1997 में पहली बार तब लाइमलाइट में आए जब उन्होंने एक एचआईवी पॉजिटिव मजदूर का केस लड़ा था और जीत हासिल की थी। वह केस नजीर भी बना।
क्या था पूरा मामला?
बॉम्बे हाईकोर्ट में वकालत करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) के पास एक मजदूर अपना मामला लेकर पहुंचा। वह एक पब्लिक कॉरपोरेशन में काम करता था। नौकरी के दौरान ही वह एचआईवी एड्स (HIV/AIDS) की चपेट में आ गया। उसकी कंपनी ने बीमारी का हवाला देते हुए उसे नौकरी से निकाल दिया। चंद्रचूड़ ने उस मजदूर का मुकदमा पूरी ताकत से लड़ा और बॉम्बे हाईकोर्ट ने मजदूर के पक्ष में फैसला सुनाया।
कोर्ट का फैसला बना नज़ीर
कोर्ट ने कहा कि सिर्फ एचआईवी (HIV) पॉजिटिव होने की वजह से उस मजदूर के उसकी आजीविका के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वह अपनी नौकरी करने के लिए पूरी तरह फिट है। यह पहला मौका था जब जस्टिस चंद्रचूड़ अखबारों की सुर्खियां बने थे। इसके बाद उन्होंने महिला कामगारों और मजदूरों से जुड़े तमाम मुकदमे लड़े और जीत हासिल की।
यूनिवर्सिटी ऑफ बॉम्बे ने दिया न्योता
बॉम्बे हाईकोर्ट में बतौर एडवोकेट प्रैक्टिस के दौरान जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ को यूनिवर्सिटी ऑफ बॉम्बे ने अपने यहां बतौर विजिटिंग प्रोफेसर कंपरेटिव कॉन्स्टिट्यूशन लॉ (Comparative Constitutional Law) पढ़ाने के लिए बुलाया। सुप्रीम कोर्ट ऑब्जर्वर के मुताबिक चंद्रचूड़ साल 1988 से 1997 तक वहां पढ़ाते रहे।
38 साल की उम्र में बन गए थे सीनियर एडवोकेट
साल 1998 में जस्टिस चंद्रचूड़ की जिंदगी में एक बड़ा मोड़ आया। महज 38 साल की उम्र में उन्हें जून 1998 में सीनियर वकील नियुक्त कर दिया गया। उस समय 40 वर्ष से कम आयु के शायद ही किसी वकील को सीनियर एडवोकेट बनाया गया था। इसके बाद जस्टिस चंद्रचूड़ देश के एडिशन सॉलिसिटर जनरल (Additional Solicitor General) नियुक्त हुए और तेजी से तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते गए।