Lakhimpur Kheri Case: सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार (19 जनवरी) को लखीमपुर खीरी केस के आरोपी और केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी (Ajay MishrTeni) के बेटे आशीष मिश्रा ‘मोनू’ (Ashish Mishra) की जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेके माहेश्वरी की बेंच ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की और कहा ‘केस के ट्रायल में 5 साल का वक्त लग सकता है, ऐसे में अभियुक्त को अनिश्चित काल के लिए कैद में नहीं रखा जा सकता है। किसी को अनिश्चितकालीन कारावास नहीं होना चाहिए…’।
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर पीड़ितों की तरफ से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे (Dushyant Dave) ने कहा कि यही तर्क सभी अभियुक्तों पर लागू होना चाहिए, जिनमें साल 2020 के दिल्ली दंगों के जेल में बंद आरोपी भी शामिल हैं। दवे ने कहा कि कानून तो सबके लिए बराबर होना चाहिए, दिल्ली दंगों के अभियुक्त तो अभी भी जेल में सड़ रहे हैं।
रोहतगी बोले- घटनास्थल पर थे ही नहीं आशीष मिश्रा
‘बार एंड बेंच’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक आशीष मिश्रा (मोनू) की पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी (Mukul Rohatgi) ने कहा कि घटना के वक्त मिश्रा कार में मौजूद नहीं थे। कॉल रिकॉर्ड से पता लगा था कि हादसे के वक्त आशीष मिश्रा घटनास्थल से 4 किलोमीटर दूर थे। यह कोई मर्डर का केस नहीं है, बल्कि ऐसा मामला है जब भीड़ हिंसक हो गई और कुछ लोगों की हत्या कर दी। हमारे भी लोग मारे गए और कुछ किसानों की भी जान गई। न तो गोली चली है न ही गोली से घाव के निशान मिले हैं।
ऐसे तो 7-8 साल नहीं मिलेगी बेल…
मुकुल रोहतगी (Mukul Rohatgi) ने तर्क दिया कि आशीष मिश्रा का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। वे 1 साल से ज्यादा समय से हिरासत में हैं। ट्रायल कोर्ट में हमारे खिलाफ कुल 208 गवाह हैं और अगर प्राथमिकता पर सुनवाई नहीं लगी तो 5 साल लग सकते हैं। रोहतगी ने कहा कि एक एफआईआर में 200 और एक में 198 गवाह हैं। इस तरह तो 400 गवाहों से पूछताछ में 7-8 साल का वक्त लग जाएगा।
SC ने यूपी सरकार से पूछा- क्या सबूतों से छेड़छाड़ की?
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से पेश एडिशनल एडवोकेट जनरल (AAG) गरिमा प्रसाद से पूछा कि क्या आशीष मिश्रा ने सबूतों से छेड़छाड़ का प्रयास किया? इस पर गरिमा प्रसाद ने कहा कि नहीं ऐसा तो अभी तक नहीं हुआ है। कोर्ट ने पूछा कि फिर आपकी क्या राय है? इस पर गरिमा प्रसाद ने कहा कि ये बहुत गंभीर अपराध है और सोसाइटी पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा…।
‘ऐसा नहीं कह सकते कि सुप्रीम कोर्ट के पास ताकत नहीं’
उधर, पीड़ितों की तरफ से पेश सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे (Dushyant Dave) ने कहा कि अगर आशीष मिश्रा को जमानत मिलती है तो इससे बहुत बुरा संदेश जाएगा। हमें नहीं ध्यान आ रहा है कि अभी तक किसी अन्य मर्डर का ट्रायल 5 साल से पहले पूरा हुआ हो। उनकी इस टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘आप ऐसा नहीं कह सकते हैं कि कोर्ट चुपचाप देखता है और यह भी नहीं कर सकते हैं कि अभी तक अगर कोई काम नहीं हुआ है तो इसका मतलब सुप्रीम कोर्ट के पास ताकत नहीं है…’।