पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे और राष्ट्र को समर्पित करेंगे। गृहमंत्री अमित शाह ने 24 मई को एक प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि पीएम, नए संसद भवन में ‘सेंगोल’ (Sengol) की स्थापना भी करेंगे। आजादी के वक्त इसी सेंगोल के जरिये अंग्रेजों ने भारत को सत्ता हस्तांतरित की थी। अभी म्यूजियम में रखा गया है।
कहां से आया सेंगोल का आइडिया?
जब भारत की आजादी की तारीख तय हुई तो आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन को चिंता सताने लगी कि आखिर सत्ता हस्तांतरित कैसे होगी? क्या प्रक्रिया होगी और इसका सिंबल क्या होगा? कई दिनों तक सोच-विचार के बाद उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू के सामने यह सवाल रखा और सुझाव दिया कि क्या हाथ मिलाते हुए सत्ता हस्तांतरित की जा सकती है। पंडित नेहरू ने वक्त मांगा और सीधे सी. राजगोपालाचारी के पास पहुंचे। यही सवाल उनके सामने रखा।
चोल राजवंश से जुड़ा है इतिहास
सी. राजगोपालचारी कई दिनों तक अध्ययन करते रहे और आखिरकार उन्हें भारत के इतिहास में इस सवाल का जवाब मिला। भारत के सबसे पुराने और लंबे समय तक चले राजवंशों में से एक चोल राजवंश में सत्ता का हस्तांतरण ‘सेंगोल’ (राजदंड) के जरिए किया जाता था। 9वीं सदी से 13वीं सदी के बीच जब इस हिंदू साम्राज्य में जब एक एक राजा दूसरे राजा को गद्दी सौंपता था तो प्रतीकात्मक तौर पर सेंगोल भी सौंपता सकता था।
चोल राजवंश में सत्ता हस्तांतरण के दौरान साम्राज्य के मुख्य पुजारी भगवान शिव की पूजा आराधना के बाद राजा को सेंगोल सौंपा करते थे। सी. राजगोपालचारी ने सोचा कि इससे बढ़िया प्रतीक क्या हो सकता है। राजाजी ने पंडित नेहरू को सुझाव दिया कि अंग्रेजों की दासता से मुक्ति के प्रतीक के तौर पर ऐसा ही समारोह आयोजित किया जाए और सेंगोल के जरिये सत्ता ट्रांसफर हो। पंडित नेहरू ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
तिरुवावडुदुरई आदिनम मठ को सौंपा था जिम्मा
डीडी न्यूज़ की एक डॉक्यूमेंट्री के मुताबिक जब पंडित नेहरू ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तो राजा जी ने तमिलनाडु के तिरुवावडुदुरई आदिनम मठ से संपर्क किया। इस मठ की स्थापना करीब 500 साल पहले, ठीक वहीं हुई थी जहां कभी चोल राजवंश की सत्ता थी। उस समय मठ के प्रमुख गुरु अस्वस्थ चल रहे थे लेकिन उन्होंने राजाजी का अनुरोध स्वीकार कर लिया।
किसने तैयार किया था ‘सेंगोल’?
मठ के प्रमुख स्वामी ने सेंगोल बनाने की जिम्मेदारी मद्रास के बहुचर्चित ज्वैलर ‘वुम्मिडी बंगारू’ को सौंपी। आखिरकार सेंगोल बनकर तैयार हुआ। इसके सबसे ऊपरी हिस्से पर नंदी विराजमान थे, जो शक्ति, एकता और अखंडता के प्रतीक थे।
स्पेशल फ्लाइट से लाया गया था दिल्ली
चूंकि मठ के प्रमुख गुरु बीमार चल रहे थे, इसलिए उन्होंने अपने अधीनस्थन (डिप्टी) को समारोह आयोजित करने की जिम्मेदारी सौंपी। उनके साथ कुछ और लोग विशेष फ्लाइट से सेंगोल लेकर दिल्ली पहुंचे। 14 अगस्त 1947 की रात गुरु ने यह सेंगोल लॉर्ड माउंटबेटन को सौंपा। माउंटबेटेन ने सेंगोल देखने के बाद इसे दोबारा गुरु को सौंप दिया। इसके बाद सेंगोल गंगाजल से शुद्ध किया गया और पंडित जवाहरलाल नेहरू के पास ले जाया गया। बाद में इसी सेंगोल के जरिये सत्ता ट्रांसफर हुई थी।