भारत के उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने टीवी डिबेट के दौरान गलत हरकत करने वाले टेलीविजन एंकरों (TV anchors) के खिलाफ कार्रवाई का समर्थन किया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह जानना चाहा कि हेट स्पीच फैलाने वाले एंकर्स को अब तक कितनी बार ऑफ एयर (Off Air) किया गया है।
दरअसल शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में अभद्र भाषा के आरोपों से जुड़े मामलों की सुनवाई चल रही थी। नेशनल ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी (NBSA) की तरफ से वकील निशा भम्बानी पेश हुई थीं। मामाले की सुनवाई जस्टिस केएम जोसेफ (Justice K M Joseph) और जस्टिस बीवी नागरत्ना (justice b v nagarathna) की पीठ कर रही है।
एनबीएसए का पक्ष रखते हुए निशा भम्बानी ने कोर्ट को बताया कि जब भी अथॉरिटी को इसके किसी सदस्य द्वारा प्रसारित कार्यक्रम के संबंध में शिकायत मिलती है, तब अथॉरिटी ने त्वरित और प्रभावी कार्रवाई की है। इस पर जस्टिस जोसेफ ने पूछा, ”आपने कितनी बार किसी एंकर को ऑफ एयर किया है?”
सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने टीवी पर दिखाए जाने वाले कॉन्टेंट को मॉडरेट करने की मांगों का जवाब देते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ को बताया कि उनकी तरफ से चेक एंड बैलेंस का पर्याप्त ध्यान रखा जाता है।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के जवाब से असंतुष्ट जस्टिस जोसेफ ने कहा कि निश्चित रूप चेक एंड बैलेंस इस तरह नहीं रखा जा रहा है, जिसका कोई परिणाम नजर आए।
‘एंकर लोगों को विचार व्यक्त करने से रोकते हैं’
जस्टिस जोसेफ ने कहा कि एंकर कभी-कभी लोगों को अपने विचार व्यक्त करने से रोकते हैं। कई टीवी कार्यक्रम में सभी पैनलिस्ट्सिट को बराबर मौका नहीं दिया जाता। एंकर्स कुछ को म्यूट कर देते हैं, कुछ को पूरे समय बिना काउंटर क्वेश्चन बोलने देते हैं। यह प्रसारक या पैनलिस्ट्सिट के अधिकार का मामला नहीं है। बल्कि यह टीवी पर कार्यक्रम देखने वालों के अधिकार का मामला है।
न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा, एक लाइव कार्यक्रम की निष्पक्षता अंततः एंकर के साथ होती है। यदि एंकर निष्पक्ष तरीके से काम नहीं कर रहा है… और उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होती है, तो उसे पता होगा कि गलती करने पर भारी कीमत चुकानी पड़ेगी या ऑफ एयर कर दिया जाएगा।
सब पेट की खातिर हो रहा
जस्टिस जोसेफ ने आदि शंकराचार्य को उद्धत करते हुए कहा कि चैनलों ने जो आचरण अपनाया है, उसके लिए उनका पेट जिम्मेदार है। सब कुछ पेट की खातिर किया जा रहा है ‘उदारनिमिथम, बहुकृत वेशम’
एनबीएसए के वकील से पीठ ने कहा, ”जो हो रहा है वह टीआरपी से प्रेरित है। यह मूलभूत समस्या है। चैनल मूल रूप से एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। दुर्भाग्य से आप इसके बारे में कुछ नहीं कर रहे हैं। वे कुछ चीजों को सनसनीखेज बनाते हैं। आपको समझना चाहिए अखबार की तुलना में टीवी तुरंत अपील करता है। आप समाज के बीच विभाजन पैदा करते हैं। आप जो भी राय बनाना चाहते हैं वह किसी भी अन्य माध्यम की तुलना में बहुत तेजी से बनाते हैं।”