कॉलेजियम (Supreme Court Collegium) और केंद्र सरकार (Central Government) बीच जारी विवाद फिलहाल थमता नजर नहीं आ रहा है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कॉलेजियम के खिलाफ टिप्पणी करने वाले केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू को कड़े शब्दों में जवाब दिया है।
साथ ही जस्टिस नरीमन ने यह सुझाव दिया है कि कॉलेजियम की सिफारिशों का जवाब देने के लिए समय सीमा तय करनी चाहिए। उन्होंने कहा है कि पांच जजों की एक बेंच को इस एमओपी (मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर) दुरुस्त करना चाहिए। मेरी विनम्र राय है कि एक बार कॉलेजियम द्वारा सरकार को एक नाम भेजने के बाद, अगर सरकार के 30 दिनों के भीतर कोई जवाब नहीं देती, तो यह यह माना जाएगा कि उनके पास है कहने के लिए कुछ नहीं।”
दरअसल केंद्र सरकार पर यह आरोप लग रहे हैं कि वह कॉलेजियम के सुझाव पर कोई जवाब ही नहीं देती, जिससे न्यायिक नियुक्तियां टलती रहती हैं। कुछ समय पहले भी कॉलेजियम ने पांच नामों का सुझाव दिया था। उसमें सीनियर एडवोकेट सौरभ कृपाल (Openly Gay Advocate Saurabh Kirpal) का नाम भी शामिल था। सरकार को सौरभ के समलैंगिक होने से आपत्ति थी। सरकार ने नामों को वापस भेज दिया। कॉलेजियम ने उन नामों की दोबारा सिफारिश भेजी, जिस पर सरकार ने अब तक चुप्पी साध रखी है।
जस्टिस नरीमन ने अपनी बात इन्हीं चुप्पियों के आलोक में कही। न्यायपालिका ने सरकार पर फाइलों को मंजूरी दिए बिना या खारिज किए बिना “बैठने” का आरोप लगाया है।
लोकतंत्र के लिए घातक है सरकार का रवैया- जस्टिस नरीमन
जस्टिस नरीमन ने कहा कि सरकार द्वारा कॉलेजियम की संरचना में लगातार हो रहे बदलावों का फायदा उठाने के लिए ऐसा किया जा रहा है, “नामों पर बैठना इस देश में लोकतंत्र के खिलाफ एक बहुत ही घातक बात है। क्योंकि आप वास्तव में जो कर रहे हैं वह यह है कि आप एक विशेष कॉलेजियम की प्रतीक्षा कर रहे हैं। आप उम्मीद कर रहे हैं कि कॉलेजियम अपना मन बदल ले। इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला सरकार को जवाब देने के लिए एक समय सीमा तय करे।”
बता दें कि मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम के मुताबिक, सरकार कॉलेजियम के सुझावों को सिर्फ एक बार वापस भेज सकती है। दोबारा सुझाव भेजने पर उसे स्वीकार करना अनिवार्य होता है।