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CJI चंद्रचूड़ ने बताया- 4 बातों से तय करते हैं जजों के नाम, किरन रिजिजू ने कहा- यह नहीं न्यायपालिका का काम

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए एक पैरामीटर तय है। जिसमें 4 बातों का ध्यान रखा जाता है।

CJI DY Chandrachud, Justice DY Chandrachud, Kiren Rijiju
कानून मंत्री किरन रिजिजू (बाएं) और सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (दाएं)। फाइल फोटो

जजों की नियुक्ति के मसले पर हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम (Supreme Court Collegium) और केंद्र सरकार के बीच तनातनी नजर आई है। केंद्र सरकार ने कई मौकों पर कॉलेजियम की सिफारिशों को नजरअंदाज कर दिया है। कानून मंत्री किरण रिजिजू (Kiren Rijiju)  कहते रहे हैं कि सरकार का न्यायपालिका से टकराव नहीं है, लेकिन कुछ इश्यू जरूर हैं। जिनमें से एक कॉलेजियम में पारदर्शिता भी है।

पिछले दिनों जब इंडिया टुडे कॉन्क्लेव ( India Today Conclave 2023) में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) से जजों की नियुक्ति और कॉलेजियम सिस्टम (Collegium System) में पारदर्शिता पर सवाल किया गया तब उन्होंने विस्तार से बताया था कि कॉलेजियम कैसे काम करता है और जजों की नियुक्ति में किन पैरामीटर को फॉलो किया जाता है।

कॉलेजियम किन पैरामीटर को करता है फॉलो?

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) कहते हैं कि जजों की नियुक्ति के लिए हम जिस पैरामीटर को अपनाते हैं, वह पूरी तरह साफ और स्थापित है। उदाहरण के लिए कॉलेजियम, सुप्रीम कोर्ट में किसी की नियुक्ति की सिफारिश करती है तो हम सबसे पहले पिछले 3 सालों के दौरान हाईकोर्ट के जजों द्वारा दिए गए फैसलों को देखते हैं।  

1- मेरिट: सीजेआई कहते हैं कि हम सबसे पहले मेरिट को देखते हैं। देखते हैं कि कोई जज पेशेवर तौर पर कितना मजबूत है। उसके द्वारा दिए गए फैसलों का विश्लेषण करते हैं। जिन जजों के नाम पर विचार होना है उनके द्वारा दिए गए फैसलों को कॉलेजियम के सभी सदस्यों को साझा किया जाता है। ताकि सभी एक साथ देख सकें।

2- वरिष्ठता: मेरिट के बाद दूसरा सबसे बड़ा पैरामीटर सिनियॉरिटी यानी वरिष्ठता है क्योंकि आखिरकार सेवा की बात है।

3- इंक्लूजन: सीजेआई चंद्रचूड़ कहते हैं कि तीसरा अहम पैरामीटर जो हमने तय किया है वह है इंक्लूजन (Inclusion) यानि समावेश। इंक्लूजन से तात्पर्य जेंडर से, एससी-एसटी का, जिन्हें हायर ज्यूडशरी में जगह मिलनी चाहिए , हाशिये का तबका और माइनॉरिटी का। लेकिन इस पैरामीटर में हम मेरिट को नजरंदाज नहीं करते हैं। मेरिट सर्वोपरि होती है।

4- हाईकोर्ट का प्रतिनिधित्व: जस्टिस चंद्रचूड़ कहते हैं कि चौथा और अहम पैरामीटर है हाईकोर्ट का प्रतिनिधित्व। अगर हम सुप्रीम कोर्ट के लिए सिफारिश कर रहे हैं तो यह देखते हैं कि देश भर के हाईकोर्ट का समान प्रतिनिधित्व होना चाहिए।

जस्टिस चंद्रचूड़ कहते हैं कि इसी तरह हाईकोर्ट में नियुक्ति के लिए भी स्थापित पैरामीटर है। हाईकोर्ट कॉलेजियम अपनी सिफारिश सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम, भारत सरकार और राज्य सरकार को भेजती है। विचार विमर्श के बाद ही इसे आगे बढ़ाया जाता है।

लेकिन जुदा है सरकार की राय…

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में ही कानून मंत्री किरण रिजिजू (Kiren Rijiju) एक बार फिर कॉलेजियम पर सवाल खड़े कर चुके हैं। किरण रिजिजू ने कहा था कि जजों की नियुक्ति ज्यूडिशियल काम नहीं बल्कि प्रशासनिक काम है। सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट कॉलेजियम कोई नाम प्रस्तावित करता है तो यह हमारी ड्यूटी है कि उसे पारदर्शी तरीके से देखें, अन्यथा तो मेरा काम पोस्ट मास्टर जैसा रह जाएगा।

रिजिजू की राय- जजों की नियुक्ति न्यायपालिका का काम नहीं

रिजिजू ने कहा था कि जजों की नियुक्ति को लेकर संविधान देखें तो वहां साफ-साफ लिखा है कि यह सरकार का काम है। संविधान में कहा गया है कि राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में सीजेआई और हाईकोर्ट चीफ जस्टिस के कंसल्टेशन से जजों की नियुक्ति कर सकते हैं।

संविधान में न्यायपालिका द्वारा जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करने और इसे अंतिम स्वरूप देने का कोई रोल है ही नहीं। कांग्रेस के मिस एडवेंचर की वजह से न्यायपालिका का दखल बढ़ा और बाद में कॉलेजियम सिस्टम आया।

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First published on: 27-03-2023 at 16:19 IST
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