Centre Vs Supreme Court: सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के घमासान के बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस दीपक गुप्ता (Justice Deepak Gupta) ने कहा है कि सरकार कोर्ट में ऐसे महिला और पुरुषों को बैठाना चाहती है जो उनकी बात मानें, उनकी कोई आलोचना न करें और हर बात का समर्थन करें। हिदायतुल्लाह नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में आयोजित द्वितीय बी.आर. अंबेडकर मेमोरियल लेक्चर में जस्टिस दीपक गुप्ता ने हिटलर का उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरीके से लोगों के अधिकारों को छीनने के लिए संविधान में व्यापक परिवर्तन के लिए पूर्ण बहुमत का इस्तेमाल किया गया था।
पॉलिसी नहीं वोट बैंक पर लड़े जाते हैं चुनाव
जस्टिस दीपक गुप्ता (Justice Deepak Gupta) ने कहा कि जिन महिलाओं और पुरुषों ने हमारे संविधान का मसौदा तैयार किया था, वह किसी वोट बैंक की राजनीति में नहीं फंसे थे। उनकी कोई सांप्रदायिक सोच नहीं थी और कोई जातिगत पूर्वाग्रह भी नहीं था। उन्होंने सिर्फ और सिर्फ देश के बारे में सोचा। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि हम कभी पॉलिसी पर चुनाव नहीं लड़ते हैं, वोट बैंक की राजनीति पर चुनाव लड़ते हैं। सांप्रदायिक, जाति, धर्म, उपहारों पर चुनाव लड़ा जाता है। क्या आपने कभी चुनाव से पहले किसी कैंडिडेट को कानून का शासन या कॉलेजियम सिस्टम या संविधान के मूल ढांचे की बात करते हुए सुना है?
सुबह की सैर पर याद करते थे शपथ
जस्टिस गुप्ता ने लोकतंत्र में न्यायपालिका की भूमिका पर बात करते हुए कहा कि जब मैं न्यायाधीश था तो हर दिन सुबह की सैर के दौरान अपने शपथ को याद करता था और दोहराता था। किसी मंत्र या कोई पाठ याद नहीं करता था। जब आप न्यायाधीश की गद्दी पर बैठते हैं तो भारत का संविधान ही आपके लिए गीता, कुरान, बाइबल और गुरु ग्रंथ साहिब है।
उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को दिया ऐसा जवाब
Live Law की एक रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस दीपक गुप्ता ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की उस टिप्पणी का भी जवाब दिया जिसमें उन्होंने हाल ही में संविधान के मूल ढांचे पर सवाल उठाए थे। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि उपराष्ट्रपति ने कहा कि वह ‘मूल संरचना सिद्धांत’ में विश्वास नहीं करते हैं। वह अपने विचारों के लिए स्वतंत्र हैं, मुझे आश्चर्य नहीं है। लेकिन बुनियादी कानून शाश्वत हैं और इसे कोई भी हटा नहीं सकता है।
कॉलेजियम में तमाम कमी, लेकिन इससे अच्छा विकल्प नहीं
कॉलेजियम विवाद पर बात करते हुए जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि मैं खुद कॉलेजियम का बहुत बड़ा प्रशंसक नहीं हूं, लेकिन तमाम कमियों के बावजूद अभी इसका कोई विकल्प नहीं दिख रहा है। जिन्होंने आपातकाल को देखा है, वे कभी नहीं चाहेंगे कि आपातकाल वापस आ जाए। ऐसा नहीं है कि जजों की नियुक्ति में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। कई बार सरकार जो कहती है कॉलेजियम उसे मान लेती है।