देश के उच्चतम न्यायालय ने नाबालिग पत्नी से रेप के आरोपी पति को बरी कर दिया है। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस संजय करोल की बेंच कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए कहा कि अगर पत्नी की उम्र 15 साल से ज्यादा है, तो ऐसे केस में रेप का आरोप नहीं बनता। बता दें कि हाईकोर्ट ने पति को रेप का दोषी माना था, जिसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद इस नतीजे पर पहुंची कि अगर पत्नी की उम्र 15 साल से अधिक है तो रेप का मामला नहीं बनता। ऐसे मामलों में पति को अपवाद की कैटेगरी में रखा जाएगा।
जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की बेंच ने हाईकोर्ट से अलग रुख अपनाया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने एक हलफनामा दायर किया है जिसमें कहा गया है कि उसकी शादी अपीलकर्ता से हुई थी और विवाह में एक बच्चा भी पैदा हुआ है। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि उसने अभियोजन पक्ष से शादी की थी और उनका रिश्ता सहमति से बना था।
धारा 375 के अपवाद दो को रेखांकित करते हुए, अदालत ने कहा, “यह स्पष्ट है कि अपीलकर्ता द्वारा अभियोजन पक्ष के साथ यौन कृत्य, जो पति और पत्नी हैं, 15 वर्ष से अधिक आयु के होने के कारण बलात्कार की श्रेणी में नहीं आएंगे।”
क्या था हाईकोर्ट का फैसला?
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने माना था कि एक पति भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत बलात्कार के लिए उत्तरदायी है यदि वह अपनी पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाता है। कर्नाटक सरकार ने बाद में शीर्ष अदालत में एक हलफनामे में उच्च न्यायालय के फैसले का समर्थन किया था।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था, “एक आदमी, एक आदमी है; एक अधिनियम, एक अधिनियम है; बलात्कार, एक बलात्कार है, चाहे वह पुरुष द्वारा महिला ‘पत्नी’ पर ‘पति’ द्वारा किया गया हो”
हालांकि, उच्च न्यायालय की खंडपीठ के सहयोगी जस्टिस सी. हरि शंकर ने वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक बनाने की याचिका को खारिज कर दिया था, यह देखते हुए कि कानून में कोई भी बदलाव विधायिका द्वारा किया जाना चाहिए। उनका मानना था कि इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं जैसे- सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी पर विचार करने की आवश्यकता है।