पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की दोषी नलिनी श्रीहरन के जेल से छूटने के बाद स्वयंभू स्वामी श्रद्धानंद ने सुप्रीम कोर्ट से रिहाई की गुहार लगाई है। श्रद्धानंद उर्फ मुरली मनोहर मिश्रा ने अपनी पत्नी को जिंदा दफ़्न कर दिया था। अदालत में दोषी पाए जाने के बाद से श्रद्धानंद जेल की सजा काट रहा है।
राजघराने से हुई थी कहानी की शुरुआत?
मूल रूप से मध्यप्रदेश के सागर का रहने वाला मुरली मनोहर मिश्रा मैसूर राजघराने में नौकरी करता था। राजघराने के दीवान सर मिर्जा इस्मायल थे। मिर्जा इस्मायल की पोती शकीरा नमाजी राजमहल में ही रहा करती थी। 80 के दशक में शकीरा की शादी भारतीय विदेश सेवा के अफसर अकबर मिर्जा खलीली से हुई। वह अपने काम की वजह से अक्सर विदेश ही रहा करते थे। हालांकि दोनों को चार बेटियां हुईं।
श्रद्धानंद और शकीरा आए करीब
श्रद्धानंद अपने काम में बहुत कुशल और व्यवहार में मिलनसार था। शकीरा की शादी से पहले दोनों में औपचारिक बातचीत ही होती थी। लेकिन शादी के बाद पति के अक्सर विदेश रहने और बेटे की चाहत में शकीरा श्रद्धानंद के करीब आने लगीं। 1985 में शकीरा ने अपने पति को तलाक दे दिया। इसके बाद 1986 में शकीरा ने श्रद्धानंद से शादी कर ली।
शादी के वक्त शकीरा की उम्र 50 वर्ष थी। शादी के बाद दोनों बेंगलुरु शिफ्ट हो गए। दूसरी शादी के बाद चार बेटियों में से तीन ने मां का साथ छोड़ दिया लेकिन एक बेटी शकीरा के साथ जुड़ी रही। हालांकि वह मॉडलिंग के लिए मुंबई में रहती थी और कभी-कभी मां से मिलने आती थी।
1991 में हत्या 1994 में मिली लाश
28 अप्रैल 1991 को श्रद्धानंद ने घर के नौकरों को छुट्टी देकर खुद शकीरा के लिए चाय बनाई। उसी चाय में बेहोशी की दवा मिला दी। शकीरा के बेहोश होने पर, श्रद्धानंद ने उसे गद्दे में लपेटकर ताबूत में डाल दिया। फिर ताबूत को बंगले के कंपाउंड में दफ्न कर दिया। शकीरा की मौत हो गई। मां के लापता होने पर बेटी ने पुलिस में शिकायत की। पुलिस ने छानबीन की लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा।
मामल ठंड पड़ जाने के बाद साल 1994 में एक पुलिस कॉन्स्टेबल शराब के दुकान पर था। तभी नशे में धुत एक व्यक्ति पहुंचा और कहने लगा पुलिस जिस शकीरा को इतने सालों से ढूंढ रही है, वह तो मर चुकी है। इसके बाद पुलिस ने शराबी से कड़ाई से पूछताछ की। 29 अप्रैल 1994 को पुलिस श्रद्धानंद के बंगले में पहुंची और खुदाई शुरु की। ताबूत के भीतर कंकाल था। शकीरा की पहचान अंगूठी से हुई।
पहले फांसी, फिर उम्रकैद
पुलिस ने श्रद्धानंद को 30 अप्रैल, 1994 को गिरफ्तार कर लिया। उसने गुनाह कबूल कर लिया। साल 2000 में ट्रायल कोर्ट ने श्रद्धानंद को फांसी की सजा सुनाई। कर्नाटक हाईकोर्ट ने 2005 में इस सजा को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2008 में श्रद्धानंद की फांसी को उम्रकैद में बदल दिया था।