केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी (Smriti Irani) आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। लेकिन एक वक्त ऐसा था जब उन्हें तमाम परेशानियों से जूझना पड़ा था। उसकी यादें आज भी उनके जेहन में ताजा हैं। स्मृति ईरानी बताती हैं कि मेरे पिता पंजाबी-खत्री थे और मां बंगाली ब्राह्मण थीं। दोनों ने परिवार के खिलाफ जाकर शादी की थी। शादी के वक्त पिताजी के पास महज डेढ़ सौ रुपए थे। उस वक्त पिताजी के एक मित्र थे जो दिल्ली के मुनिरका में रहते थे। उनका तबेला चलता था। उन्होंने तबेले के ऊपर ही एक टूटा-फूटा कमरा हमें रहने के लिए दे दिया। मेरे माता-पिता करीब डेढ़ साल वहां रहे।
रेडियो प्रजेंटर और लेखक नीलेश मिसरा के शो The Slow Interview with Neelesh Misra में स्मृति ईरानी बताती हैं कि डेढ़ साल बाद हालत थोड़ी सुधरी तो माता-पिता गुड़गांव चले गए। गुड़गांव जाने की एक वजह यह भी थी कि दिल्ली के मुकाबले बहुत सस्ता था, तब जंगल जैसा इलाका हुआ करता था। हमने गुड़गांव की न्यू कॉलोनी में मकान लिया। एक कमरे का मकान था, उसके साथ एक छोटा सा और कमरा था। पूरा परिवार उसी एक कमरे में रहता था। छोटा सा आंगन था और एक टॉयलेट, जो घर के बाहर था।
पिता किताब तो मां मसाले बेचती थीं
स्मृति ईरानी बताती हैं कि मेरे पिता धौला कुआं में आर्मी क्लब के बाहर चद्दर बिछाकर उस पर किताबें बेचा करते थे। कई बार हम उनके साथ वहां बैठा करते थे। तब ऐसी स्थिति थी कि मेरी मां घर-घर जाकर मसाले बेचा करती थीं। उन्होंने ट्यूशन भी पढ़ाया। ईरानी बताती हैं कि मेरी मां ग्रेजुएट हैं, जबकि पिताजी 12वीं तक पड़े थे।
जब 7 साल की उम्र में होना पड़ा बेघर
स्मृति ईरानी गुड़गांव वाले घर को याद करते हुए कहती हैं कि उस घर की मेरी आखिरी याद तब की है जब मैं 7 साल की थी। उस घर की मेरे पास सिर्फ एक फोटो है। जब मैं 5 साल की हुई तो एक छोटा सा उत्सव हुआ था। ईरानी याद करती हैं माता-पिता के रिश्तों में तल्खी आ गई। एक दिन हम तीनों बहनें एक ही थाली में काली दाल और चावल खा रहे थे। उस दिन मेरी मां वह घर छोड़ रही थीं। बाहर रिक्शा खड़ा था। मां हमसे लगातार कहे जा रही थीं, लड़कियों जल्दी-जल्दी खा लो। अब हमें दिल्ली जाना है…नाना के यहां।

उस दिन के बाद कभी नहीं खाई काली दाल
स्मृति ईरानी कहती हैं कि उनके जेहन में वह वाकया इस कदर बैठा है कि तब से आज तक उन्होंने कभी काली दाल नहीं खाई। ईरानी कहती हैं कि उस दिन जब मैं अपनी मां के साथ रिक्शे में बैठ रही थी, तब घर के बाहर खड़े होकर उसे बड़े ध्यान से देखा था और मन में सोचा था कि एक दिन इस घर को खरीदूंगी।
जब 30 साल बाद लौटीं बचपन वाले घर
स्मृति ईरानी कहती हैं कि 2019 का चुनाव जीतने के बाद जब मैं सांसद बनकर दिल्ली आई तो सोचा कि चलो गुड़गांव का वह घर देखते हैं। 30 साल बाद वहां गई थी। ईरानी साहब (पति) मेरे साथ थे। मैंने कभी उनको अपना जीवन नहीं दिखाया था। मैंने उन्हें कहा कि यह घर है, जहां से हम छोड़े थे और अपने मन से नहीं छोड़े थे, हमें निकाला गया था। मैंने कहा था कि मैं इसे खरीदूंगी… इसलिए आज हम यहां खड़े हैं।
ईरानी कहती हैं कि मेरे पति ने मुझसे पलटकर कहा- खरीदना है? मैंने वहीं से अपनी मां को फोन किया। मां ने कहा-सही बताओ, उस घर के सामने खड़े होकर कैसा लग रहा है? मैंने ईरानी साहब से कहा हम उसे नहीं खरीद सकते जो हमारे हाथ से छीन लिया गया था, उसके पीछे भी भगवान की कोई मंशा रही होगी। मैंने अपनी मां से कहा कि इस घर को नहीं खरीदते हैं। अब बताओ क्या खरीदूं?।
स्मृति ईरानी को एक रुपये किराया देती हैं उनकी मां
ईरानी कहती हैं कि जीवन में पहली बार मेरी मां ने मुझसे कहा, बेटियों से कुछ लिया नहीं जाता लेकिन इच्छा जाहिर की जा सकती है। मेरी इच्छा है कि मैं मरूं तो अपनी छत के नीचे मरूं। मेरी मां ने जिंदगी भर किराए के मकान में गुजारा किया था। आज से 6 साल पहले मैंने अपने नाम से घर लिया था, ताकि मां वहां रहें। वह मुझे एक रुपए किराया देती हैं।