पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह (Dr Manmohan Singh) अब राज्यसभा (Rajyasabha) में फ्रंट रो यानी पहली पंक्ति की जगह सबसे आखिरी पंक्ति में बैठते नजर आ रहे हैं। उन्होंने खुद अपनी सीट बदलवा ली है। कांग्रेस (Congress) से जुड़े नेताओं के मुताबिक पूर्व प्रधानमंत्री के ऑफिस की तरह से खुद सीट बदलने का अनुरोध किया गया था, क्योंकि उन्हें चलने फिरने में परेशानी हो रही थी और अगली पंक्ति तक पहुंचना मुश्किल हो रहा था।
क्यों बदली डॉ. मनमोहन सिंह की सीट?
डॉ. मनमोहन सिंह (Dr Manmohan Singh) के अनुरोध के बाद कांग्रेस ने उनकी सीट बैक रो में गलियारे के पास शिफ्ट करा दी है। जहां आसानी से व्हीलचेयर लाई, ले जाई जा सकेगी। बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री को स्वास्थ्य संबंधी कारणों से चलने फिरने में परेशानी हो रही है।
पिछले सत्र में ही बदलवाना चाहते थे सीट
डॉ मनमोहन सिंह के पिछली रो में शिफ्ट होने के बाद अब फ्रंट्र रो में कांग्रेस की तरफ से पार्टी के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम और दिग्विजय सिंह बैठते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि डॉ. मनमोहन सिंह ने पिछले सत्र में भी अपनी सीट बदलवाने की मांग की थी, तब सीट बदली नहीं जा सकी थी।
अब फ्रंट रो (Front Row) में विपक्ष के कौन कौन नेता?
पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. मनमोहन सिंह के पीछे की पंक्ति में शिफ्ट होने के बाद इस सत्र में अगली पंक्ति में विपक्ष की तरफ से पूर्व पीएम और जेडीएस नेता एचडी देवगौड़ा, आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता संजय सिंह, आरजेडी के प्रेमचंद गुप्ता, तृणमूल कांग्रेस (TMC) के डेरेक ओ ब्रायन, डीएमके के तिरुचि शिवा और बीआरएस के के. केशव राव बैठते नजर आ रहे हैं।
डिसेबिलिटी एक्टिविस्ट ने उठाए सवाल
डॉ. मनमोहन सिंह की सीट बैक रो में शिफ्ट करने के बाद कई डिसेबिलिटी एक्टिविस्ट ने इसपर सवाल उठाए हैं। जानी-मानी एडवोकेट और डिसेबिलिटी राइट्स एक्टिविस्ट अंजली अग्रवाल साल 2011 में पार्लियामेंट बिल्डिंग (Parliament Building) की थर्ड पार्टी ऑडिट (Third Party Audit) में भी शामिल रही हैं। वह कहती हैं कि सिर्फ डिसेबिलिटी फ्रेंडली टॉयलेट या रैंप बना देना ही काफी नहीं है। बल्कि इस बात का भी ख्याल रखा जाना चाहिए कि वह यूजर फ्रेंडली हों।
अंजलि अग्रवाल कहती है कि ऑडिट के दौरान उन्होंने पाया था कि संसद के टॉयलेट ऐसे थे, जहां व्हीलचेयर आसानी से घूम नहीं सकती है। फर्श भी फिसलन भरे थे और दरवाजों के हत्थे भी काफी ऊपर लगे थे।
वहीं, यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंसेज के प्रोफेसर डॉ. सत्येंद्र सिंह जो ‘Doctors with Disabilities’ ग्रुप के संस्थापक भी हैं, कहते हैं कि यह पहली बार नहीं हो रहा है… पहले भी चुने गए जनप्रतिनिधियों को इस तरह की समस्याएं उठानी पड़ी हैं। लेकिन उन्होंने खुद शारीरिक रूप से अक्षम लोगों की आवाज नहीं उठाई। पार्लियामेंट या विधानसभा को डिसएबल फ्रेंडली बनाने की जगह उनकी सीट पिछली रो में शिफ्ट कर दी जा रही है, यह कोई अच्छी बात नहीं है।