खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) के पूर्व प्रमुख अमरजीत सिंह दुलत (Amarjit Singh Dulat) ने अपनी आत्मकथा ‘अ लाइफ इन द शैडोज़- अ मेमॉएर’ (A Life in the Shadows: A Memoir) में कई चौकाने वाली बातें लिखी हैं। उन्होंने बताया है कि भारत की राजनीति में एक ऐसा भी मोड़ आया था, जब अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) कश्मीर (Kashmir) में कांग्रेस की सरकार बनवाना चाहते थे। इस अनोखे राजनीतिक घटना पर आने से पहले ए.एस. दुलत, कश्मीर और अटल बिहारी वाजपेयी का कनेक्शन समझना जरूरी है।
अलगाववादियों से बात करने का सौंपा गया था काम
अमरजीत सिंह दुलत का जन्म दिसंबर 1940 में पंजाब के सियालकोट में हुआ था। भारत के विभाजन के बाद उनके पिता न्यायमूर्ति शमशेर सिंह दुलत अपने परिवार के साथ दिल्ली आ बसे थे। ए.एस. दुलत ने स्कूली शिक्षा दिल्ली, शिमला और चंडीगढ़ में ली। साल 1965 में दुलत भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और साल 1969 में इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) में शामिल हुए। 1990 का दशक कश्मीर के लिए उथल-पुथल का दौर था। इसी दौरान दुलत को आईबी की तरफ से कश्मीर में अलगाववादियों से बात करने का सौंपा गया था।
कश्मीर मामलों के सलहकार रहे दुलत
आईबी के बाद ए.एस. दुलत रॉ में शामिल हो गए। वह रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) के प्रमुख भी बनें। रॉ से रिटायर होने के बाद दुलत को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को एडवाइजर का पद मिला था। प्रधानमंत्री कार्यालय ने उन्हें कश्मीर मामलों का सलाहकार नियुक्त किया था। वह जनवरी 2001 से मई 2004 तक इस पद पर रहे।
आत्मकथा में बतायी 2002 की घटना
अमरजीत सिंह दुलत ने अपनी आत्मकथा ‘अ लाइफ इन द शैडोज़- अ मेमॉएर’ में साल 2002 में हुए जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव से जुड़ी घटना का जिक्र किया है। उन्होंने बताया है कि 2002 में नेशनल कांफ्रेंस के चुनाव हारने के बाद, प्रधानमंत्री वाजपेयी के कार्यालय ने कांग्रेस पार्टी को संदेश दिया कि वह मुफ्ती मोहम्मद सईद को मुख्यमंत्री के रूप में नहीं चाहते हैं। इसके बजाय कांग्रेस को राज्य में सरकार बनानी चाहिए। हालांकि सोनिया गांधी नहीं मानीं।
चुनाव से पहले जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस की सरकार थी और फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे। साल 1999 में नेशनल कांफ्रेंस अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए में शामिल हो गयी थी। बाद में उनके बेटे उमर अब्दुल्ला को केंद्रीय राज्य मंत्री नियुक्त किया गया था। 2002 के जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस का नेतृत्व उमर अब्दुल्ला किया था। नेशनल कांफ्रेंस की सीट उस चुनाव में 57 से घटकर 28 हो गयी थी। वहीं कांग्रेस ने 13 सीटें अधिक हासिल की थी और उसने 20 विधानसभा क्षेत्रों में जीत दर्ज की थी। मुफ्ती मोहम्मद सईद की पार्टी पीडीपी को 16 सीटों पर कामयाबी मिली थी और भाजपा सिर्फ एक सीट पर सिमट गयी थी। जम्मू-कश्मीर में ईवीएम का इस्तेमाल पहली बार 2002 के विधानसभा चुनाव में ही हुआ था।
फिर किसकी बनी सरकार?
चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस और भाजपा के खराब प्रदर्शन के बाद वाजपेयी चाहते थे कि वहां कांग्रेस सरकार बना ले, लेकिन मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री न बनें। हालांकि कांग्रेस ने पीएमओ के मैसेज पर ध्यान नहीं दिया। अंतत: जम्मू कश्मीर में पीडीपी और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई। दोनों पार्टियों के बीच तय हुआ कि पहले तीन साल मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री रहेंगे और अगले तीन साल तत्कालीन कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद मुख्यमंत्री रहेंगे।