सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जमशेद बुरजोर परदीवाला इन दिनों चर्चा में हैं। भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा से जुड़े हालिया विवाद की सुनवाई करने वाली पीठ में जस्टिस सूर्यकांत के साथ जस्टिस जेबी परदीवाला भी शामिल थे। पीठ ने शर्मा को फटकार लगाते हुए पूरे देश से माफी मांगने को कहा था। इस सुनवाई के बाद जस्टिस जेबी परदीवाला हिंदू दक्षिणपंथी गुटों के निशाने पर आ गए। सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया, गलत जानकारी फैलाई गई और व्यक्तिगत हमले किए गए।
इसके बाद जस्टिस परदीवाला ने डिजिटल और सोशल मीडिया को रेगुलेट करने की आवश्यकता का मामला उठाया है। उन्होंने संसद से अपील करते हुए कहा है, “सोशल और डिजिटल मीडिया पर जजों के फैसले का रचनात्मक आलोचनात्मक मूल्यांकन करने के बजाय व्यक्तिगत टिप्पणी का सहारा लिया जाता है। यह ज्यूडिशियल सिस्टम को नुकसान पहुंचा रहा है और इसकी गरिमा को कम कर रहा है।”
गुजरात के वलसाड में जन्मे व पले-बढ़े-पढ़े जस्टिस परदीवाला की कर्मभूमि भी गुजरात ही रहा है। सुप्रीम कोर्ट में उनकी नियुक्ति को हाल ही में हरी झंडी मिली है। 9 मई, 2022 को ही उन्हें सुप्रीम कोर्ट जज का ओहदा मिला है। जस्टिस परदीवाला पहले भी अपने फैसलों के कारण सोशल मीडिया यूजर्स के निशाने पर रहे हैं। आइए जानते हैं इनके कुछ चर्चित फैसले…
1. आरक्षण विरोधी टिप्पणी : जस्टिस परदीवाला के खिलाफ सोशल मीडिया पर सबसे उग्र कैंपेन उनके आरक्षण विरोधी टिप्पणी के बाद देखने को मिला था। साल 2015 में पटेल आन्दोलन के नेता हार्दिक पटेल (अब भाजपा नेता) की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए परदीवाला ने कहा था, ”यदि मुझे पूछा जाए कि कौन सी दो बातें हैं, जिन्होंने देश को बर्बाद किया। या सही दिशा में देश की प्रगति में बाधा पैदा की। तब मेरा जवाब होगा, पहला-आरक्षण और दूसरा-भ्रष्टाचार। हमारा संविधान बना था, तब आरक्षण दस साल के लिए रखा था। लेकिन दुर्भाग्य से आजादी के 65 साल बाद भी आरक्षण बना हुआ है।”
इस टिप्पणी के बाद जस्टिस परदीवाला की कुर्सी खतरे में आ गयी थी। राज्यसभा के 58 सांसदों ने तत्कालीन सभापति हामिद अंसारी को महाभियोग प्रस्ताव देकर इन्हें हटाने की मांग की थी। महाभियोग याचिका पर डी. राजा (भाकपा), केएन बालगोपाल (माकपा), तिरुचि शिवा (डीएमके), नरेंद्र कुमार कश्यप (बीएसपी), दिग्विजय सिंह (कांग्रेस) जैसे दिग्गत नेताओं ने हस्ताक्षर किए थे। गुजरात सरकार की दलील पर जस्टिस परदीवाला ने अपनी आरक्षण विरोधी टिप्पणी को फैसले से हटा दिया था।
2. मैरिटल रेप : गुजरात की एक महिला डॉक्टर ने अपने पति के खिलाफ रेप और शोषण का मामला दर्ज कराया था। पति भी डॉक्टर था। वह एफआईआर रद्द कराने के लिए गुजरात हाई कोर्ट पहुंच गया। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस पारदीवाला ने पत्नी की इच्छा के बिना शारीरिक संबंध बनाने को रेप मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने फैसले में कहा कि पति द्वारा किया गया बलात्कार IPC की धारा 375 के तहत नहीं आता, जिसमें बलात्कार की व्याख्या की गई है। हालांकि उन्होंने मैरिटल रेप को अपराध मानने वाले देशों का उदाहरण देते हुए भारत में इस तरह के कानून की जरूरत को स्वीकार किया। लेकिन मीडिया में हेडलाइन में तो बस यही बनी कि कोर्ट ने मैरिटल रेप को अपराध मानने से किया इनकार। बस इसी बात को लेकर सोशल मीडिया पर जस्टिस परदीवाला को जमकर बुरा भला कहा गया। ये मामला साल 2018 का है।
3. गुजरात सरकार को फटकार : साल 2012 की बात है। इस्लामिक रिलीफ कमेटी ऑफ गुजरात ने गुजरात उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। मामला 2002 के गुजरात दंगे से जुड़ा था, जिसकी सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश भास्कर भट्टाचार्य और न्यायमूर्ति जेबी परदीवाला की खंडपीठ ने की थी। पीठ ने नरेंद्र मोदी सरकार को दंगे में निष्क्रियता और लापरवाही के लिए जमकर फटकार लगाई थी। साथ ही राज्य सरकार को दंगे के दौरान तोड़े गए करीब 500 से अधिक धार्मिक संरचनाओं के लिए मुआवजे का आदेश भी दिया था।
जस्टिस जे.बी. परदीवाला का सफर : पारसी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले न्यायमूर्ति जमशेद बुरजोर परदीवाला का गृह राज्य गुजरात है। वह अपने परिवार में चौथी पीढ़ी के पेशेवर हैं। इनकी शुरुआती शिक्षा अपने गृह नगर वलसाड (दक्षिण गुजरात) के सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल से हुई है। ग्रेजुएशन जेपी आर्ट्स कॉलेज, वलसाड से किया और कानून की डिग्री वलसाड के ही केएम मुलजी लॉ कॉलेज से हासिल की। 1989 में वलसाड से वकालत शुरू की और अगले ही साल गुजरात हाईकोर्ट में अहमदाबाद शिफ्ट हो गए थे। 2022 में उनके सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की अधिसूचना जारी की गई थी।
पड़दादा से पिता तक कानून के पेशे में: जस्टिस जे.बी. परदीवाला के पड़दादा नवरोजी भीकाजी परदीवाला ने 1894 में वलसाड में वकालत शुरू की थी। दादा सी.एन. परदीवाला ने भी वलसाड में ही 1929 से 1958 तक वकालत की। 1955 में इनके पीता बी.सी. परदीवाला ने भी वलसाड से ही वकालत शुरू की थी। वह दिसंबर, 1989 से मार्च, 1990 तक गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे।