मुगल साम्राज्य (Mughal Empire) के सबसे चर्चित बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर (Jalal-ud-din Muhammad Akbar) ने कई शादियां की लेकिन वह 27 साल की उम्र तक बेटे के लिए तरसते रहे। हालांकि 1564 में उन्हें दो जुड़वा बेटे हसन और हुसैन हुए थे लेकिन एक माह में ही उनकी मौत हो गयी थी। इसके बाद अकबर बेटे के लिए दरगाह-दरगाह मन्नत मांगते फिरते थे।
अपने दरबारियों के कहने पर वह मोइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य पीर सलीम चिश्ती के भी पास गए। इसके बाद साल 1569 में अकबर की मरियम जमानी नाम की पत्नी ने एक बेटे को जन्म दिया। यह शहजादे सलीम (Nur-ud-Din Muhammad Salim) थे, जिन्हें कालांतर में बादशाह जहांगीर (Jahangir) के नाम से जाना गया। पैदाइश के बाद शेख सलीम चिश्ती की बेटी ने शहजादे को अपना दूध पिलाया था।
सात ज्योतिषियों ने बनायी थी जहांगीर की जन्म कुंडली
शहजादे सलीम की पैदाइश के बाद महल में जश्न का महौल था। औरतें नाच रही थीं। ताली बजा-बजा कर गा रही थीं। कुछ महिलाएं ढोलक बजा रही थीं। मांगने वालों और तमाशे वालों पर पैसे लुटाए जा रहे थे। साथ ही खाना भी बांटा जा रहा था।
शाज़ी ज़माँ अपनी किताब ‘अकबर’ में बताते हैं कि इस बीच महल के अंदर के मजमे से निकर एक तुर्की टोपी वाली औरत ने पर्दे के पार बैठे सात ज्योतिषियों को शहजादे की पैदाइश का समय बातया। उन ज्योतिषियों ने यूनानी और हिंदुस्तानी तरीके से शहजादे की कुंडली बनाई।
जहांगीर की पैदाइश पर रिहा किए गए थे कैदी
जहांगीर के पैदा होने की खुशी से महल झूम रहा था लेकिन अभी बादशाह अकबर तक यह खुशखबरी नहीं पहुंची थी। वह महल से बाहर कोस दूर आगरा में थे। दरअसल तब यह रिवायत थी कि पिता को मन्नत और मुरादों की औलाद का चेहरा कुछ वक्त तक नहीं देखना चाहिए।
जब शहजादे की पैदाइश की खबर शेख सलीम चिश्ती के दामाद शेख इब्राहीम ने आगरा आकर दी तो दरबार भी जश्न में डूब गया। इस मौके पर कैदियों को रिहा करने का हुक्म जारी किया गया।
आगरा से अजमेर पैदल गए थे अकबर
अकबर ने सोच रखा कि बेटे की मन्नत पूरी होने पर वह आगरा से अजमेर स्थित ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह तक पैदल जाएंगे। जहांगीर के जन्म के बाद अकबर 20 जनवरी 1570 को जुमे की रोज आगरा से अजमेर के लिए पैदल निकले थे। वह रोज दस बारह कोस पैदल चलते हुए ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर पहुंचे थे।