औरंगजेब से शिकस्त खाने के बाद दारा शिकोह (Dara Shikoh) किसी तरह आगरा पहुंचे और वहां से बचते-बचाते अफगानिस्तान चले गए। औरंगजेब ने मुगल सल्तनत की गद्दी तो हथिया ली लेकिन उसके मन में हमेशा डर था कि दारा के रहते उसकी गद्दी सुरक्षित नहीं है। उसने दारा को ढूंढने के लिए तमाम गुप्तचर लगा दिये। आखिरकार औरंगजेब के करीबी मलिक जीवन ने दारा शिकोह को खोज निकाला और धोखे से उन्हें पकड़वा दिया। दारा शिकोह को अफगानिस्तान से दिल्ली लाया गया।
दारा शिकोह को बेड़ियों में घुमाया
फ्रांसीसी इतिहासकार फ्रांस्वा बर्नियर (Francois Bernier) अपनी किताब ‘ट्रेवल्स इन द मुगल इंडिया’ में लिखते हैं कि दिल्ली लाने के बाद औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह के साथ जैसा सलूक किया, उसे देख दिल्ली के लोग रो पड़े थे। दारा शिकोह (Dara Shikoh) को एक हथिनी पर बैठाया गया। उन्हें मैले-कुचैले और जगह-जगह से फटे कपड़े पहनाए गए। पैर में बेड़ियां थीं। कभी सोने-चांदी और हीरे जवाहरात से लदे रहने वाले दारा शिकोह के गले में कोई आभूषण नहीं था। दारा के ठीक पीछे एक दूसरी हथिनी पर उनके 14 साल के बेटे सिफिर शिकोह को बैठाया गया था।
दारा शिकोह का सिर धड़ से अलग कर दिया था
बर्नियर लिखते हैं कि अगस्त की उस चिलचिलाती धूप में जब दारा शिकोह की परेड निकाली गई तो उनकी हालत देख दिल्ली के लोगों की आंखें भर आईं। औरंगजेब का मकसद था कि दारा शिकोह की बेइज्जती करें और दिल्ली के लोगों के मन में खौफ पैदा करें। सार्वजनिक बेज्जती के बाद दारा शिकोह को खिजराबाद भेज दिया गया, जहां उनका सिर धड़ से अलग कर दिया गया था।
गद्दार को औरंगजेब ने खिताब से नवाजा
इतिहासकार और लेखिका स्वप्ना लिडल (Swapna Liddle) अपनी किताब ‘चांदनी चौक: द मुगल सिटी ऑफ ओल्ड दिल्ली’ (Chandni Chowk: The Mughal City of Old Delhi) किताब में लिखती हैं कि औरंगजेब ने दारा शिकोह को पकड़वाने वाले मलिक जीवन को तमाम पुरस्कार, हीरे, जवाहरात और खिताब दिये। लेकिन दिल्ली के लोगों के सीने में आग धधक रही थी।
गद्दार मलिक जीवन की जान जाते-जाते बची थी
दारा शिकोह की सार्वजनिक बेइज्जती के दो दिन बाद मलिक जीवन जब अपने साथियों के साथ दिल्ली पहुंचा तो उसे भीड़ ने घेर लिया। गालियां देते हुए पत्थर बरसाने लगे। छतों से पत्थर और कचरा फेंकने लगे। मलिक जीवन के कई साथियों को मार डाला और कई घायल हुए। मलिक जीवन किसी तरह अपनी जान बचाकर वहां से भागा था।