अपूर्वा विश्वनाथ
जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार (Government) और न्यायपालिका (Judiciary) के बीच तनाव की खबरें हैं। अब केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने कहा है कि लोकतंत्र में सरकार और न्यायपालिका के बीच मतभेद हो सकता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दोनों महाभारत (Mahabharat) चल रहा है। लोकतंत्र (Democracy) में बहस और चर्चा होती रहेगी।
‘महाभारत नहीं हो रहा है’
सोमवार को दिल्ली की तीस हजारी अदालत में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए कानून मंत्री किरन रिजिजू ने कहा कि मेरा भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (Justice D.Y. Chandrachud) के साथ सीधा संपर्क है। हम हर छोटे से लेकर जटिल मुद्दों तक पर चर्चा करते हैं।
रिजिजू ने कहा कि, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच कोई तनाव नहीं है। अगर कोई बहस और चर्चा नहीं है तो यह लोकतंत्र कैसा है? अगर सरकार और न्यायपालिका के विचारों में अंतर है तो कुछ लोग इसे ऐसे पेश करते हैं जैसे कोई महाभारत हो रहा हो लेकिन ऐसा नहीं है।
अपने भाषण के दौरान रिजिजू ने पूर्व सीजेआई एनवी रमना द्वारा लिखे गए एक पत्र का भी उल्लेख किया। उस पत्र में सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों की होने वाली आलोचना के संबंध में विचार व्यक्त किए गए हैं। रिजिजू ने कहा, “इन दिनों न्यायाधीश भी थोड़ा सावधान हैं। वे ऐसा निर्णय नहीं देंगे जिससे समाज में कड़ी प्रतिक्रिया हो। आखिरकार जज भी एक इंसान होता है और जनमत उसे भी प्रभावित करता है। सोशल मीडिया स्क्रूटनी का भी सीधा असर जजों पर पड़ता है।”
उन्होंने कहा कि पूर्व सीजेआई ने सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों की आलोचना से निपटने के लिए एक कानून की मांग की थी। हालांकि जब बड़ी संख्या में लोगों की सोशल मीडिया तक पहुंच हो तो आप कुछ नहीं कर सकते।
नेता और जज में अंतर?
इसके बाद न्यायाधीशों की नियुक्तियों की तुलना राजनेताओं के चुनावों से करते हुए रिजिजू ने कहा, एक न्यायाधीश एक बार न्यायाधीश बन जाता है, इसलिए उसे फिर से चुनाव का सामना नहीं करना पड़ता है। जनता जजों की छानबीन नहीं कर सकती… इसलिए मैंने कहा कि जजों को जनता नहीं चुनती इसलिए वह उन्हें बदल नहीं सकती। लेकिन जनता आपको देख रही है। आपके फैसले को देख रही है। जज जिस तरह से इंसाफ देते हैं, लोग उसे देख रहे हैं।
केंद्रीय कानून मंत्री रिजिजू ने लोकतंत्र में नेताओं और जजों के बीच का फर्क समझाते हुए कहा कि जजों को जनता द्वारा निर्वाचित नहीं किया जाता है। लेकिन नेताओं बार-बार चुनाव का सामना करना पड़ता है।
‘स्वतंत्र न्यायपालिका जरूरी’
किरन रिजिजू ने सीजेआई चंद्रचूड़ को लिखे उस पत्र का भी जिक्र किया, जिसमें जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सरकार के प्रतिनिधि को शामिल करने का सुझाव दिया गया था। रिजिजू ने कहा कि ऐसा करना उनका कर्तव्य था, “2015 में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को पेश करने वाले संवैधानिक संशोधन को “असंवैधानिक” करार दिया था।”
कानून मंत्री ने यह भी कहा कि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका जरूरी है। मोदी सरकार ने न्यायपालिका को कमजोर करने के लिए एक भी कदम नहीं उठाया है। हमारा काम संस्था के प्रति सम्मान का प्रमाण है … यदि आप न्यायपालिका के अधिकार या गरिमा को कमजोर करते हैं तो लोकतंत्र सफल नहीं हो सकता है।