लखनऊ का नाम लंबे समय से कहानियों और लोकप्रिय कथाओं में लक्ष्मण के साथ जुड़ाता रहा है। शहर के नाम बदलने की अटकलों को तब बल मिला, जब दिवंगत भाजपा नेता लालजी टंडन ने 2018 में अपनी किताब में इसका जिक्र किया था। … आइए जानते हैं कि क्या वाकई में लखनऊ भगवान ” लक्ष्मण की नगरी” है? साथ ही इतिहासकार और जानकार इस बारे में क्या कहते हैं:
मामला 16 मई, 2022 को तब ज्यादा चर्चा में आया, जब प्रधानमंत्री के स्वागत के दौरान सीएम योगी ने मोदी के साथ अपनी और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की एक तस्वीर के साथ ट्वीट करते हुए लिखा, “शेषावतार भगवान लक्ष्मण की पावन नगरी लखनऊ में आपका हार्दिक स्वागत व अभिनंदन है।”
सीएम योगी के इस ट्वीट के बाद लखनऊ के नाम बदलने की चर्चा शुरू हो गई। लखनऊ की मेयर संयुक्ता भाटिया और बीजेपी नेताओं ने कहा कि लखनऊ के लक्ष्मण के साथ पुराने रिश्ते फिर से स्थापित होने चाहिए, जबकि कहानियों में शहर का नाम लंबे समय से लक्ष्मण के साथ जुड़ाता रहा है।
टंडन की किताब के मुताबिक, यह शहर पहले लक्ष्मणपुरी था। बाद में लखनपुरी हुआ, जो आगे चलकर लखनऊ पुकारा जाने लगा, जबकि पौराणिक कथाओं की मानें तो लखनऊ को कौशल राज का हिस्सा है। मान्यता है कि भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने इस शहर को बसाया था। यह श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या से लगभग 80 किमी दूर है।
पुस्तक में वह आगे बताते हैं कि लखनऊ में लक्ष्मण टीला, लक्ष्मणपुरी, लक्ष्मण पार्क समेत कई ऐसे स्थान हैं, जो लक्ष्मण के नाम पर हैं। उन्होंने आगे लिखा, ” लक्ष्मण के टीले को भुला दिया गया है।”
पुस्तक के प्रकाशन के बाद नगर निगम में भाजपा पार्षदों ने टीले वाली मस्जिद के पास लक्ष्मण की मूर्ति बनाने का प्रस्ताव रखा। इसके बाद बीजेपी के वरिष्ठ नेता कलराज मिश्रा ने कहा, “अगर सभी सहमत हैं तो लखनऊ का नाम बदलकर लक्ष्मणपुरी करने में कोई बुराई नहीं है।”
किताब यह भी बताती है कि पुराना लखनऊ लक्ष्मण टीला के आसपास बसा था। चाहे मुगल काल हो, औरंगजेब के समय एक मस्जिद का निर्माण हो, मोहम्मद अली शाह की मजार हो, नौबत खाना हो, इतराबाग हो, अलविदा ग्राउंड हो, चाहे ब्रिटिश हुकूमत रही हो, लेकिन अब इसका नाम हटा दिया गया है। उस स्थान को टीले वाली मस्जिद के नाम से जाना जाता है। शहर का नाम “लक्ष्मवती से लक्ष्मणपुर फिर लखनवती से लखनऊ” हो गया था। औरंगजेब ने टीले वाली मस्जिद का निर्माण कराया था।
जून 2018 में भाजपा पार्षद रजनीश गुप्ता और राम कृष्ण यादव ने प्राचीन लक्ष्मण का टीला स्थल के पास लक्ष्मण की एक मूर्ति लगाने के लिए नगरपालिका बोर्ड के समक्ष एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसको गैर-भाजपा दलों और मुस्लिम मौलवियों के विरोध का सामना करना पड़ा था।
इतिहासकार अब्दुल हलीम शरर ने अपनी पुस्तक पुराना लखनऊ में लिखा है, “कुछ निष्कर्षों और प्राचीन लोककथाओं के आधार पर यह निश्चित रूप से कोई नहीं जानता कि शहर की स्थापना किसने की और इसका नाम कैसे पड़ा? यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भगवान राम के वनवास से लौटने के बाद यह भूमि उनके भाई लक्ष्मण को दी गई थी।”
टीले के चारों ओर एक बस्ती बसाई गई थी, जिसे लक्ष्मणपुर के नाम से जाना जाने लगा और लक्ष्मण टीला के रूप में लोकप्रिय हो गया। ऐसा माना जाता था कि टीले की गहराई में एक गुफा भी है।