भारतीय जनता पार्टी (BJP) दक्षिण के राज्यों में अपना पैर जमाने की पुरजोर कोशिश कर रही है। खासकर केरल (Kerala) में बीजेपी 3 सूत्रीय रणनीति पर काम कर रही है। बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) यहां ईसाइयों और मुसलमानों से जुड़ने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं, और यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि इन दोनों समुदाय के लोग बीजेपी के लिए ‘अछूत’ नहीं हैं। इसी क्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रकाश जावड़ेकर (Prakash Javadekar) को स्पेशल मिशन सौंपा गया है।
प्रकाश जावड़ेकर (Prakash Javadekar) को ईसाई और मुस्लिम समुदाय के लोगों तक पहुंचने की जिम्मेदारी दी गई है। जावड़ेकर इसमें मिशन मोड में लग गए हैं। नई जिम्मेदारी मिलने के बाद वह लगातार दक्षिण के राज्यों की यात्रा कर रहे हैं। वहां खासकर ईसाई और मुस्लिम सेलिब्रिटीज से मुलाकात कर रहे हैं। कभी उनके घर पहुंच रहें हैं तो कभी कार्यालय।
बीजेपी (BJP) का मानना है कि इन दोनों समुदाय के सेलिब्रिटीज से यदि पार्टी के नेता मिलते हैं तो इससे पॉजिटिव मैसेज तो जाएगा ही। साथ ही इस धारणा को बदलने में मदद मिलेगी कि भाजपा (BJP) का इन समुदायों के प्रति कोई दुराव है। वहीं बहुसंख्यक हिंदुओं को भी लगेगा कि पार्टी इन दोनों अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को साथ जोड़ने का गंभीर प्रयास कर रही है।
मीटिंग को लेकर हर कोई उत्साहित नहीं
हालांकि ऐसा नहीं है कि इन दोनों समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सभी सेलिब्रिटीज प्रकाश जावड़ेकर की इन मीटिंग्स को लेकर बहुत उत्साहित हैं। मिलाजुला रिस्पांस देखने को मिल रहा है। आपको बता दें कि जुलाई 2021 में प्रकाश जावड़ेकर (Prakash Javadekar) ने मोदी कैबिनेट (Narendra Modi Cabinet) से इस्तीफा दे दिया था। उनका इस्तीफा चौंकाने वाला था, क्योंकि उस वक्त उनके पास पर्यावरण जैसा भारी-भरकम और महत्वपूर्ण मंत्रालय था।
2024 से पहले उत्तर भारत में भी कवायद
बीजेपी सिर्फ दक्षिण के सूबों में ही अल्पसंख्यकों से जुड़ने का प्रयास नहीं कर रही है, बल्कि 2024 के चुनाव से पहले ऐसी कवायद उत्तर भारत के राज्यों में भी देखने को मिल रही है। पार्टी ने पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में पसमांदा सम्मेलन का आयोजन किया था और इस सम्मेलन के जरिए यह संदेश देने का प्रयास किया कि पार्टी मुसलमानों को खुले दिल से गले लगाने को तैयार है। पार्टी के इस सम्मेलन में यूपी के डिप्टी सीएम बृजेश पाठक से लेकर मुख्तार अब्बास जैसे तमाम लोग शामिल हुए थे।
बीजेपी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले भी ऐसा ही एक प्रयोग किया था और पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा से जुड़े करीब 44 हजार नेताओं को अपना ‘दूत’ बना कर मुसलमानों के घर भेजा था, ताकि वे योगी सरकार की उपलब्धियां को उन तक पहुंचा सकें और पार्टी से जोड़ सकें।
अल्पसंख्यकों को लेकर अभी भी मतभेद
हालांकि अल्पसंख्यक कौन है इसको लेकर अभी भी बीजेपी नेताओं में दो मत देखने को मिलता है। एक वर्ग का कहना है कि यह फैसला राज्यों पर छोड़ देना चाहिए कि अल्पसंख्यक कौन है। जबकि दूसरा वर्ग कहता रहा है कि यह तय करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास होना चाहिए। बीजेपी शासित गुजरात, कर्नाटक और मध्य प्रदेश की सरकारें इस पक्ष में हैं कि अल्पसंख्यक तय करने का अधिकार केंद्र पर छोड़ देना चाहिए। जबकि बीजेपी की असम और उत्तराखंड सरकार की राय है कि साल 2002 सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक यह अधिकार राज्यों पर ही छोड़ देना चाहिए।