केंद्र सरकार (Central Government) और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम (Supreme Court Collegium) के बीच तकरार जारी है। कॉलेजियम की ओर से सुझाए गए पांच नामों पर सरकार ने अभी तक चुप्पी साध रखी है। उनमें से एक नाम एडवोकेट सौरभ कृपाल (Saurabh Kirpal) का है।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सौरभ कृपाल (Openly Gay Advocate Saurabh Kirpal) के नाम की सिफारिश की थी। कॉलेजियम सौरभ को दिल्ली हाईकोर्ट के जज के तौर पर नियुक्त करना चाहता है। लेकिन सरकार को सौरभ के समलैंगिक होने पर आपत्ति है। सरकार को लगता है कि वह पक्षपाती हो सकते हैं। अब सौरभ ने सरकार की आपत्ति पर सवाल उठाया है।
सौरभ के सवाल?
कोलकाता लिटरेरी मीट के एक कार्यक्रम में बोलते हुए सौरभ ने कहा है, “यह मान लेना एक भ्रम है कि एक जज को उसके पालन-पोषण, सामाजिक परिवेश, उसकी अवधारणाओं, विचारों आदि से पूरी तरह से अलग किया जा सकता है। यह कहना कि आपकी एक विशेष विचारधारा है इसलिए आप पक्षपाती हैं। यह ठीक नहीं है। इस कारण से न्यायाधीशों की नियुक्ति पर रोक नहीं लगाना चाहिए। प्रत्येक न्यायाधीश का किसी न किसी तरह का दृष्टिकोण होगा।”
बेंच पर विविधता की आवश्यकता पर बात करते हुए सौरभ ने कहा, “वर्तमान में भारतीय न्यायपालिका में बड़े पैमाने पर अपर कास्ट और विषमलैंगिक (हेट्रोसेक्सुअल) जज हैं।… जिनमें से सभी के पास एक निश्चित प्रकार का पूर्वाग्रह है। जब वे संविधान में किसी अस्पष्ट शब्द की व्याख्या करते हैं तो अनिवार्य रूप से उस विशेष शब्द का अर्थ एक अमीर उच्च जाति के परिवार से आने वाले व्यक्ति के लिए अलग और दलित व महिला के लिए अलग होता है।” कृपाल ने यहा भी कहा कि समाज का मौजूदा रूप भारतीय समाज की विविधता को नहीं दर्शाता है।
सौरभ ने कॉलेजियम पर क्या कहा?
कॉलेजियम सिस्टम के सवाल पर सौरभ कृपाल ने माना कि यह सबसे अच्छा सिस्टम तो नहीं है। इसमें अधिक अधिक पारदर्शिता और व्यापक परामर्श की आवश्यकता है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में न्यायाधीशों की प्रधानता हमेशा होनी चाहिए। वह कहते हैं, “आप जो भी नया सिस्टम तैयार करें, यह आवश्यक है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में न्यायाधीशों का बहुमत बरकरार रहे।”